Jitiya Vrat 2023: जितिया व्रत के दिन क्यों धारण किया जाता है जीउतिया, जानें क्या है इसका महत्व
Jivitputrika Vrat 2023: जितिया का व्रत संतान की लंबी उम्र के लिए किया जाता है। इस दिन व्रती महिलाएं पूरे दिन 24 घंटे भूखे, प्यासे रहती हैं। ये सबसे कठिन व्रतों में से एक है। इस व्रत को करने से संतान को अच्छी सेहत मिलती है इसके साथ ही लंबी आयु का वरदान भी मिलता है। कब है जितिया व्रत। जितिया व्रत के दिन जीउतिया लॉकेट क्यों धारण किया जाता है। यहां जानें सारी जानकारी।
Jitiya Vrat 2023
Jivitputrika Vrat 2023: हिंदू धर्म में जितिया व्रत का बहुत महत्व है। ये उपवास सबसे कठिन माना जाता है। यह व्रत निर्जला रखा जाता है। व्रत के दौरान ब्रश करना और नहाना भी वर्जित है। जितिया व्रत आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन मनाया जाता है। इस वर्ष 6 अक्टूबर 2023 को रखा जाएगा और 7 अक्टूबर की सुबह इस व्रत का समापन होगा। यह व्रत महिलाएं अपने बच्चों की लंबी उम्र,उन्नति और समृद्धि के लिएरखाती हैं। इस विधि जीमूतवाहन भगवान की पूजा की जाती है। शाम के समय आंगन में बैठकर जीमूतवाहन की पूजा और कथा की जाती है। आइए जानते हैं जितिया के दिन जीउतिया लॉकेट क्यों धारण किया जाता है।
जिउतिया लॉकेट महत्वजितिया व्रत में कई तरह की वस्तुओं का उपयोग किया जाता है। उनमें से एक है जिउतिया, जो बहुत महत्वपूर्ण है। जितिया व्रत से एक दिन पहले माताएं जिउतिया बनवाती है। जिउतिया में जीमूतवाहन भगवान का आकार बना होता है उसे सोने या चांदी या किसी धागे में गुथवाया जाता है। इसका लॉकेट बनाकर जितिया के दिन महिलाएं इसे धारण करती हैं। ऐसा कहा जाता है कि जिन स्त्रियों की संतान नहीं होती वो यदि इस लॉकेट को धारण करें तो उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होती है।
कैसा होता है जिउतिया लॉकेटजितिया में जिउतिया लॉकेट बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाता है। जिउतिया लॉकेट में जीमूतवाहन भगवान का आकार बनाया जाता है। महिलाएं लाल या पीले धागे में इसे गुथवाती हैं। इस धागे में तीन गाठ बांधी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि जिनकी जितनी संतान होती है लॉकेट में उतनी ही जीमूतवाहन की तस्वीर लगाई जाती है। जितिया वाले दिन इसे सबसे पहले चीलो माता पर अर्पित किया जाता है उसके बाद इसे महिलाएं अपने गले में बांध लेती है।
जितिया व्रत पूजा विधि ( Jitiya Vrat Puja Vidhi)जीवित्पुत्रिका व्रत के दिन व्रती स्नान करके भगवान जीमूतवाह की मूर्ति के सामने धूप, दीप, चावल और फूल चढ़ाती हैं और फिर विधि-विधान से पूजा करती हैं। इसमें गाय के गोबर और मिट्टी से बनी चील और सियारिन की मूर्तियाां बनाई जाती हैं। पूजा के दौरान वे माथे पर सिन्दूर लगाती हैं और पूजा के दौरान जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा सुनती हैं। पारण के दिन कई तरह के पकवान बनाये जाते हैं, खासकर मरुआ रोटी, नोनी साग, चावल आदि।
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