Jyeshtha Purnima vrat katha: यहां पढ़ें पूर्णिमा की व्रत कथा, देखें ज्येष्ठ पूर्णिमा के सिद्ध व्रत की पूरी कहानी

Jyeshtha Purnima vrat katha (पूर्णिमा व्रत की कथा): हर साल ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर ज्येष्ठ पूर्णिमा का व्रत रखा जाता है, इस दिन सच्चे मन से जो कोई भी जातक व्रत और कथा करते हैं, भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और चंद्रदेव अवश्य ही उनकी मनोकामना पूर्ण करते हैं।

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Jyeshtha Purnima 2023 vrat katha (पूर्णिमा व्रत की कथा): सनातन धर्म में कथा पाठ करने का और साथ ही विधि पूर्वक व्रत रखने का बहुत महत्व होता है। ऐसा ही एक सिद्ध व्रत ज्येष्ठ पूर्णिमा का भी है, जिस दिन व्रत रख श्रद्धालु अपने ईश्ट देव की प्रार्थना करते हैं, उनके लिए तप करते हैं। और उन्हीं का आशीर्वाद प्राप्त कर जातकों के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है। इस साल रविवार 4 जून के दिन ज्येष्ठ पूर्णिमा या जेठ पूर्णिमा का त्योहार मनाया जाएगा। अगर आप भी विधिपूर्वक ज्येष्ठ पूर्णिमा का व्रत संपन्न करना चाहते हैं, तो यहां देखें पूर्णिमा व्रत की सिद्ध कथा क्या है और व्रत की पूरी कहानी।

ज्येष्ठ पूर्णिमा व्रत कथा, Purnima Vrat ki Kathaपौराणिक कथा के अनुसार, एक बार अश्वपति नाम का एक राजा था, जिसकी केवल एक ही संतान थी। राजा अश्वपति की इकलौती संतान देवी सावित्री बहुत ही प्रभावशाली लड़की थीं। देवी सावित्री को राजा अश्वपति और महारानी ने बड़े ही प्यार और दुलार के साथ पाला था। फिर जब लाड़ों में पली बढ़ी सावित्री विवाह योग्य हुई, तब राजर्षि अश्वपति ने सावित्री से अपने लिए वर चुनने को कहा। पिता की आज्ञा का पालन कर सावित्री ने द्युमत्सेन के बेटे सत्यवान को अपने लिए बेहतरीन माना। हालांकि विवाह के मध्य ही नारद जी ने अश्वपति को सत्यवान के अल्पायु होने के बारे में बताया था। सत्यवान की आयु को लेकर श्री नारद मुनी ने बताया था कि, विवाह के एक साल बाद ही सत्यवान का मृत्यु को प्राप्त हो जाना निश्चित है। नारद मुनी की यह बात सुनकर राजर्षि अश्वपति भयभीत हो गए और बेटी सावित्री को दूसरा पति चुनने के लिए अनुरोध करने लगे, लेकिन बेटी सावित्री को पिता की बात मंजूर न थी। बेटी तक हट के आगे राजा अश्वपति की एक न चली और फिर उसके बाद ही निश्चित समय पर सावित्री का विवाह सत्यवान से विधिपूर्वक संपन्न हो गया। शादी के बाद सावित्री सत्यवान और उसके माता पिता के साथ जंगल में रहने लगी।

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देवी सावित्री अपने पति सत्यवान की लंबी आयु के लिए रोज ही विधिवत तरीके से व्रत रखने लगी। लेकिन जब नारद मुनी की भविष्यवाणी के अनुसार, जब सत्यवान के जीवन का अंतिम दिन आया तो उस दिन सावित्री भी उनके साथ लकड़ी काटने वन गईं थी। लकड़ी काटने के लिए सत्यवान एक पेड़ पर चढ़ने लगे, तभी उनके सिर में तेज दर्द हुआ। दर्द के कराह कर सत्यवान पेड़ से नीचे उतरे और एक घनी छाया वाले बरगद के पेड़ के नीचे पत्नि सावित्री की गोद में लेट गए। पत्नि की गोद में लेटे लेटे ही सत्यवान ने अपने प्राण त्याग दिए। फिर उसके बाद सत्यवान के प्राण लेने के लिए यमराज का आगमन हुआ, जब यमराज सत्यवान के प्राण लेकर जाने लगे, तो सावित्री भी उन्हीं के साथ चलने लगी। यमराज ने देवी सावित्री को बहुत मना किया लेकिन सावित्री के प्यार और समर्पण के आगे यमराज की एक न चली।

Hindi me 2023 Jyeshtha Purnima ki Kahani

सावित्री की जिद देखते हुए यमराज ने उनसे कोई भी तीन वरदान मांगने को कहा। यमराज द्वारा कही गई शर्त की ये बात सुनकर सावित्री ने 100 पुत्रों की माता बनने का अपनी कोख से जन्म देने का वरदान मांग लिया। लेकिन यमराज द्वारा दिया गया ये वरदान तभी पूरा होकर फलित हो पाता, जब यमराज उसके पति सत्यवान को ज़िंदा कर देते हैं। अब यमराज सावित्री को दिए गए अपने वचन से बंधे हुए थे, उसी वचन का मान रखते हुए उन्होंने सावित्री के पति सत्यवान के प्राण दोबारा लौटा दिए। प्राण लौटाने के बाद सत्यवान फिर से जीवित हो उठे, तभी से सभी सुहागन महिलाएं हर साल ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन ये सिद्ध व्रत रखती हैं, ताकि उनके भी पति की आयु लंबी हो और उन्हें सुखी दांपत्य जीवन का आशीर्वाद प्राप्त हो।

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