Hartalika Teej Kyu Manate Hai: हरतालिका तीज क्यों मनाई जाती है, जानें किसने सबसे पहले रखा था तीज व्रत

Hartalika Teej Kyu Manate Hai (हरतालिका तीज क्यों मनाई जाती है): हरतालिका तीज का त्योहार माता पार्वती और भगवान शिव के मिलन का प्रतीक माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत के पुण्य प्रभाव से ही माता पार्वती को भगवान शिव की प्राप्ति हुई थी। चलिए जानते हैं हरतालिका तीज क्यों मनाई जाती है।

Hartalika Teej Kyu Manate Hai

Hartalika Teej Kyu Manate Hai (हरतालिका तीज क्यों मनाई जाती है): हरतालिका तीज का त्योहार मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड आदि राज्यों में मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। मान्यताओं अनुसार जो महिला हरतालिका तीज का व्रत करती है उसके जीवन में सदैव सुख-समृद्धि बनी रहती है। मुख्य रूप से ये व्रत पति की लंबी आयु के लिए रखा जाता है। इस व्रत में महिलाएं अन्न और जल कुछ भी ग्रहण नहीं करती हैं। चलिए जानते हैं हरतालिका तीज का त्योहार क्यों मनाया जाता है और इस दिन क्या करते हैं।

हरतालिका तीज क्यों मनाई जाती है (Hartalika Teej Kyu Manai Jati Hai In Hindi)

धार्मिक कथाओं अनुसार हरतालिका तीज का त्योहार भगवान शिव और माता पार्वती के मिलन का प्रतीक माना जाता है। सबसे पहले ये व्रत माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए किया था। कहते हैं तभी से इस व्रत को करने की परंपरा शुरू हो गई थी। ये व्रत करवा चौथ की तरह ही पति की लंबी उम्र के लिए रखा जाता है। बस अंतर इतना है कि करवा चौथ की तरह ये व्रत रात में नहीं बल्कि अगले दिन सुबह के समय खोला जाता है। इसके अलावा इस व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती की मिट्टी की मूर्ति बनाकर उसकी पूजा की जाती है। चलिए आगे जानते हैं हरतालिका तीज की कथा क्या है।

हरतालिका तीज का महत्व (Hartalika Teej Ka Mahatva In Hindi)

हरतालिका शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है हरित और तालिका। जिसमें हरित का मतलब हरण से है और तालिका का मतलब सहेली से है। कहते हैं जब माता पार्वती का विवाह उनके पिता हिमालय ने भगवान विष्णु से तय कर दिया था तो पार्वती जी को इस बात से काफी दुख हुआ था क्योंकि वे भगवान शिव से प्रेम करती थीं और उन्हें अपने पति के रूप में स्वीकार कर चुकी थीं। जब पार्वती माता की सहेलियों ने उन्हें दुखी देगा तो वे उनका हरण कर उन्हें जंगल में ले गयीं। पार्वती माता जंगल में जाकर भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तप करने लगीं। इसी दौरान भादो शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन पार्वती माता ने मिट्टी से शिवलिंग बनाया और फिर उसकी विधि विधान पूजा की। माता ने निर्जला व्रत रखा और रात्रि भर शिव की भक्ति में लीन रहीं। कहते हैं पार्वती माता के इस कठोर तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और पार्वती जी को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। कहते हैं इस दिन से ही ये व्रत रखने की परंपरा शुरू हो गई।
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