Kabir Amritwani: संत कबीरदास जी की अमृतवाणी में छिपा है जीवन का सार, आप भी सुनें जीवन की नैया हो जाएगी पार
Kabir Amritwani: आज संत कबीरदास जी की जयंती मनाई जा रही है। कुछ तथ्यों अनुसार कबीर दास जी का जन्म सन् 1398 में हुआ था। इनकी संत प्रवृति, सरलता और साधु स्वभाव के चलते लोग उन्हें बहुत मानते थे। चलिए जानते हैं संत कबीर दास जी के अनमोल विचार।
Kabir Amritwani Ke Dohe In Hindi
Kabir Amritwani (कबीर अमृतवाणी): 'कबीर मंब पंछी भया, जहां मन तहां उड़ि जाई, जो जैसी संगति कर, सो तैसा ही फल पाई' कबीरदास जी ने इस दोहे के माध्यम से अच्छी संगति की नसीहत दी है। ऐसे ही न जाने कितने दोहे और रचनाओं के माध्यम से संत कबीर दास जी ने लोगों का मार्गदर्शन करने का काम किया है। इनके द्वारा कही गई बातें आज भी लोगों के दिलोदिमाग में बसी हुई हैं। कबीर दास जी की अमृतवाणी मुश्किलों से निकालने का काम करती हैं। बता दें हर साल ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन कबीरदास जी की जयंती मनाई जाती है। जो इस साल 22 जून को मनाई जा रही है।ऐसे में इस शुभ अवसर पर इनकी अमृतवाणी जरूर सुनें या पढ़ें।
Kabir Amritwani (कबीर अमृतवाणी)
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
अर्थ- इस दोहे के माध्यम से कबीरदास जी जीवन की एक बहुत बड़ी सीख दे रहे हैं वे कह रहे हैं कि जब इस संसार में मैं बुराई को ढूंढने निकला, तो मुझे कोई भी बुरा नहीं मिला। लेकिन जब मैंने अपने मन में झांक कर देखा, तो पाया मुझसे ज़्यादा बुरा और कोई नहीं है। अर्थात व्यक्ति हमेशा दूसरे में ग़लतियां ढूंढने की कोशिश करता है लेकिनउसे पहले अपने अंदर झांक कर देखना चाहिए।
निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।
कबीर दास जी इस दोहे में बता रहे हैं कि जो लोग हमारी निंदा करते हैं उनसे दूर भागने की बजाय उनके पास ही रहना चाहिए। क्योंकि ऐसे लोग बिना साबुन और पानी के हमारी कमियों को हमें बताकर हमारे स्वभाव और चरित्र को निखारने यानी साफ करने की कोशिश करते हैं।
बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ॥
इस दोहे में कबीर दास जी कह रहे हैं कि खजूर के पेड़ जितना बड़ा होने से क्या लाभ, जो ठीक से छांव न दे पाता हो और ना ही उस पर फल लगता हो। इसका मतलब है कि व्यक्ति चाहे कितना ही बड़ा हो जाए उसे हमेशा विनम्र रहना चाहिए।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
अर्थात- संत कबीर दास जी इस दोहे में कह रहे हैं कि किताबी ज्ञान हासिल कर के संसार में न जाने कितने लोग मृत्यु के दरवाज़े तक पहुंच गए, लेकिन उनमें से कोई विद्वान न हो सके। लेकिन अगर इसकी जगह कोई व्यक्ति प्रेम के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी से पढ़ ले, यानि प्यार के वास्तविक रूप को समझ ले, तो वही मनुष्य सच्चा ज्ञानी होता है।
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लवीना शर्मा author
धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर की रहने वाली हूं। पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। 10 सा...और देखें
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