Guru Pradosh Vrat Katha In Hindi: गुरु प्रदोष व्रत कथा पढ़ने से मिलेगा विजय और ऐश्वर्य का वरदान
Guru Pradosh Vrat Katha In Hindi: जो प्रदोष व्रत गुरुवार को पड़ता है उसे गुरु प्रदोष व्रत कहते हैं। धार्मिक मान्यताओं अनुसार गुरु प्रदोष व्रत करने से पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त होने के साथ हर काम में सफलता मिलेती है। यहां जानिए गुरु प्रदोष व्रत कथा।
Guru Pradosh Vrat Katha In Hindi: गुरुवार प्रदोष व्रत कथा
Guru Pradosh Vrat Katha In Hindi: हिंदू धर्म में भगवान शिव के प्रदोष व्रत का विशेष महत्व माना गया है। ये व्रत हर महीने की त्रयोदशी को पड़ता है। मान्यता है जो कोई भी इस व्रत को विधि विधान करता है उसके जीवन में सुख-सुविधाओं की कोई कमी नहीं होती। ये व्रत समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला माना गया है। प्रत्येक महीने में दो प्रदोष व्रत पड़ते हैं और वार अनुसार हर प्रदोष व्रत का महत्व अलग-अलग होता है। 26 अक्टूबर को गुरु प्रदोष व्रत पड़ा है। जानिए गुरुवार प्रदोष व्रत की कथा।
Guru Pradosh Vrat Katha In Hindi (गुरुवार प्रदोष व्रत कथा)
पौराणिक कथा अनुसार एक बार इन्द्र और वृत्रासुर की सेना में घनघोर युद्ध हुआ। देवताओं ने दैत्य-सेना को पराजित कर दिया। यह देख वृत्रासुर को अत्यंत गुस्सा आया और वह स्वयं ही युद्ध को उद्यत हुआ। आसुरी माया से उसने विकराल रूप धारण कर लिया जिससे सभी देवता भयभीत हो गुरुदेव बृहस्पति की शरण में पहुंचे। बृहस्पति महाराज ने देवताओं को पहले वृत्रासुर का वास्तविक परिचय दिया।
बृहस्पति महाराज बोले- वृत्रासुर बड़ा ही तपस्वी और कर्मनिष्ठ है। उसने घोर तपस्या कर शिव जी को प्रसन्न किया। पिछले जन्म में वह चित्ररथ नाम का राजा था। एक बार वह शिव जी से मिलने अपने विमान से कैलाश पर्वत गया। वहां शिव जी के वाम अंग में माता पार्वती को विराजमान देख वह उपहास पूर्वक बोला- हे प्रभो! मोह-माया के चलते हम स्त्रियों के वशीभूत रहते हैं। किन्तु देवलोक में ऐसा दृष्टिगोचर नहीं हुआ कि स्त्री आलिंगनबद्ध हो सभा में बैठे।
चित्ररथ के ये वचन सुन शिव शंकर हंसकर बोले- हे राजन! मेरा व्यावहारिक दृष्टिकोण अलग है। मैंने मृत्युदाता कालकूट महाविष का पान किया है, फिर भी तुम मेरा उपहास उड़ाते हो! लेकिन माता पार्वती को चित्ररथ की बात पर गुस्सा आ गया। उन्होंने चित्ररथ को संबोधित करते हुए कहा- अरे दुष्ट! तूने सर्वव्यापी महेश्वर ही नहीं बल्कि मेरा भी उपहास उड़ाया है। अतएव मैं तुझे ऐसी शिक्षा दूंगी कि फिर तू किसी का उपहास उड़ाने का दुस्साहस नहीं करेगा, अब तू दैत्य स्वरूप धारण कर विमान से नीचे गिर, मैं तुझे शाप देती हूं।
माता के अभिशाप से चित्ररथ राक्षस योनि को प्राप्त हुआ और त्वष्टा नामक ऋषि के श्रेष्ठ तप से उत्पन्न हो वृत्रासुर बना। लेकिन वृत्तासुर बाल्यकाल से ही शिव भक्त रहा है। अतः हे इन्द्र तुम वृत्रासुर को हराना चाहते हो तो बृहस्पति प्रदोष व्रत कर भगवान शिव को प्रसन्न करो। देवराज ने गुरुदेव की आज्ञा अनुसार बृहस्पति प्रदोष व्रत किया। गुरु प्रदोष व्रत की महिमा से इन्द्र ने वृत्रासुर पर विजय प्राप्त कर ली।
बोलो उमापति शंकर भगवान की जय। हर हर महादेव !
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