Jitiya Vrat Katha Chilo Siyaro: जितिया व्रत में जरूर सुनें चील-सियार की कहानी, संतान के जीवन में बनी रहेगी खुशहाली
Jitiya Vrat Katha In Hindi (Chil-Siyar Ki Katha): जितिया व्रत में जीमूतवाहन की कथा के साथ चील-सियार की कहानी भी जरूर सुननी चाहिए। क्योंकि चील-सियार की व्रत कथा को सुनें बिना जितिया व्रत पूजा अधूरी मानी जाती है।
Jitiya Vrat Katha, Chil Aur Siyar Ki Kahani In Hindi
Jitiya Vrat Katha In Hindi (चील-सियार की कथा): जीवित्पुत्रिका व्रत अष्टमी तिथि को रखा जाता है और ये तिथि इस बार 6 अक्टूबर को पड़ी है। जितिया व्रत महिलाओं के लिए बेहद खास होता है (Chil aur siyarin ki kahani)। मान्यता है इस व्रत को करने से संतान को लंबी आयु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस व्रत में 24 घंटे तक महिलाएं अन्न और जल कुछ भी ग्रहण नहीं करती हैं। इस दिन जीमूतवाहन की कुशा से बनी प्रतिमा की पूजा होती है। जितिया व्रत पूजा के समय में चील और सियारिन की व्रत कथा पढ़ना बिल्कुल भी न भूलें (Chil-siya Vrat Katha)। यहां देखें क्या है चीज और सियार की कहानी।
जितिया व्रत कथा, चील-सिरार की कहानी (Jitiya Vrat Katha, Chil Siyar Ki Kahani)
एक वन में सेमर के पेड़ पर एक चील रहती थी और उसी के पास में वहीं झाड़ी में एक सियारिन भी रहती थी। दोनों अच्छे दोस्त थे। चील जो कुछ भी खाने को लेकर आती उसमें से सियारिन को भी खाने को देती। सियारिन भी ठीक ऐसा ही करती। एक बार वन के पास एक गांव में औरतें जिउतिया के पूजा की तैयारी कर रही थी। चिल्हो ने उस पूजा को बड़े ध्यान से देखा और इस बारे में अपनी दोस्त सियारिन को भी बताया। दोनों ने इसके बाद जिउतिया का व्रत रखा। दोनों दिनभर भूखे-प्यासे रही लेकिन रात में सियारिन को तेज भूख-प्यास सताने लगी।
भूख-प्यास से व्याकुल सियारिन को जब बर्दाश्त नहीं हुआ तो उसने जंगल में जाकर मांस और हड्डी पेट भरकर खाया। चिल्हो ने हड्डी चबाने की आवाज सुनी तो इस बारे में सियारिन से पूछा तो उसने सारी बात बता दी। चिल्हो ने सियारिन को खूब डांटा और कहा कि जब व्रत नहीं हो सकता तो इसका संकल्प क्यों लिया था। सियारिन का व्रत भंग हो गया लेकिन चिल्हो ने विधि विधान ये व्रत पूरा किया। अगले जन्म में चील और सियारन दोनों मनुष्य रूप में राजकुमारी बनकर सगी बहनें हुईं। सियारिन बड़ी बहन थी और उसकी शादी एक राजकुमार से हुई। वहीं, चिल्हो जो छोटी बहन बनी थी उसकी शादी उसी राज्य के मंत्रीपुत्र से हुई।
सियारिन रानी के जो भी बच्चे होते वे मर जाते जबकि चिल्हो के बच्चे स्वस्थ रहते। इससे उसे जलन होने लगी। ईर्ष्या के कारण सियारिन रानी अपनी बहन के बच्चों और उसके पति को मारने का प्रयास करने लगी लेकिन वह सफल नहीं हो सकी। बाद में उसे अपनी भूल का अहसास हुआ और उसने अपनी बहन से क्षमा मांगी। बहन के बताने पर उसने फिर से विधि विधान जिउतिया व्रत किया जिससे उसके भी पुत्र जीवित रहे। कहते हैं तभी से जीवित्पुत्रिका व्रत रखा जाने लगा।
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