Guruwar Vrat Katha In Hindi: गुरुवार व्रत की कथा और महत्व यहां जानिए
Guruvar Vrat Katha, Puja Vidhi, Aarti in Hindi (बृहस्पतिवार व्रत कथा, पूजा विधि, आरती): ऐसी मान्यता है गुरुवार का व्रत करने से भगवान विष्णु के साथ देवगुरु बृहस्पति की भी कृपा बरसती है। जानिए गुरुवार व्रत की कथा, पूजा विधि, नियम, महत्व और आरती यहां।
गुरुवार व्रत कथा, पूजा विधि, मंत्र, आरती, महत्व सबकुछ जानें यहां
Guruvar Vrat Katha, Puja Vidhi, Aarti in Hindi (बृहस्पतिवार व्रत कथा, पूजा विधि, आरती): हिंदू धर्म में गुरुवार का दिन भगवान विष्णु और बृहस्पतिदेव को समर्पित किया गया है। धार्मिक मान्यताओं अनुसार गुरुवार का व्रत रखने से बृहस्पति देव, भगवान विष्णु के साथ-साथ मां लक्ष्मी की कृपा भी शीघ्र ही प्राप्त हो जाती है। ये व्रत पुरुष, महिला, कुंवारी लड़कियां, लड़के कोई भी रख सकते हैं। कहते हैं जो व्यक्ति सच्चे मन से इस व्रत को करता है उसकी सारी इच्छाएं पूर्ण हो जाती है। अगर आप भी गुरुवार का व्रत रख रहे हैं या रखने की सोच रहे हैं तो यहां जानें गुरुवार व्रत कथा, पूजा विधि, महत्व, नियम, मंत्र और आरती।
जिन जातकों के विवाह में रुकावट आ रही हो या बार-बार रिश्ता टूट रहा हो उन्हें भी गुरुवार का व्रत करने की सलाह दी जाती है। ये व्रत रखने से उनके विवाह में आ रही किसी भी तरह की बाधा दूर हो जाती है। क्योंकि इस व्रत को करने से शादी-विवाह के कारक ग्रह बृहस्पति मजबूत होते हैं।
Guruwar Vrat Katha (बृहस्पतिवार व्रत कथा)
प्राचीन काल में एक ब्राह्मण रहता था, वह बहुत निर्धन और निःसंतान था। उसकी स्त्री बहुत गंदगी के साथ रहती थी। वह न तो कभी स्नान करती और न ही किसी देवता का पूजा आदि करती थी। इससे ब्राह्मण देवता बड़े दुःखी रहते थे। बेचारे बोलते-बोलते थक चुके थे लेकिन कुछ उसका परिणाम न निकला। भगवान की असीम कृपा से ब्राह्मण स्त्री को एक कन्या रूपी रत्न पैदा हुई। कन्या बड़ी होने पर प्रतिदिन प्रातः स्नान कर विष्णु भगवान का जाप व गुरुवार का व्रत करने लगी। वह हर रोज अपने पूजन-पाठ को समाप्त करके विद्यालय जाती थी तो मुट्ठी भर जौ ले जाया करती थी। इस प्रकार ये पाठशाला के मार्ग में जौ छींटते जाती थी। यही जौ लौटते समय स्वर्ण के बन जाते थे, जिसे बीन कर वो घर ले आती थी।
एक दिन की बात है जब वह बालिका उस सोने के जौ को सूप में फटककर साफ कर रही थी, तभी उसके पिता की नजर इसपर पड़ी और कहा - हे बेटी! सोने के जौ के लिए सोने का सूप होना चाहिए। अगले ही दिन बृहस्पतिवार था। इस कन्या ने पुनः व्रत रखा और बृहस्पतिदेव से प्रार्थना करते हुए कहा- हे स्वामी! मैंने आपकी पूजा सच्चे मन से की हो तो मेरे लिए सोने का सूप दे दो। बृहस्पतिदेव ने कन्या की प्रार्थना स्वीकार ली। इसी तरह हमेशा की तरह आज भी कन्या, जौ फैलाती हुई जाने लगी। वापस लौटकर जब जौ बीन रही थी तभी उसकी नज़र सोने के सूप पर पड़ी। बृहस्पतिदेव की कृपा से उसे सूप मिला। कन्या इसे घर ले आई। फिर से वह जौ साफ करने लगी। परन्तु, उसकी मां के रंग-ढंग नहीं बदले।
एक दिन वह कन्या सोने के सूप में जौ फटक रही थी। तभी उस समय उस शहर का राजकुमार वहां से गुजर रहा था। इस दौरान कन्या के रूप और कार्य को देख राजकुमार मोहित हो गया। अपने घर आकर अन्न-जल का त्याग कर उदासी के साथ लेट गया। राजा को उसके बेटे की हालत देखी नहीं गई वे अपने प्रधानमंत्री के साथ उसके पास गए और बोले- हे बेटा तुम्हें किस बात से दुःखी हो? किसी ने अपमान किया है क्या? या फिर कोई और कारण हो तो भी बताओ मैं वही कार्य करूंगा जिससे तुम्हें प्रसन्नता होगी। राजकुमार यह सुनकर बोले- मुझे आपके किसी भी बात का दुःख नहीं है। और न ही किसी ने मेरा अपमान किया है। परन्तु मैं उस लड़की से विवाह करना चाहता हूं जिसे मैंने सोने के सूप में जौ साफ करते हुए देखा था। यह सुनकर राजा को आश्चर्य हुआ और बोला- हे बेटा! इस तरह की कन्या का पता तुम्हीं लगाओ। मैं तेरा विवाह अवश्य ही उसके साथ करवा दूंगा। राजकुमार ने उस लड़की के घर का पता बताया। तब राजा के मंत्री उस लड़की के घर गए। ब्राह्मण देवता को पूरी बात बताई। फिर ब्राह्मण देवता अपनी कन्या का विवाह राजकुमार के साथ करने के लिए तैयार हो गए। विधि-विधान से ब्राह्मण की कन्या का विवाह राजकुमार के साथ संपन्न हुआ।
कन्या के घर से जाते ही उस ब्राह्मण देवता के घर में पुनः गरीबी का निवास हो गया। इनके भोजन के लिए भी अन्न बड़ी मुश्किल से मिल पाता था। एक दिन ब्राह्मण देवता दुःखी होकर अपनी पुत्री के पास गए। बेटी ने पिता की दुःखी अवस्था को देख मां का हाल पूछा। तब ब्राह्मण ने सबकुछ बताया। इसके बाद कन्या ने ढेर सारा धन देकर अपने पिता को विदा कर दिया। इस तरह ब्राह्मण का कुछ समय तो सुखपूर्वक व्यतीत हो गया। लेकिन कुछ ही दिनों के बाद फिर वही हाल हो गया। ब्राह्मण फिर अपनी पुत्री के पास गया और पूरी स्थिति बताई। इसपर लड़की बोली- हे पिताजी! आप माताजी को यहां ले लाओ। मैं उसे पूरी विधि बता दूंगी जिससे निर्धनता दूर हो सकती है। इसके बाद ब्राह्मण देवता अपनी स्त्री को साथ लेकर आए। फिर कन्या अपनी मां को समझाने लगी- हे मां तुम प्रातःकाल उठ कर प्रथम स्नानादि करने के बाद विष्णु भगवान का पूजन करो तो सारी दरिद्रता दूर हो जाएगी। इसके बाद भी उसकी मां ने एक भी बात नहीं मानी। प्रातःकाल उठते के साथ ही अपनी पुत्री के बच्चों की जूठन खा ली। मां के बर्ताव से उसकी पुत्री को भी बहुत गुस्सा आया।बेटी ने एक रात कोठरी से सारे सामान को निकाल कर अपनी मां को उसमें बंद कर दिया। फिर अगली सुबह उसे निकाला और स्नानादि कराके जबरन पाठ करवाया। फिर उसकी मां की बुद्धि ठीक हो गई। ये प्रत्येक बृहस्पतिवार को व्रत रखने लगी। इस व्रत के प्रभाव से ब्राह्मण देव का घर खुशियों से भर गया। वे बहुत ही धनवान और पुत्रवान हो गए।बृहस्पतिजी के प्रभाव से इस लोक के सुख भोगकर स्वर्ग को प्राप्त हुए।
Guruvar Vrat Puja Vidhi (बृहस्पतिवार व्रत पूजा विधि)
- गुरुवार के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करके पीले वस्त्र धारण करें।
- इसके बाद भगवान विष्णु और बृहस्पति देव का ध्यान करके व्रत का संकल्प लें।
- फिर बृहस्पति देव की विधिवत पूजा करें।
- पूजा के दौरान पीले फूल, चंदन आदि अर्पित करें।
- गुरुवार व्रत के भोग में भगवान को चने की दाल और गुड़ चढ़ाएं।
- इसके बाद धूप-दीप जलाकर बृहस्पति देव की व्रत कथा का पाठ करें।
- कथा के बाद आरती करके भूल चूक के लिए माफी मांग लें।
Guruvar Vrat Puja Aarti (बृहस्पतिवार व्रत पूजा आरती)
ॐ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा।
छिन छिन भोग लगाऊँ, कदली फल मेवा॥
ॐ जय बृहस्पति देवा॥
तुम पूर्ण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।
जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी॥
ऊँ जय बृहस्पति देवा॥
चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता।
सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता॥
ऊँ जय बृहस्पति देवा॥
तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े।
प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्वार खड़े॥
ऊँ जय बृहस्पति देवा॥
दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी।
पाप दोष सब हर्ता, भव बन्धन हारी॥
ऊँ जय बृहस्पति देवा॥
सकल मनोरथ दायक, सब संशय तारो।
विषय विकार मिटाओ, सन्तन सुखकारी॥
ऊँ जय बृहस्पति देवा॥
जो कोई आरती तेरी प्रेम सहित गावे।
जेष्टानन्द बन्द सो सो निश्चय पावे॥
ऊँ जय बृहस्पति देवा।।
Guruvar Vrat Importance (बृहस्पतिवार व्रत महत्व)
बृहस्पति देव ज्ञान और बुद्धि के देवता माने जाते हैं। उनकी आराधना से बुद्धि तेज होती है। गुरुवार का व्रत रखने से जीवन में सुख, समृद्धि, शांति आती है। वहीं लड़कियों के विवाह में आ रही अड़चने भी दूर हो जाती हैं। गुरुवार का व्रत रखने से भगवान विष्णु की भी कृपा बरसती है। साथ ही माता लक्ष्मी भी प्रसन्न रहती हैं।
Guruwar Vrat Mantra (गुरुवार व्रत के मंत्र)
- ॐ नमोः नारायणाय नमः।
- ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय नमः।
- ॐ बृं बृहस्पतये नम:।
- ॐ क्लीं बृहस्पतये नम:।
- ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:।
- ॐ ऐं श्रीं बृहस्पतये नम:।
- ॐ गुं गुरवे नम:।
Guruwar Vrat Ke Niyam (गुरुवार व्रत के नियम)
- गुरुवार को उड़द की दाल और चावल का सेवन नहीं करना चाहिए।
- व्रत वाले दिन चने की दाल, केला, पीला वस्त्र, गुड़ आदि गरीबों दान करना चाहिए।
- केले के जड़ जल अर्पण करना चाहिए।
- इस दिन केले के सेवन से परहेज करें।
- व्रत वाले दिन पूजन के समय पीले कपड़े पहनें।
- गुरुवार को दाढ़ी बनवाना, नाखून काटना, बाल कटवाना, कपड़ा धोना, सिर धोना आदि काम नहीं कराने चाहिए।
- दिनभर फलाहार व्रत रखना चाहिए।
- शाम को सिर्फ एक बार ही पीले रंग का भोजन ग्रहण करना चाहिए।
Guruwar Vrrat Kab Se Shuru Kare (गुरुवार का व्रत कब शुरू करें?)
ज्योतिषशास्त्रों के अनुसार, गुरुवार व्रत की शुरुआत किसी भी मास के शुक्ल पक्ष के पहले बृहस्पतिवार से करना अति उत्तम होता है। लेकिन, पौष मास में इस व्रत की शुरुआत न करें। आप 16 गुरुवार तक व्रत रख 17वें गुरुवार को उद्यापन कर सकते हैं। इसके अलावा गुरुवार का व्रत आप 1,3,5,7 और 9 साल या फिर आजीवन भी रख सकते हैं।
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