Jagannath Rath Yatra 2023: जगन्नाथ रथ यात्रा 2023 तिथि और समय, जानें इस यात्रा का इतिहास
Jagannath Rath Yatra 2023: जगन्नाथ रथ यात्रा हर साल आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को निकाली जाती है। इस रथ यात्रा का हिन्दू धर्म में बहुत महत्व माना जाता है। ऐसे में जानते हैं जगन्नाथ रथ यात्रा कब से शुरू हो रही है और इसका इतिहास क्या है।



Jagannath Rath Yatra 2023: जगन्नाथ रथ यात्रा की डेट और इसका महत्व
Jagannath Rath Yatra 2023: हर साल आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाती है। ये यात्रा गुप्त नवरात्रि (Gupt Navratri 2023) के दूसरे दिन निकलती है। इस रथयात्रा के लिए तीन अलग-अलग रथ बनाए जाते हैं। ढोल, नगाड़ों और शंखध्वनि के साथ श्रद्धालु इन रथों को खींचते हैं। जिसमें सबसे आगे बलराम जी का रथ होता है, बीच में देवी सुभद्रा का रथ तो सबसे पीछे जगन्नाथ भगवान का रथ होता है। मान्यता है कि इस रथ यात्रा में शामिल होने से भक्तों के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। जानिए जगन्नाथ रथ यात्रा की डेट और इसका महत्व।
जगन्नाथ रथ यात्रा तिथि और समय (Jagannath Rath Yatra 2023 Date And Time)
द्वितीया तिथि प्रारम्भ | 19 जून 2023 को 11:25 |
द्वितीया तिथि समाप्त | 20 जून 2023 को 01:07 |
जगन्नाथ रथ यात्रा | उदया तिथि के अनुसार जगन्नाथ रथ यात्रा का महोत्सव 20 जून को मनाया जाएगा |
- जगन्नाथ रथ यात्रा का आरंभ करने के बाद भगवान जगन्नाथ को सबसे पहले प्रसिद्ध गुंडिचा माता के मंदिर ले जाया जाता है।
- मान्यता है कि गुंडिचा भगवान कृष्ण की परम भक्त थीं और उनकी भक्ति के सम्मान में ही भगवान जगन्नाथ, बलराम जी और बहन सुभद्रा प्रत्येक वर्ष इनसें मिलने जाते हैं।
- यहां आकर भगवान 7 दिनों तक आराम करते हैं। इसके बाद भगवान जगन्नाथ की वापसी की यात्रा शुरु होती है।
- मान्यता है कि जगन्नाथ रथ यात्रा में भगवान के दर्शन करने से भक्तों की सारी परेशानियां दूर हो जाती हैं।
- 10 दिनों तक चलने वाली पुरी की ये रथ यात्रा भारत ही नहीं पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है।
- ऐसी मान्यता है कि जो लोग रथ खींचने में सहयोग करते हैं, उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।
क्यों हर साल निकाली जाती है यह रथयात्रा?
पद्मा पुराण के अनुसार एक बार जब भगवान जगन्नाथ से उनकी बहन सुभद्रा ने नगर देखने की इच्छा जताई। तब भाई जगन्नाथ और बलराम अपनी बहन को रथ पर बिठाकर नगर दिखाने निकल पड़े। इस दौरान तीनों अपनी मौसी के घर भी गए जहां वो 7 दिनों तक रुके थे। मान्यता है कि तभी से जगन्नाथ यात्रा निकालने की परंपरा शुरू हो गई थी।
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