Happy Lohri 2023, Sunder Mundriye Story: क्यों मनाते हैं लोहड़ी? जानें दुल्ला भट्टी और सुंदरी, मुंदरी की कहानी
Dulla Bhatti Sunder Mundriye Lohri Story, Kahani: अगर ये न होते तो आज लोहड़ी भी न मनाई जा रही होती, जानें लोहड़ी से जुड़ी दुल्ला भट्टी और सुंदरी, मुंदरी की कहानी।
Lohri 2023 Story: लोहड़ी पर सुनें दुल्ला भट्टी और सुंदरी, मुंदरी की कहानी
Lohri Festival Story: जब सूर्य उत्तरायण होता है तो मकर संक्रांति (Makar Sankranti) से एक दिन पहले लोहड़ी का त्योहार मनाया जाता है। किसी साल ये त्योहार 13 जनवरी को मनाया जाता है तो किसी साल 14 जनवरी को। साल 2023 में ये पर्व 14 जनवरी दिन शनिवार को मनाया जाएगा। लोहड़ी की रात को लोग एकत्र होकर आग जलाते हैं और लोहड़ी की अग्नि में खीर, मक्का, मूंगफली आदि चीजों की आहुति देते हैं। फिर लोग आग के चारों ओर घूमते हैं। ये पर्व लोग नाच-गाकर मनाते हैं। महिलाएं पारंपरिक नृत्य गिद्दा करती हैं। इस त्योहार को मनाने के पीछे भी एक लोक कथा प्रचलित है। जिसका जिक्र लोहड़ी के गीतों में भी मिलता है।
लोहड़ी से जुड़ी दुल्ला भट्टी और सुंदरी, मुंदरी की कहानी (Dulla Bhatti Or Sundari Mundari Lohri Story)
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जब भी जिक्र होता है लोहड़ी का तो सबसे पहले लोगों के जहन में दुल्ला भट्टी की कहानी आती है। इतना ही नहीं लोहड़ी के गीतों में भी इस कहानी का जिक्र मिलता है या यूं कहें कि दुल्ला भट्टी की कहानी लोहड़ी पर जरूर सुनी जाती है लेकिन अब सवाल ये उठता है कि आखिर ये दुल्ला भट्टी कौन थे? तो बता दें मुगल काल में दुल्ला भट्टी पंजाब में अकबर के समय के एक वीर योद्धा थे। दुल्ला भट्टी ने मुगलों के विरुद्ध विद्रोह का नेतृत्व किया था। उनका जन्म पंजाब क्षेत्र के एक राजपूत परिवार में हुआ था। दुल्ला भट्टी सभी पंजाबियों के नायक थे। अकबर के शासनकाल के दौरान गरीब और कमजोर लड़कियों को अमीर लोग गुलामी करने के लिए बलपूर्वक बेच देते थे। माना जाता है कि दुल्ला भट्टी ने पंजाब की लड़कियों की रक्षा की थी। बताया जाता है कि दुल्ला भट्टी ने लड़कियों को सौदागरों के चंगुल से छुड़ाकर उनकी शादी कराई थी। इसके बाद ही दुल्ला भट्टी को नायक की उपाधि से सम्मानित किया गया और हर साल लोहड़ी के दिन इनकी कहानी को सुना और सुनाया जाता है।
एक बार ऐसे ही दुल्ला भट्टी को दो गरीब बहनों सुंदरी और मुंदरी के बारे में पता चला। सुंदरी और मुंदरी को जमींदार अगवा करके ले आए थे। उन लड़कियों के माता-पिता नहीं थे। दुल्ला भट्टी को जब इस बात की भनक लगी तो उन्होंने दोनों लड़कियों सुंदरी और मुंदरी को जालिमों से छुड़ाया और उन की शादियां कराई। दुल्ला भट्टी ने लोहड़ी के दिन जंगल में लकड़ी काटकर आग लगाई और उसके चारों ओर चक्कर काटकर उन दोनों लड़कियों का विवाह कराया और कन्यादान किया। हालांकि जब दहेज या उपहार देने की बात आई तो दुल्ला भट्टी के पास उस समय कुछ नहीं था। ऐसे में उसने एक सेर शक्कर देकर दोनों को विदा किया। कहते हैं दुल्ला भट्टी ने अपने पूरे जीवन महिलाओं का सम्मान किया, गरीबों की सेवा की और अपने राष्ट्र और समुदाय के लिए योद्धा की भूमिका निभाई। कहते हैं तब से लेकर आजतक पंजाब के नायक को याद करके ‘सुंदर मुंदरिए’ लोकगीत गाया जाता है।
लोहड़ी का लोक गीत (Lohri Song Sundar Mundariye Lyrics)
सुंदर मुंदरिये हो, तेरा कौन विचारा हो,
दुल्ला भट्ठी वाला हो, दुल्ले दी धी व्याही हो,
सेर शक्कर पाई हो, कुड़ी दे जेबे पाई हो,
कुड़ी दा लाल पटाका हो, कुड़ी दा सालू पाटा हो,
सालू कौन समेटे हो, चाचे चूरी कुट्टी हो,
जमीदारां लुट्टी हो, जमीदारां सदाए हो,
गिन-गिन पोले लाए हो, इक पोला घट गया,
ज़मींदार वोहटी ले के नस गया, इक पोला होर आया,
ज़मींदार वोहटी ले के दौड़ आया,
सिपाही फेर के लै गया, सिपाही नूं मारी इट्ट, भावें रो ते भावें पिट्ट,
साहनूं दे लोहड़ी, तेरी जीवे जोड़ी.
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धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर की रहने वाली हूं। पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। 10 साल से मीडिया में काम कर रही हूं। पत्रकारिता में करि...और देखें
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