Gyan Mudra: ज्ञान मुद्रा अभ्यास ग्रह दोष दूर करने के साथ करता है अनिद्रा रोग का नाश, शिव नेत्र को खोलने का भी बनता है माध्यम

ज्ञान मुद्रा चलते− फिरते, सोते जागते किसी स्थिति में लगा सकते हैं। तीसरा नेत्र खाेलने का सबसे अच्छा माध्यम है ज्ञान मुद्रा। एकाग्रता के साथ बुद्धि का विकास करती है ये मुद्रा। मुद्राओं के अभ्यास से शरीर के पंच तत्वों का संतुलन आसानी से बना सकते हैं।

gyan mudra.

ज्ञान मुद्रा लगाने से बढ़ता है ज्ञान।

तस्वीर साभार : Times Now Digital
मुख्य बातें
  • स्वस्थ, संतुलित और सात्विक रखती है ज्ञान मुद्रा
  • किसी भी परिस्थिति में बैठकर लगा सकते हैं मुद्रा
  • जीवन और बुध रेखा के दोष दूर करती है ज्ञान मुद्रा
Gyan Mudra: हाथाें की उंगलियों को एक दूसरे से विशेष प्रकार से मिलाने, स्पर्श करने, दबाने या मरोड़ने से विभिन्न प्रकार की मुद्राएं बनती हैं। केवल उंगलियों को एक दूसरे के साथ किसी विशेष स्थिति में रखने या परस्पर सटा देने भर की क्रिया मात्र से ही शरीर में भिन्न भिन्न तत्वों का प्रभाव आवश्यकतानुसार घटा बढ़ा सकते हैं और पंत तत्व नियंत्रक उंगली− मुद्राओं के नियमित अभ्यास के द्वारा तत्वों में संतुलन लाकर स्वस्थ रह सकते हैं। शरीर को स्वस्थ, संतुलित और सात्विक रखने की मुद्रा होती है ज्ञान मुद्रा।

ज्ञान मुद्रा लगाने के फायदे

- ज्ञान मुद्रा किसी भी आसन या स्थिति में की जा सकती है। ध्यान के समय इसे पद्मासन में करना सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसे आप दोनों हाथाें से, चलते− फिरते, उठते− बैठते, सोते− जागते, गृहस्थी के कार्य करते समय या आराम के क्षणाें में, जब चाहें किसी भी समय, किसी भी स्थिति में और कहीं भी कर सकते हैं।
− इसे अधिक से अधिक समय तक किया जा सकता है। इस मुद्रा के लिए समय की सीमा नहीं है।
− हस्तरेखा विज्ञान की दृष्टि से, इस मुद्रा के नियमित अभ्यास से जीवन रेखा और बुध रेखा के दोष दूर होते हैं और अविकसित शुक्र पर्वत का विकास होता है।
- ज्ञान मुद्रा समस्त स्नायुमंडल को सशक्त बनाती है। विशेषकर, मानसिक तनाव के कारण होने वाले दुष्प्रभावों को दूर करके मस्तिष्क के ज्ञान तंतुओं को सबल करती है। ज्ञान मुद्रा के निरंतर अभ्यास से मस्तिष्क की सभी विक्रृतियां और रोग दूर हो जाते हैं। अनिद्रा रोग में यह मुद्रा अत्यंत कारगर सिद्ध होती है। मस्तिष्क शुद्ध और विकसित होता है। मन शांत हो जाता है। चेहरे पर अपूर्व प्रसन्नता झलकने लगती है।
− ज्ञान मुद्रा मानसिक एकाग्रता बढ़ाने में सहायक होती है। तर्जनी अंगुली और अंगूठा जहां एक दूसरे को स्पर्श करते हैं, हल्का सा नाड़ी स्पंदन महसूस होता है। वहां ध्यान लगाने से चित्त् का भटकना बंद होकर मन एकाग्र हो जाता है।
− ज्ञान मुद्रा विद्यार्थियों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। इसके अभ्यास से स्मरण शक्ति उन्नत और बुद्धि तेज होती है।
- साधना के क्षेत्र में साधक द्वारा लगतार ज्ञान मुद्रा करने से उसका ज्ञान नेत्र (शिव नेत्र) खुल सकता है। अन्तदृष्टि प्राप्त होकर छठी इंद्रिय का विकास हो सकता है। दिव्य चक्षु के खुलने से साधक त्रिकाल की घटनाओं को यथावत देख सकने और दूसरे के मन की बातें जान सकने की क्षमता प्राप्त कर लेता है।
कैसे बनती है ज्ञान मुद्रा
हाथ की तर्जनी उंगली के अग्रभाग को अंगूठे के अग्रभाग के साथ मिलाकर रखने और हल्का सा दबाव देने से ज्ञान मुद्रा बनती है। इस मुद्रा में दबाना जरूरी नहीं है। बाकी उंगलियां सहज रूप से सीधी रखें। यह अत्याधिक महत्वपूर्ण उंगली मुद्रा है। इस मुद्रा का संपूर्ण स्नायुमंडल और मस्तिष्क पर बड़ा ही अच्छा प्रभाव पड़ता है।
डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्‍स नाउ नवभारत इसकी पुष्‍ट‍ि नहीं करता है।
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