Janeu Sanskar: सोलह संस्कार में जरूरी है जनेऊ संस्कार, मन के हर भाव को इस तरह करता है कंट्रोल
Janeu Sanskar: हिंदूी धर्म के प्रमुख 16 संस्कारों में जनेऊ धारण करना है प्रमुख। इसे यज्ञोपवीत भी कहा जाता है। यज्ञापवीत धारण करने के पीछे हैं रोचक वैज्ञानिक तथ्य भी छुपे हैं। आइये आपको बताते हैं कि कैसे जनेऊ धारण करने से दूर हो जाते हैं मानसिक और शारीरिक विकार।
मुख्य बातें
- शरीर और मन के विकारों को करता है नियंत्रित जनेऊ
- सोलह संस्कारों में कहा जाता है इसे यज्ञोपवीत संस्कार
- भाैतिक क्रिया कलापों में जनेऊ धारण करने के हैं नियम
Janeu Sanskar: यज्ञोपवीत यानी जनेऊ एक संस्कार है। इसके बाद ही ब्राह्मण बालक को यज्ञ और स्वाध्याय करने का अधिकार प्राप्त होता है। यज्ञोपवीत धारण करने के पीछे वैज्ञानिक तथ्य छुपा है। शरीर के पृष्ठ भाग में पीठ से जाने वाली एक प्राकृतिक रेखा है जो विद्युत प्रवाह की तरह कार्य करती है। यह रेखा दाएं कंधे से लेकर कमर तक स्थित होती है। यह नैसर्गिक रेखा अति सूक्ष्म नस है। इसका स्वरूप लाजवंती वनस्पति की तरह होता है। यदि यह नस संकोचित अवस्था में हो तो मनुष्य काम क्रोधादि विकारों की सीमा नहीं लांघ पाता।
मनोवृत्ति होती है जनेऊ धारण करने से शुद्ध
अपने कंधे पर यज्ञोपवीत है, इसका अहसास होने से ही मनुष्य भ्रष्टाचार से दूर रहने लगता है। यदि उसकी प्राकृतिक नस का संकोच होने के कारण उसमें निहित विकार कम हो जाएं तो ये आश्चर्य की बात नहीं है। सभी धर्माें में किसी न किसी कारणवश यज्ञोपवीत धारण किया जाता है।
आरोग्य का पोषण है यज्ञोपवित धारण
यज्ञोपवीत केवल धर्माज्ञा ही नहीं है बल्कि आरोग्ध का पोषक भी है। शांस्त्रों में दाएं कान के बारे में बताया गया है कि आदित्य, वसु, रुद्र, वायु अग्नि, धर्म, वेद, सोम एवं सूर्य आदि देवताओं का निवास दाएं कान में होने के कारण उसे दाएं हाथ से सिर्फ स्पर्श करने पर भी आचमन का फल प्राप्त होता है। दाएं कान पर यज्ञाेपवीत रखा जाए तो वो अशुद्ध नहीं होता है। अशाैच एवं मूत्र विसर्जन के समय दाएं कान पर जनेऊ रखना जरूरी है। हाथ− पैर धाेकर और कुल्ला करके ही जनेऊ कान पर से उतारें। इससे नाभि प्रदेश से ऊपरी भाग धार्मिक क्रिया के लिए पवित्र और उसके नीचे का हिस्सा अपवित्र माना गया है।
जनेऊ धारण करने का वैज्ञानिक आधार
दाएं कान को इतना महत्व जनेऊ धारण करने का इतना महत्व होने के पीछे वैज्ञानिक कारण है कि इस कान की नस, गुप्तेंद्रिय और अंडकोष का आपस में अभिन्न संबंध है। मूत्र विसर्जन के समय सूक्ष्म वीर्य स्त्राव होने ही संभावना रहती है। दाएं कान को ब्रह्मसूत्र में लपेटने पर शुक्र नाश से बचाव होता है। यदि बार− बार स्वप्न दोष होता है तो दायां कान ब्रह्म सूत्र बांधकर सोने से रोग दूर हो जाता है। यदि किसी बालक का बिस्तर में पेशाब निकल जाता है तो दाएं कान में धागा बांधने से यह प्रवृत्ति रुक जाती है।
(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)
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