Hanuman Jayanti 2023 Vrat Katha: हनुमान जयंती की व्रत कथा, जानें बजरंगबली की जन्म कहानी
Hanuman Jayanti 2023 Vrat Katha in Hindi: हनुमान जयंती का पर्व हर साल चैत्र पूर्णिमा (Chaitra Purnima) के दिन मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन भगवान हनुमान (Lord Hanuman) का जन्म हुआ था। यहां जानिए हनुमान जयंती की पावन कथा (Hanuman Janmotsav Katha)।
Hanuman Jayanti Vrat Katha: हनुमान जयंती की व्रत कथा
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Hanuman Jayanti Ki Vrat katha (हनुमान जयंती की व्रत कथा)
पौराणिक कथानुसार, एक बार महर्षि अंगिरा, भगवान इंद्र के देवलोक पहुंचे। वहां पर इंद्रदेव, पुंजिकस्थला नामक अप्सरा के नृत्य प्रदर्शन की व्यवस्था किए हुए थे। किंतु ऋषि को अप्सराओं के नृत्य में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी। इसलिए वह ध्यानमग्न हो गए। अंत में जब उनसे अप्सरा के नृत्य के बारे में पूछा गया तो उन्होंने ईमानदारीपूर्वक कहा कि उन्हें नृत्य देखने में कोई रुचि नहीं। अपसरा पुंजिकस्थला ऋषि की बातों को सुनकर क्रोधित हो गई। बदले में ऋषि अंगिरा ने नर्तकी को श्राप देते हुए कहा कि धरती पर उसका अगला जन्म बंदरिया के रूप में होगा। यह सुनते ही पुंजिकस्थला, ऋषि से क्षमा मांगने लगी। लेकिन ऋषि ने दिए हुए श्राप वापस नहीं लिया। तब नर्तकी एक अन्य ऋषि के पास गई। उस ऋषि ने अप्सरा को आशीर्वाद दिया कि सतयुग में विष्णु भगवान का एक अवतार प्रकट होगा। इस तरह पुंजिकस्थला का सतयुग में वानर राज कुंजर की बेटी अंजना के रूप में जन्म हुआ। फिर उनका विवाह कपिराज केसरी के साथ हुआ, जो एक वानर राजा थे। इसके बाद दोनों ने एक पुत्र यानी हनुमान को जन्म दिया, जो बेहद शक्तिशाली और बलशाली थे। इस प्रकार भगवान शिव के 11वें अवतार के रूप में हनुमान जी का जन्म हुआ। इसलिए उनके जन्मदिवस को हनुमान जंयती के रूप में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह बजरंगबली के जन्म की एक रोचक कथा है।
ज्योतिषीय गणना के अनुसार, बजरंगबली का जन्म 58 हजार 112 वर्ष पूर्व चैत्र पूर्णिमा पर मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र और मेष लग्न के योग में सुबह 6 बजे हुआ था। कहा जाता है कि हनुमान जी का जन्म भारत के झारखंड राज्य गुमला जिले के आंजन नामक छोटे से पहाड़ी गांव में एक गुफा में हुआ था। जब महावीर का जन्म हुआ था तब उनका शरीर वज्र के समान था।
हनुमान जी से जुड़ी अन्य कथा के अनुसार, सतयुग में संतान प्राप्ति के लिए राजा दशरथ ने गुरु वशिष्ठ के मार्गदर्शन में पुत्रकामेष्टि यज्ञ करवाया था। जिसे ऋगी ऋषि द्वारा संपन्न किया गया था। यज्ञ संपन्न होते ही अग्निदेव स्वयं यज्ञ कुंड से खीर का पात्र लेकर प्रकट हुए और तीनों रानियों में बांट दिया। उस समय एक चील आकर रानी कैकेयी के हाथों से खीर छीन ली और अपने मुख में भरकर उड़ गई। चील उड़ते हुए देवी अंजनी के आश्रम से होकर गुजरी। उस वक्त अंजनी ऊपर ही देख रही थी। इस तरह अंजनी के मुख मे खीर का कुछ भाग गिर गया और अनायास वह खीर को निगल गईं। इसके बाद वह गर्भवती हुईं और उन्होंने चैत्र मास की पूर्णिमा तिथि पर बजरंगबली को जन्म दिया। आगे चलकर बजरंगबली भगवान श्रीराम के परम भक्त हुए और सदैव ब्रह्मचारी बने रहे।
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धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर की रहने वाली हूं। पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। 10 साल से मीडिया में काम कर रही हूं। पत्रकारिता में करि...और देखें
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