Hariyali Teej Vrat Katha: हरियाली तीज व्रत कथा पढ़ने से हर मनोकामना होगी पूर्ण
Hariyali Teej Vrat Katha: हरियाली तीज की कथा अनुसार माता पार्वती अपने पिछले 107 जन्मों की घटनाओं को पूरी तरह से भूल गई थीं। जिसे याद दिलाने के लिए भगवान शिव उन्हें कई कहानियां सुनाते हैं। जिसका हरियाली तीज की कथा में जिक्र किया गया है।
Hariyali Teej Vrat Katha
Hariyali Teej Vrat Katha And Kahani: हरियाली तीज माता पार्वती और भगवान शिव के दिव्य पुनर्मिलन का उत्सव है। इसलिए इस त्योहार का खास महत्व माना गया है। इस दिन सुहागिनें अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं तो कुंवारी कन्याएं मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए ये व्रत रखती हैं। धार्मिक मान्यताओं अनुसार हरियाली तीज वह दिन है जब माता पार्वती ने अपनी भक्ति और कठोर तपस्या से भोलेनाथ को प्रसन्न कर लिया था। जिसके बाद उनकी शादी हो गई थी। चलिए जानते हैं हरियाली तीज की व्रत कथा।
हरियाली तीज की कथा (Hariyali Teej Vrat Katha)
हरियाली तीज की कथा अनुसार माता पार्वती को अपने पिछले 107 जन्मों की कोई भी बात याद नहीं थी। इसलिए भगवान शिव देवी पार्वती को याद दिलाते हैं कि उनका दिल जीतने के लिए देवी पार्वती ने कितनी बार पुनर्जन्म लिया। भगवान शिव उन्हें उनके संघर्ष, दृढ़ संकल्प और दृढ़ता की कहानियां सुनाते हैं। 107 जन्मों के बाद माता पार्वती ने अपना 108वां जन्म हिमालय की पुत्री के रूप में लिया। इस जन्म में भी माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी और अन्न-जल त्यागकर सूखे पत्ते खाकर अपना जीवन व्यतीत करने लगी थीं।
उन्होंने अपनी तपस्या के दौरान कठोर मौसम, ओले और तूफान का सामना किया लेकिन फिर भी उन्होंने अपनी तपस्या जारी रखी। अपनी पुत्री को इतना कष्ट सहते देख उनके पिता व्याकुल हो गए। कुछ समय बाद देवर्षि नारद भगवान विष्णु के प्रतिनिधि के रूप में विवाह का प्रस्ताव लेकर देवी पार्वती के पिता के घर में आए। जब माता पार्वती के पिता को पता चला कि भगवान विष्णु उनकी पुत्री से विवाह करना चाहते हैं तो वह खुशी से झूम उठे, लेकिन इस खबर से पार्वती माता दुखी हो गईं।
तब वह अपनी एक सहेली की मदद से घने जंगल में जाकर छिप गईं। माता पार्वती के पिता हिमालय ने उन्हें ढूढने के लिए अपने सैनिकों को कोने-कोने में भेजा, लेकिन उनके सारे प्रयास विफल हो गए। उधर माता पार्वती ने अपनी तपस्या जारी रखी। इस बीच भगवान शिव पार्वती जी के सामने प्रकट हुए और उन्होंने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। लेकिन साथ ही भगवान शिव ने ये भी कहा कि वे भगवान विष्णु से विवाह न करने के निर्णय के बारे में अपने पिता को बताएं। अंततः अपनी पुत्री की इच्छा से पर्वतराज हिमालय ने उनका विवाह महादेव से करा दिया।
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धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर की रहने वाली हूं। पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। 10 साल से मीडिया में काम कर रही हूं। पत्रकारिता में करि...और देखें
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