कैलाश मंदिर, औरंगाबाद, महाराष्ट्र
तस्वीर साभार : Times Now Digital
मुख्य बातें
- अजता एलोरा की गुफाओं में बना है कैलाश मंदिर
- पारंपरिक पूजा से इतर होती है यहां ध्यान साधनाएं
- 18 वर्ष में ही हो गया था अद्भुत मंदिर का निर्माण
Kailash Mandir Aurangabad: आदियोगी भगवान शिव के अगर आप भक्त हैं और उनके परमधाम कैलाश जाना चाहते हैं लेकिन परिस्थितियों के वश नहीं जा पा रहे हैं तो परेशान न हों। भारत में ही कैलाश महादेव का दूसरा प्रतिरूप भी स्थित है। जी हां, कैलाश महादेव। जिसे कैलाश मंदिर के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि ये मंदिर एक ही पर्वत को काटकर, विशेष रूप से उपर की ओर से नीचे की तरफ काटकर बनाया गया है। इस मंदिर की अद्भुदता इतनी है कि हर वर्ष लाखाें लोग यहां के दर्शन करने आते हैं। मंदिर की खास बात ये है कि इस मंदिर में किसी तरह की पारंपरिक पूजा आदि नहीं होती लेकिन मंदिर की उर्जा को आत्मसात किया जाता है ध्यान के द्वारा।
महाराष्ट्र का औरंगाबाद जिला। जहां बनी हैं अजंता एलोरा की गुफाएं। एलोरा गुफाओं की श्रंखला में बना है कैलाश मंदिर। ट्रेन से आप औरंगाबाद स्टेशन पहुंच सकते हैं। यहां से टैक्सी करके जैसे ही आप अजंता एलोरा पहुंचेंगे तो एक अलग ही उर्जा आपको अपनी ओर खींचेगी। गुफाएं तो संसार भर में प्रसिद्ध हैं लेकिन इन्हीें गुफाओं के मध्य बना कैलाश मंदिर आध्यात्मिक स्तर के कारण एक अलग ही पहचान रखता है। यूं तो मंदिर के पास बुद्ध और जैन मंदिर भी बने हैं लेकिन भगवान शिव का कैलाश मंदिर आपको एक विशेष अनुभव कराता है। हां विशेष, जिसे आप कहीं और नहीं पा सकते। ये मंदिर एक रथ के आकार का बना है। यहां पर बैठकर किया गया ध्यान कुंडिलिनी जागरण में महत्वपूर्ण होता है।
कैलाश मंदिर निर्माण का रहस्य
इतिहास में अंकित दस्तावेजों के अनुसार कैलाश मंदिर का निर्माण राष्ट्रकूट वंश के राजा कृष्ण प्रथम ने 756 से 773 के मध्या कराया था। मंदिर की वास्तु कला को देखकर ये नहीं कहा जा सकता कि इसका निर्माण सिर्फ 18 साल के भीतर हो गया होगा। मंदिर निर्माण संबंधित यहां मान्यता है कि एक बार राजा बीमार हुए। उनके स्वस्थ होने के लिए रानी ने भगवान शंकर से प्रार्थना की और कहा कि राजा के सही होने पर वो मंदिर निर्माण कराएंगी। मंदिर का शिखर देखने तक के लिए उन्होंने संकल्प लिया। राजा के स्वस्थ होने के बाद जब बारी आयी मंदिर निर्माण का संकल्प पूरा करने की तब जल्द से जल्द संकल्प पूरा करने के लिए रानी ने भगवान शिव से प्रार्थना कर सहायता मांगी। इसके बाद उन्हें प्राप्त हुए भूमिअस्त्र प्राप्त हुआ। इसकी सहायता से पत्थर को भी भाप बनाया जा सकता था। इसी अस्त्र का प्रयोग मंदिर निर्माण कम समय में संभव हो सका। मंदिर को तोड़ने की, उसे नुकसान पहुंचाने की मुगल आक्रांता औरंगजेब ने बहुत बार कोशिश की लेकिन छोटी मोटी क्षति के अलावा वो कुछ न कर सका।
कैलाश मंदिर की विशेषता
276 फीट लंबे और 154 फीट चौड़े मंदिर को एक ही पहाड़ काटकर बनाया गया। वैसे तो पहाड़ काटकर जब मंदिर का निर्माण किया जाता है तो वो सामने की ओर से तराशा जाता है लेकिन 90 फीट उंचे इस मंदिर को उपर से नीचे की ओर तराश कर बनाया गया। एक ही पत्थर से निर्मित होने वाली विश्व की सबसे बड़ी इमारत है ये मंदिर। कहा जाता है कि मंदिर निर्माण में उपयोग में आये भूमि अस्त्र व अन्य आज भी मंदिर के नीचे गुफाओं में छुपे हैं। इस वजह से मंदिर की बहुत सी गुफाओं को बंद कर दिया गया है।
(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)