Achman: पूजा शुरू करने से पहले इसलिए कराया जाता है आचमन, जानें इसका महत्‍व और शुभ लाभ

Achman: हिन्‍दू धर्म में मांगलिक कार्य और पूजा-पाठ की शुरुआत आचमन से होती है। माना जाता है कि आचमन से शरीर, मन और विचार शुद्ध होते हैं और व्‍यक्ति पूजा में बैठने योग्‍य बनता है। आचमन के बगैर शरीर को अशुद्ध माना जाता है और पूजा का कोई फल नहीं मिलता। मान्‍यता है कि आचमन के बाद ही लोगों की स्‍तुति भगवान तक पहुंच पाती है।

पूजा-पाठ में इसलिए जरूरी है आचमन, जानें महत्‍व और लाभ

मुख्य बातें
  • आचमन करने से शरीर, मन और विचार होते हैं शुद्ध
  • आचमन करने के बाद ही मिलता है पूजा का फल
  • आचमन को पूरे विधि-विधान से करना बहुत जरूरी

Achman: हिन्‍दू धर्म में होने वाले सभी मांगलिक कार्य और पूजा-पाठ की शुरुआत आचमन से होती है। आचमन संस्कृत भाषा का शब्‍द है, इसका अर्थ- मंत्रोच्चारण के साथ पवित्र जल ग्रहण करते हुए शरीर, मन और हृदय को शुद्ध कर पूजा के लिए तैयार होना। धार्मिक शास्त्रों में आचमन करने के कई विधियों के बारे में विस्‍तार से बताया गया है। आचमन के बगैर शरीर को अशुद्ध माना जाता है। पूजा का कोई फल नहीं मिलता। वहीं मान्‍यता है कि आचमन करने से शरीर और विचार पूरी तरह से शुद्ध हो जाते हैं और ऐसे लोगों की स्‍तुति भगवान तक पहुंचती है। आइये जानते हैं आचमन का महत्व और विधि।

आचमन करने का महत्व

आचमन के महत्‍व के बारे में स्मति ग्रंथ में विस्‍तार से बताया गया है। मान्‍यता है कि, आचमन के समय जलयुक्त दाहिने अंगूठे से मुंह को स्पर्श कराने से अथर्ववेद की तृप्ति होती है। मस्तक अभिषेक कराने से शिवजी की कृपा मिलती है और दोनों आंखों को स्पर्श कराने से सूर्य जागृति होते हैं। इसी तरह नासिका और कानों के स्पर्श से वायु और सभी ग्रंथियां तृप्त होती हैं।

आचमन की प्रक्रिया

पूजा शुरू करने से पहले एक तांबे के बर्तन में पवित्र गंगाजल रख लें। उसमें तुलसी दल भी डाल लें। अब भगवान का ध्‍यान करते हुए आचमनी (तांबे की छोटी चम्मच) से जल निकालकर अपनी हथेली पर रखें। इसके बाद मंत्रोच्चार के साथ उस जल को 3 बार ग्रहण करें। जल ग्रहण उपरांत अपने हाथ को माथे और कान से जरूर लगाएं। अगर किसी कारणवश आप इस तरह आचमन करने में असमर्थ हैं तो दाहिने कान के स्पर्श मात्र से भी आचमन की विधि पूरी मानी जाती है।

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