Kabir Das Ke Dohe: बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय...कबीर दास जयंती पर देखिए इनके प्रसिद्ध दोहे
Kabir Das Ji Ke Dohe In Hindi (कबीर दास जी के दोहे): हर साल ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन कबीर दास जयंती मनाई जाती है। मान्यताओं अनुसार इस दिन कबीरदास जी का जन्म हुआ था। इस शुभ अवसर पर जानते हैं संत कबीर दास जी के दोहे।

Kabir Das Ke Dohe Arth Sahit
Kabir Das Ke Dohe (कबीर दास जी के दोहे): 'बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय। जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय॥' ये संत कबीर दास जी का बेहद लोकप्रिय दोहा है जो हमें जीवन के बारे में बहुत बड़ी सीख देता है। इस दोहे के माध्यम से कबीर दास जी कह रहे हैं कि जब मैं इस दुनिया में बुराई खोजने गया, तो मुझे कोई भी बुरा नहीं मिला लेकिन जब मैंने खुद के अंदर झांका तो मुझे खुद से ज्यादा बुरा कोई इंसान समझ नहीं आया। सरल शब्दों में समझे तो हर कोई हमेशा एक-दूसरे में बुराई निकालने की कोशिश करता है लेकिन अपने पर कभी ध्यान नहीं देता। जबकि सबसे पहले हमें अपने अंदर की बुराइयों को खोजने की जरूरत है तभी हमारा जीवन सरल और सुखी रह सकेगा। संत कबीर दास जी ने यही नहीं बहुत से प्रसिद्ध दोहे लिखे हैं जो इस प्रकार हैं...
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Kabir Das Ke Dohe (कबीर दास जी के दोहे)
-धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय। माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय॥
अर्थ- इस दोहे का अर्थ है धैर्य रखें धीरे-धीरे सब काम पूरे हो जाते हैं, जैसे अगर कोई माली किसी पेड़ को सौ घड़े पानी से भी सींचे तब भी फल तो ऋतु आने पर ही लगेगा।
-साईं इतना दीजिए, जा मे कुटुम समाय। मैं भी भूखा न रहूं, साधु ना भूखा जाय।।
अर्थ- कबीर दास जी कहते हैं कि परमात्मा तुम मुझे इतना दो कि जिसमें मेरा गुजरा चल जाए, मैं खुद भी अपना पेट पाल सकूं और आने वाले मेहमानों को भी भोजन करा सकूं।
गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पांय। बलिहारी गुरु आपनो, गोविन्द दियो बताय।।
अर्थ - कबीर दास जी कहते हैं कि शिक्षक और भगवान अगर साथ में खड़े हैं तो सबसे पहलो गुरु के चरण छूने चाहिए, क्योंकि ईश्वर तक पहुंचने का रास्ता भी गुरु ही दिखाते हैं।
ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोए, औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए
अर्थ- कबीर दास जी कहते हैं व्यक्ति को हमेशा ऐसी बोली बोलनी चाहिए जो सामने वाले को अच्छा लगे और खुद को भी आनंद की अनुभूति हो।
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर। पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।।
अर्थ- जिस प्रकार खजूर का पेड़ ऊंचा होते हुए भी किसी राही को छाया नहीं दे सकता है और उसके फल भी इतने ऊपर लगते हैं कि आसानी से वो तोड़े नहीं जा सकते हैं। उसी प्रकार आप कितने भी बड़े आदमी क्यों न बन जाए लेकिन आपके अंदर अगर विनम्रता नहीं है तो आपका बड़ा होने का कोई अर्थ नहीं है।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
अर्थात- कबीर दास जी कहते हैं कि किताबी ज्ञान हासिल करके ना जाने कितने लोग मृत्यु के दरवाजे तक पहुंच गए, लेकिन उनमें से कोई विद्वान न हो सका। लेकिन अगर कोई व्यक्ति प्रेम के सिर्फ ढाई अक्षर ही अच्छी तरह से पढ़ ले तो वही मनुष्य सच्चा ज्ञानी होता है।
-चिंता ऐसी डाकिनी, काट कलेजा खाए। वैद बिचारा क्या करे, कहां तक दवा लगाए।।
अर्थ- कबीर दास जी कहते हैं कि चिंता एक ऐसी डायन है जो व्यक्ति का कलेजा काट कर खा जाती है। इसका इलाज वैद्य भी नहीं कर सकता। वह कितनी दवा लगाएगा।
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धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर की रहने वाली हूं। पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। 10 साल से मीडिया में काम कर रही हूं। पत्रकारिता में करि...और देखें

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