Jyeshtha Purnima Vrat Katha: जेठ पूर्णिमा के दिन जरूर पढ़ें ये व्रत कथा, हर मनोकामना होगी पूर्ण
Jyeshtha Purnima Vrat Katha: ज्येष्ठ पूर्णिमा बेहद खास मानी जाती है। मान्यताओं अनुसार इस शुभ दिन पर ही सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण वापस पाए थे। चलिए जानते हैं जेठ पूर्णिमा की कथा क्या है।
Jeth Purnima Vrat Katha
Jeth (Jyeshtha) Purnima Vrat Katha In Hindi: वैसे तो साल में कुल 12 या 13 पूर्णिमा आती हैं लेकिन ज्येष्ठ पूर्णिमा का अपना विशेष महत्व माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं अनुसार जो भक्त इस दिन गंगा नदी में स्नान कर दान-पुण्य के कार्य करता है उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। इतना ही नहीं पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए भी ये पूर्णिमा खास मानी जाती है। इस साल ज्येष्ठ पूर्णिमा 22 जून को मनाई जाएगी। यहां आप जानेंगे ज्येष्ठ पूर्णिमा की व्रत कथा।
ज्येष्ठ पूर्णिमा पूजा विधि और शुभ मुहूर्त
जेठ पूर्णिमा व्रत कथा (Jeth Purnima Vrat Katha In Hindi)
जेठ पूर्णिमा की कथा अनुसार प्राचीन काल में राजा अश्वपति के घर कई सालों बाद एक पुत्री ने जन्म लिया। जिसका नाम सावित्री रखा गया। जब सावित्री बड़ी हो गईं तो उनके पिता यानी राजा अश्वपति ने उनके लिए वर ढूंढना शुरू कर दिया, लेकिन उन्हें अपनी बेटी के योग्य कोई वर समझ नहीं आया।तब सावित्री अपने पिता की परेशानी दूर करने के लिए खुद ही वर की तलाश में निकल गईं। फिर एक दिन उनकी नजर सत्यवान पर पड़ी और उन्होंने सत्यवान को मन ही मन अपना वर चुन लिया।
जब ये बात नारद जी को पता चली तो उन्होंने सावित्री को बताया कि सत्यवान की आयु काफ़ी कम है, इसलिए उन्हें कोई दूसरा वर ढूंढ लेना चाहिए। लेकिन सावित्री ने किसी की नहीं सुनी और उन्होंंने सत्यवान से शादी कर ली। अब दोनों साथ में खुशी खुशी रहने लगे। जब सत्यवान की मृत्यु का समय नजदीक आया तो उनके सिर में अचानक से बहुत तेज दर्द होने लगा। तब सावित्री अपने पति के सिर को अपनी गोद में रखकर सहलाने लगीं। कुछ देर बाद यमराज वहां आए और सत्यवान की आत्मा को लेकर जाने लगें। लेकिन सावित्री भी उनके पीछे चलने लगीं। इस पर यमराज ने उन्हें वापस चले जाने के लिए कहा। लेकिन सावित्री नहीं मानीं और कहने लगीं कि जहां उसके पति रहेंगे, वे भी वहीं रहेंगी।
सावित्री के पतिव्रता धर्म को देखकर यमराज प्रसन्न हुए और सावित्री से तीन वरदान मांगने के लिए कहा। तब सावित्री ने यमराज से पहले वरदान में अपने सास-ससुर की आंखों की रोशनी मांगी। दूसरे वरदान में ससुर का खोया हुआ राज-पाट मांगा और तीसरे वरदान में पति सत्यवान के पुत्रों की मां बनने का सौभाग्य मांगा। तब यमराज ने उनकी ये तीनों इच्छाएं पूरी करने का वरदान दे दिया। लेकिन सत्यवान के बिना सावित्री का पुत्रवती होना असंभव था। ऐसे में यमराज को सत्यवान के प्राण वापस लौटाने पड़े।
यमराज से वरदान प्राप्त करने के बाद सावित्री वापस उसी बरगद के पेड़ के पास चली गई, जहां उनके पति का मृत शरीर रखा था। वरदान के प्रभाव से सत्यवान जीवित हो गये, उनके सास-ससुर की आंखों की रोशनी भी वापस आ गई और ससुर को खोया हुआ राज-पाट भी मिल गया। कहते हैं तभी से ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन बरगद के पेड़ की पूजा किए जाने लगी।
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धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर की रहने वाली हूं। पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। 10 साल से मीडिया में काम कर रही हूं। पत्रकारिता में करि...और देखें
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