Kamada Ekadashi Vrat Katha: भगवान विष्णु देते हैं अपने भक्तों को कामदा एकादशी पर आशीर्वाद, पढ़िए इस पावन तिथि की व्रत कथा यहां
Kamada Ekadashi Vrat Katha (कामदा एकादशी व्रत कथा): कामदा एकादशी व्रत हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति को सभी प्रकार के दोषों से मुक्ति मिलती है। ये व्रत पति-पत्नी के रिश्ते को भी मजबूत करता है। कामदा एकादशी का व्रत मोक्षदायक और पुण्यफलदायी माना गया है। ऐसे में यहां पढ़ें इस व्रत की पावन कथा को।

Kamada Ekadashi Vrat Katha
Kamada Ekadashi Vrat Katha (कामदा एकादशी व्रत कथा): कामदा एकादशी का व्रत हिंदू धर्म में अत्यंत ही पावन और पुण्यदायी मानी जाती है। ये व्रत चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। कामदा एकादशी इस बार मंगलवार 8 अप्रैल, 2025 को पड़ रही है। इस दिन भगवान श्रीहरि की विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है। ऐसा विश्वास है कि जो व्यक्ति श्रद्धा और विधिपूर्वक इस व्रत को करता है, उसे समस्त पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। ये एकादशी व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए फलदायक माना जाता है जो जीवन में सुख, शांति और रिश्तों में सुधार की कामना रखते हैं। पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार, इस व्रत को करने से ब्रह्महत्या जैसे महापाप से भी मुक्ति मिल सकती है। यही नहीं, ये व्रत पति-पत्नी के प्रेम संबंधों को भी मजबूत बनाता है और दांपत्य जीवन में मधुरता लाता है। चलिए जानते हैं कामदा एकादशी व्रत कथा के बारे में।
कामदा एकादशी व्रत कथा (Kamada Ekadashi Vrat Katha)
महाभारत काल में धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण से कहते हैं, हे भगवन! मैं आपको कोटि-कोटि प्रणाम करता हूं। अब आप कृपा कर के चैत्र शुक्ल एकादशी का महात्म्य कहिए। भगवान श्री कृष्ण युधिष्ठिर से कहते हैं कि हे धर्मराज! ये प्रश्न एक समय राजा दिलीप ने गुरु वशिष्ठ से भी पुछा था और जो समाधान गुरु वशिष्ठ ने कहा वो मैं आपसे कहता हूं। प्राचीनकाल में भोगीपुर नगर में पुण्डरीक नामक एक राजन राज्य करते थे। भोगीपुर नगर में अनेक अप्सरा, किन्नर तथा गंधर्व वास करते थे तथा राजा पुण्डरीक का दरबार किन्नरों व गंधर्वो से भरा रहता था, जो गायन और वादन में निपुण और योग्य थे। वहां रोज ही गंधर्वों और किन्नर का गायन होता रहता था।
भोगीपुर नगर में ललिता नामक रूपसी अप्सरा और उसका पति ललित नामक श्रेष्ठ गंधर्व का वास था। दोंनों के बीच अटूट प्रेम और आकर्षण था, वे सदा एक दूसरे का ही स्मरण किया करते थे। एक दिन गंधर्व 'ललित' दरबार में गायन कर रहा था कि अचानक उसे अपनी पत्नी ललिता की याद आ गई। इससे उसका स्वर, लय एवं ताल बिगड़ने लगे। इस त्रुटि को कर्कट नामक नाग ने जान लिया और यह बात राजा पुण्डरीक को बता दी। राजा को गंधर्व ललित पर बड़ा क्रोध आया। राजा पुण्डरीक ने गंधर्व ललित को राक्षस होने का श्राप दे दिया। ललित सहस्त्रों वर्ष तक राक्षस योनि में घूमता रहा। उसकी पत्नी भी उसी का अनुसरण करती रही। अपने पति को इस हालत में देखकर वह बड़ी दुःखी होती थी। कुछ समय पश्चात घूमते-घूमते ललित की पत्नी ललिता विन्ध्य पर्वत पर रहने वाले ऋष्यमूक ऋषि के पास गई और अपने श्रापित पति के उद्धार का उपाय पूछने लगी।
ऋषि को उन पर दया आ गई। उन्होंने चैत्र शुक्ल पक्ष की कामदा एकादशी व्रत करने का आदेश दिया। उनका आशीर्वाद लेकर गंधर्व पत्नी अपने स्थान पर लौट आई और उसने श्रद्धापूर्वक कामदा एकादशी का व्रत किया। एकादशी व्रत के प्रभाव से इनका श्राप मिट गया और दोनों अपने गंधर्व स्वरूप को प्राप्त हो गए।
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हरियाणा की राजनीतिक राजधानी रोहतक की रहने वाली हूं। कई फील्ड्स में करियर की प्लानिंग करते-करते शब्दों की लय इतनी पसंद आई कि फिर पत्रकारिता से जुड़ गई।...और देखें

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