Guru Purnima Quotes: गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागू पाय...गुरु पूर्णिमा अपने गुरु को भेजें ये शुभकामना संदेश
Guru Purnima Wishes, Quotes: 'गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय'...गुरु पूर्णिमा पर जानिए गुरु-शिष्य से जुड़े लोकप्रिय दोहे। इन दोहों को भेजकर आप अपने गुरुओं को हैप्पी गुरु पूर्णिमा (Happy Guru Purnima 2023) कह सकते हैं।
Guru Purnima 2023 Quotes: जब मैं था तब गुरु नहीं, अब गुरु है मैं नाहिं। प्रेम गली अति सांकरी, तामें दो न समांही।।
Guru Purnima Shlok In Hindi And Sanskrit
Guru Purnima Dohe In Sanskrit And Hindi
सब धरती कागज करूँ, लिखनी सब बनराय
सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाय
अर्थ- सब पृथ्वी को कागज, सब जंगल को कलम, सातों समुद्रों को स्याही बनाकर लिखने पर भी गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते।
गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय
अर्थ- गुरू और गोविंद (भगवान) एक साथ खड़े हों तो किसे प्रणाम करना चाहिए – गुरू को अथवा गोविन्द को? ऐसी स्थिति में गुरू के श्रीचरणों में शीश झुकाना उत्तम है जिनके कृपा रूपी प्रसाद से गोविन्द का दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
जब मैं था तब गुरु नहीं, अब गुरु है मैं नाहिं।
प्रेम गली अति सांकरी, तामें दो न समांही।।
अर्थ- कबीरदास जी कहते हैं कि जब मेरे मन के अंदर अहंकार था उस समय मुझे गुरु नहीं मिले कबीरदास जी कहते हैं प्रेम की गली अपनी सकरी होती है इसमें गुरु और अहंकार दोनों एक साथ नहीं आ सकते।
गुरु शरणगति छाडि के, करै भरोसा और।
सुख संपती को कह चली, नहीं नरक में ठौर।।
अर्थ- जो व्यक्ति गुरु की शरण को त्याग कर किसी और के ऊपर भरोसा करता है उसे सुख संपत्ति और नरक में भी उसे ठिकाना नहीं मिलता है।
गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढि गढि काढैं खोट।
अंतर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट।।
अर्थ- कबीरदास जी कहते हैं कि गुरु एक कुम्हार के समान है और शिष्य एक घड़े के समान है।
जैसी प्रीती कुटुम्ब की, तैसी गुरु सों होय।
कहैं कबीर ता दास का, पला न पकड़े कोय।
अर्थ-जिस तरह आप अपने परिवार से प्रेम करते हैं उसी तरह आप गुरु से प्यार करें ऐसे गुरु भक्तों को माया रूपी बंधन नहीं बांध सकती है।
गुरु गोविन्द दोऊ एक हैं, दुजा सब आकार।
आपा मैटैं हरि भजैं, तब पावैं दीदार।।
अर्थ- गुरु गोविंद दोनों एक है दोनों में सिर्फ नाम क अंतर है अपने अंदर को अहंकार मिटाकर ईश्वर का ध्यान करना चाहिए तभी आप कुछ के दर्शन होंगे ।
सब धरती कागज करूँ, लेखनी सब बनराय।
सात समुंदर की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाय
अर्थ- कबीर दास जी कहते हैं कि यदि सारी पृथ्वी कागज बन जाए, सारे जंगल की लकड़ी कलम हो जाए, और सात समुद्रों का जल स्याही हो जाए, तो भी गुरु की महिमा का वर्णन करना संभव नहीं है।
गुरु पारस को अन्तरो, जानत हैं सब संत।
वह लोहा कंचन करे, ये करि लेय महंत।।
अर्थ- गुरु और पारस के भेद को ज्ञानी भली-भांति जानते हैं। जिस प्रकार पारस का स्पर्श लोहे को सोना बना देता है, उसी प्रकार गुरु की निरंतर उपस्थिति शिष्य को अपने गुरु के समान महान बना देती है।
गुरु किया है देह का, सतगुरु चीन्हा नाहिं।
भवसागर के जाल में, फिर फिर गोता खाहि।।
अर्थ- कबीरदास जी कहते हैं हमें कभी भी बाहरी आडंबर देकर गुरु को नहीं बनाना चाहिए हमें गुरु के अंदर ज्ञान को देखना चाहिए ताकि वह आपको संसार रूपी भंवर सागर से पार लगा सके।
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धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर की रहने वाली हूं। पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। 10 साल से मीडिया में काम कर रही हूं। पत्रकारिता में करि...और देखें
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