July Masik Shivratri Katha 2024: जुलाई मासिक शिवरात्रि पर करें इस व्रत कथा का पाठ, हर मनोकामना होगी पूरी

July Masik Shivratri Katha 2024: मासिक शिवरात्रि का व्रत हर महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन रखा जाता है। इस दिन शिव जी की विधिवत पूजा की जाती है। ऐसे में यहां पढ़ें जुलाई मासिक शिवरात्रि की कथा हिंदी में।

Masik Shivratri Katha 2024
July Masik Shivratri Katha 2024: इस साल जुलाई मासिक शिवरात्रि का व्रत 4 जुलाई यानि आज के दिन रखा जा रहा है। इस दिन पूरे विधि- विधान के साथ भगवान महादेव की पूजा- अर्चना की जाती है। मासिक शिवरात्रि पर शिव जी और पार्वती जी की पूजा करने से और व्रत रखने से साधक के सारे काम बन जाते हैं। शास्त्रों में भी शिवरात्रि को शिव जी की पूजा के लिए विशेष माना गया है। मासिक शिवरात्रि का व्रत हर मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को रखा जाता है। मासिक शिवरात्रि पर कथा का पाठ करने से साधक को मनवांछित फल की प्राप्ति होती है और उसपर शिव जी की कृपा बनी रहती है।

July Masik Shivratri Katha (जुलाई मासिक शिवरात्रि कथा)

पौरिणक कथा के अनुसार एक समय की बात है चित्रभानु नाम का एक शिकारी जानवरों की हत्या करके अपने और अपने परिवार का पालन पोषण करता था। शिकारी क साहूकार से कर्जा ले रख था। कर्जा ना चुकाने पर साहूकार ने शिकारी को बंदी बना लिया था। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी। शिकारी ध्यानपूर्वक शिव जी की कथा सुनने लगा। शाम को साहूकार ने शिकारी को बुलवाया और कर्ज चुकाने को कहा। शिकारी ने कहा कि आप मुझे छोड़ दें। मैं अगले दिन सारा कर्ज चुका दूंगा। वादा करके शिकारी चला गया।
हर रोज की तरह वो जंगल में शिकार करने के लिए पहुंचा, लेकिन पूरे दिन बंदी बने रहने के कारण उसे भूख, प्यास लग गई। वो शिकार करने के बेल के वृक्ष पर बैठकर पड़ाव बनाने लगा। तभी उसमे से बहुत सारे बेलपत्र बेल के पेड़ के नीचे ढके हुए शिवलिंग पर गिर गए। इस बात का शिकारी को पता भी नहीं चला। इस तरह पूरे दिन व्रत रख कर शिकारी ने शिव जी को बेलपत्र चढ़ा दिया। रात के समय एर पहर बीत जानें के बाद एक गर्भिणी मृगी तालाब के पास पहुंची। तब शिकारी ने शिकार करने के लिए प्रत्यंचा चढ़ाई। मै गर्भवती हूं जल्दी ही मैं एक मृग को जन्म दूंगी तुम मुझे मत मारों। मैं अपने बच्चे को जन्म देते ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी तब तुम मुझे मार देना। यह सुनकर शिकारी ने उसे छोड़ दिया। ऐसा करते ही फिर बेलपत्र टूटकर शिवलिंग पर गिर गए। ऐसा करने से उसकी पहले पहर की भी पूजा पूरी हो गई। रात में दूसरे पहर में हिरणी दिथी। शिकारी को देखकर वो उससे निवेदन करने लगी । में अभी पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं, मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तु्म्हारे पास आ जाऊंगी। शिकारी ने उसको भी जानें दिया। रात का आखिरी पहर बीत रहा था। इस बार भी धनुष से शिवलिंग पर बेलपत्र जा गिरे थे। ऐसे में शिकारी की तीनों पहर की पूजा पूरी हो गई। मृगी अपने बच्चे के साथ उधर से निकली शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष चढ़ाया तभी मृगी बोली
मैं इन बच्चों को पिता के हवाले करके लौट आऊंगी। इस समय मुझे मात मारों शिकारी हंसकर बोला सामने आए शिकारी को छोड़ दूं मैं ऐसा मूर्ख नहीं हूं। इससे पहले भी मैं दो बार शिकारी छोड़ चूका हूं। मृगी ने कहा मेरा विश्वास करों पर तुरंत लौटकर आती हूं। उसने उसे जानें दिया। शिकारी के अभाव में शिकारी बेलपत्र को ही तोड़कर नीचे फेंकता रहा। शिकारी ने सोच रखा था वो शिकारी जरूर करेगा। तभी शिकारी शिकारी से सामने मृग आ गया और शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखक विनती करने लगा। यदि मुझसे पहले तुमने तीन मृगियों को छोड़ दिया है और सबकों मार डाला है तो मुझे भी मार दो। ताकि उनके वियोग में मुझे ना रहना पड़े मैं उनका पति हूं।
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