Jaya Ekadashi Vrat Katha: यहां पढ़ें जया एकादशी व्रत की कथा कहानी हिंदी में
Jaya Ekadashi 2024 Vrat Katha: माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही जया एकादशी के नाम से जाना जाता है। मान्यता है इस व्रत को करने से व्यक्ति को अपने सभी पापों से छुटकारा मिल जाता है। यहां जानिए जया एकादशी व्रत की कथा।

Jaya Ekadashi Vrat Katha In Hindi
जया एकादशी की कथा (Jaya Ekadashi Vrat Katha )
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पौराणिक कथा अनुसार देवराज इंद्र स्वर्ग में राज करते थे और अन्य सभी देवगण सुखपूर्वक स्वर्ग में रहा करते थे। एक समय इंद्र नंदन वन में अप्सराओं के साथ विहार कर रहे थे। उस समय गंधर्व गा रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रही थी। इस उत्सव में माल्यवान नाम का गंधर्व लड़का और पुष्पावती नाम की एक गंधर्व लड़की भी शामिल थी। पुष्पवती माल्यवान को देखकर मोहित हो गई और उस पर काम-बाण चलाने लगी। दोनों एक दूसरे में इस तरह खो गए कि उन्होंने अपनी लय खो दी। इनके ठीक प्रकार न गाने से इंद्र देव इनके प्रेम को समझ गये और उन्होंने इसमें अपना अपमान समझ कर उनको शाप दे दिया।
इंद्र ने कहा मूर्खों! तुमने मेरी आज्ञा का उल्लंघन किया है। अब तुम दोनों स्त्री-पुरुष के रूप में मृत्यु लोक में पिशाच रूप धारण करोगे और अपने वहीं अपने कर्म का फल भोगोगे। इंद्र का ऐसा शाप सुनकर दोनों अत्यन्त दु:खी हुए और हिमालय पर्वत पर दुख में अपना जीवन व्यतीत करने लगे। उन्हें गंध, रस और स्पर्श आदि का कुछ भी ज्ञान नहीं था। मृत्यु लोक पर इन्हें भयंकर कष्ट मिल रहे थे। उन्हें एक क्षण के लिए भी नींद नहीं आती थी।
उस जगह अत्यन्त ठंड भी थी, जिससे उन्हें काफी परेशानी हो रही है। एक दिन पिशाच ने अपनी स्त्री से कहा कि हमने अपने पिछले जन्म में ऐसे कौन-से पाप किए थे, कि हमें ये दु:खदायी पिशाच योनि प्राप्त हुई। अत: हमें अब किसी भी प्रकार का पाप नहीं करना चाहिए। इस प्रकार विचार करते हुए वे दोनों बड़ी मुश्किल से अपने दिन व्यतीत कर रहे थे।
माघ मास में शुक्ल पक्ष की जया एकादशी आई। उस दिन उन्होंने कुछ भी भोजन नहीं किया था और उन्होंने सारे अच्छे-अच्छे कार्य किए। केवल फल-फूल खाकर ही उन्होंने अपना पूरा दिन व्यतीत किया और सायंकाल के समय दुखी अवस्था मे पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ गए। उस रात को अत्यन्त ठंड थी इस कारण दोनों ठंड के मारे मृतक के समान आपस में चिपटे हुए पड़े रहे। उस रात्रि को उनको निद्रा भी नहीं आई।
इस तरह से अनजाने में ही सही उन दोनों ने जया एकादशी का उपवास पूरा कर लिया। इस तरह दूसरे दिन प्रभात होते ही उन्हें पिशाच योनि से छुटकारा मिल गया। जिसके बाद अत्यन्त सुंदर गंधर्व और अप्सरा का शरीर धारण कर सुंदर वस्त्र और आभूषणों से अलंकृत होकर वे स्वर्गलोक को प्रस्थान कर दिए। स्वर्गलोक में जाकर दोनों ने देवराज इंद्र को प्रणाम किया। देवराज इंद्र उन दोनों को पहले रूप में देखकर आश्चर्यचकित हुए और उनसें पूछने लगे कि तुमने पिशाच योनि से किस प्रकार छुटकारा पाया।
माल्यवान बोले हे देवेन्द्र! भगवान विष्णु को समर्पित जया एकादशी के व्रत के प्रभाव से ही हमें पिशाच देह से मुक्ति मिली। तब इंद्र बोले कि हे माल्यवान! क्योंकि आप भगवान जगदीश्वर के भक्त हैं इसीलिए आपको मेरे द्वारा सम्मानित किया जाएगा और आप स्वर्ग में आनंद पूर्वक रह सकते हैं। इस तरह से जया एकादशी को रखने से गंधर्व लड़का-लड़की अपना जीवन सुख से जीने लगे।
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