Hast Vigyan: हाथों में समाहित है आपके हर रोग और समस्या से लड़ने की शक्ति, बस पहचानें और जाने क्या है सही प्रयोग

Hast Vigyan: हाथों के हर बिंदु पर स्वायत उर्जा केंद्र होता है। कभी अनजाने में किसी का स्पर्श करता है क्रोध शांत तो किसी के स्पर्श से शांत मन में आ जाता है आवेश। उंगलियों के प्रयोग का भी है अपना विज्ञान। खिले फूल भी मुरझा सकते हैं गलत उंगलियों के स्पर्श से।

समझें हाथाें के विज्ञान को

मुख्य बातें
  • हाथाें की उर्जा से हो सकता है विविध रोगों का उपचार
  • उंगलियों के अग्र भाग की उर्जा का होता है पराउर्जा से संबंध
  • हाथाें का उष्ण होना देता है किसी पीड़ा का संकेत भी
Hast Vigyan: वैसे तो मानव शरीर अपने आप में एक प्रयोगशाला है। संसार के कितने ही उपचार साधन लगातार शरीर को स्वस्थ बनाने की चेष्टा में प्रयारत हैं। मानव अपनी आयु तक कितना स्वस्थ अपने आपको रखे इसके लिए हर देश में अपने वातावरण के अनुरूप औषधियों आदि पर शाेध लगातार हो रहे हैं। लेकिन एक चमत्कार उसके स्वयं के अंदर है जिसे वो अनेदखा कर रहा है। सनातन धर्म में ऋषि मुनि सिर्फ अपने हाथाें की मुद्रा से दूर से दूर बैठे रोगी का, स्वयं का उपचार आसानी से कर लेते थे। आज भी वो प्रयोग हम कर सकते हैं लेकिन ये तभी संभव होगा जब हम अपने हाथाें के महत्व को जानेंगे। हाथाें द्वारा बनाए जाने वाली विशेष मुद्रा को कूर्म प्रभाकर कहते हैं। ये एक सनातन विज्ञान है। इसके प्रयोग से ही उपचार किया जाता है। आइये आपको बताते हैं आपके हाथाें में छुपे चिकित्सक का रहस्य।
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  • उंगलियों के शीर्ष पर उर्जा संवेदनाओं का संबंध पराउर्जा चक्र से सदा सम्पर्क बनाए रखता है। नाखून प्रवाह उर्जा के विसरण को सुरक्षा प्रदान करते हैं और घर्षण द्वारा सतत आवेशित रखते हैं।
  • जय ये हाथ उष्ण होते हैं तब किसी पीड़ा का संकेत करते हैं। काम, आवेश, रोग से यह उष्णता आती है। अत्याधिक भय, निराशा से स्वेद निकलता है।
  • जैसे मानव का मुख उसकी मानसिकता का दर्पण होता है वैसे ही हाथ भी उसके शरीर में परिभ्रमण करती शक्ति का दर्पण हैं। उर्जावान हाथाें से स्पर्श मात्र से स्पन्दन होता है और रोग एवं हताशा से भरे हाथ का स्पर्श थकान देता है।
  • हाथाें से निकलने वाली आवेशित तरंगें प्रकाशीय नहीं होती हैं। वे अदृश्य होती हैं और त्वरित विचारों के संप्रेषण से जुड़ जाती हैं। इन्हें इन्फ्रा वेव्स कहते हैं। इसलिए कूर्म प्रभाकर में चाहे मुद्रा न बनाएं विचारों में स्वच्छता होना आवश्यक है।
  • हाथों के प्रत्येक बिंदु पर स्वायत उर्जा केंद्र होता है। अतः स्वस्ती चक्र जब जाग्रत होता है तब केंद्र पर प्रत्येक इकाइ का आवेश स्वस्ती चक्र को गति प्रदान करता है तब आवेशित धाराएं प्रशस्त होती हैं और जिस मार्ग के लिए उपयोग करना है उस पर अपना अदृश्य पुंज डालती हैं। इसलिए कभी−कभी अनजाने स्पर्श से भी क्रोध शांत हो जाता है या अचानक शांत अवस्था क्रोध में बदल जाती है।
  • आवेश की धारा में तर्जनी ऋणात्मक आवेश से मुक्त होत है। अतः बढ़ते हुए पौधे और बच्चों को तर्जनी से इंगित करना निषेध माना गया है। यहां तक कि आध्यात्मिक आवेश प्रवाह उनकी मृत्यु तक का कारण बन जाता है। ललाट को तर्जनी से स्पर्श करना शून्यता लाता है।
  • मध्यमा आवेश उत्प्रेरक होती है। इसलिए प्रत्येक कार्य में अनामिका को उत्प्रेरण देती है और तर्जनी से दूरी बनाए रखती है। अनामिका उर्जा प्रवाह का उनत केंद्र है। यह शीघ्र ही उत्तम स्थिति निर्मित कर देती है। प्राचीन समय में जब छात्र अत्याधिक शैतान होता था तब गुरुवर मध्यमा और तर्जनी के बीच किसी कुचालक वस्तु को रखकर दबाते थे। इस कारण तर्जनी और मध्यमा के बीच दूरियां बढ़ने से तनाव दूर होता था।
  • यदि आप प्रयोग करके देखें कि किसी एक पौधे या पुष्प को अनामिका और मध्यमा से स्पर्श करें और दूसरे को तर्जनी और मध्यमा से। दूसरा पौधा या पुष्प लज्दी मुरझा जाएगा।
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