Hanuman And Shani Dev Friendship Story: कैसे हुई हनुमान जी और शनिदेव की मित्रता, जानें इसके पीछे की रोचक कहानी
Hanuman And Shani Dev Story: भगवान हनुमान भगवान राम के परम भक्त हैं। शनिदेव के प्रकोप को शांत करने के लिए साधक की सहायता हनुमान जी करते हैं। ऐसे में आइए जानें शनिदेव और हनुमान जी की मित्रता की कथा।
Hanuman And Shanidev Story
Hanuman And Shani Dev Friendship Story: हिंदू धर्म ग्रंथों में बहुत सारी रोचक कथाएं प्रचलित हैं। इन्हीं में से एक कथा राम भक्त हनुमान और शनिदेव की मित्रता की है। इस बारे में बहुत कम ही लोग जानते हैं हनुमान जी और शनिदेव एक दूसरे के परम मित्रत थे। भगवान हनुमान पवन देव के पुत्र हैं, इसलिए उन्हें पवन पुत्र हनुमान के नाम से पुकारा जाता है। वहीं शनिदेव सूर्य देव के पुत्र हैं। शनिदेव सबसे क्रूर ग्रह में से एक हैं। इनके प्रकोप से कोई नहीं बच पाता है। शनिदेव की कुदृष्टि जिस व्यक्ति पर पड़ जाती है। उसको जीवन में बहुत सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। शास्त्रों में शनि के दुष्प्रभाव से बचने के लिए हनुमान जी की उपासना करने का विधान बताया गया है। हनुमान जी की पूजा करके शनि के दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है। आज हम आपको बताने जा रहे हैं शनिदेव और हनुमान जी की मित्रता की कहानी। कैसे बने शनि हनुमान जी के मित्र।
कैसे बने हनुमान शनिदेव के मित्रपौराणिक कथा के अनुसार त्रेतायुग में रावण ने सारे ग्रहों को लंका में बंदी बनाकर रख लिया था। रावण ने शनिदेव को भी बंद बना लिया था। रावण की कैद में रहने के कारण शनि देव की शक्ति बहुत कमजोर हो गई थी। राम रावण युद्ध के दौरान हनुमान जी जब सीता माता का पता लगाते हुए लंका पहुंचे तो उन्होंने सारे ग्रह को वहां पर बंदी बना पाया। हनुमान जी जब लंका जला रहे थे तो शनिदेव ने देखा कि पूरी लंका जल रही पर अपनी शक्ति के कमजोर होनो के कारण वो वहां से कही जा नहीं सकते थे। हनुमान जी ने जब शनिदेव की ये अवस्था देखी तो उन्हें छुड़ाकर अपने साथ उड़ाकर सुरक्षित स्थान पर ले गए। उसी दिन से हनुमान और शनिदेव की परम मित्रता हो गई । जो भी साधक सच्चे शनि के प्रकोप से बचने के लिए हनुमान जी की उपासना करता है। उसको कभी भी शनि दोष का भय नहीं रहता है।
एक और कथा है प्रचलितहनुमान जी और शनिदेव की मित्रता को लेकर अनेक कथाएं प्रचलित है। प्राचनी कथा के अनुसार एक बार हनुमान जी राम भक्ति में लीन थे। उसी समय शनिदेव वहां से गुजर रहे थे, तो उनको शरारत सूझी और वो हनुमान जी के कार्य में बाधा डालने लगे। पवनपुत्र ने सूर्य पुत्र शनि को काफ समझया पर उन्होंने उनकी बात नहीं मानी। तब हनुमान जी ने शनिदेव को अपनी पूंछ में लपेट लिया और फिर से अपने राम भक्ति में लीन हो गाए। वो अपने काम में इतने मग्न हो गए कि उन्हें ध्यान ही नहीं रहा कि उन्होंने शनिदेव को अपनी पूंछ में बांध रखा है। इस कारण शनिदेव को बहुत सारी चोट आई। काम समाप्त होने के बाद हनुमान जी को याद आया कि उन्होंने शनिदेव को बांध रखा है, फिर उन्होंने अपी पूंछ से उन्हें मुक्ति किया। शनिदेव ने मुक्त होकर हनुमान जी से कार्य में बाधा डालने के लिए क्षमा याचना की। हनुमान जी ने क्षमा कर दिया। फिर शनिदेव ने उनसे सरसो का तेल मांगकर अपने चोट पर लगाया। तब से हनुमान जी और शनिदेव की मित्रता हो गई। जो भी भक्त शनिवार के दिन शनिदेव को तेल चढ़ाते हैं। उस पर शनिदेव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
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