Kanwar Yatra 2023: कब से शुरू हो रही कांवड़ यात्रा 2023, जानिए इसकी डेट, मुहूर्त, नियम और इतिहास
Kanwar Yatra 2023 Date: कांवड़ यात्रा भगवान शिव को समर्पित एक अनुष्ठान है, जो श्रवण मास में किया जाता है। इस दौरान भक्त तीर्थ स्थानों जैसे हरिद्वार, गौमुख व गंगोत्री, काशी विश्वनाथ, बैद्यनाथ, नीलकंठ और देवघर के अलावा कई स्थानों से गंगाजल भरकर अपने स्थानीय शिव मंदिरों में अर्पित करते हैं। यहां जानिए इसबार कांवड़ यात्रा की डेट, नियम विधि महत्व और इतिहास इन हिंदी।
Kanwar Yatra 2023 Date, Muhurat
Kanwar Yatra 2023 Date Time Shubh Muhurat Vidhi Niyam in hindi: कांवड़ यात्रा भगवान शिव को समर्पित एक वार्षिक तीर्थ यात्रा है, जो हर साल सावन के महीने में शुरू होता है। इस तीर्थ यात्रा के दौरान भक्त कांवड़ में हरिद्वार, गौमुख व गंगोत्री, सुल्तानगंज में गंगा नदी, काशी विश्वनाथ, नीलकंठ, बैद्यनाथ और देवघर सहित अन्य स्थानों से गंगाजल भरकर मूल स्थान पर लाकर भगवान शिव को अर्पित किया जाता है। इस दौरान श्रद्धालु गंगाजल भरने के बाद सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा पैदल चल कर करते हैं और अंत में पवित्र गंगाजल से शिव जी का अभिषेक करते हैं। साथ ही सच्चे मन से भगवान शिव को बेलपत्र, भांग, धतूरा, दुर्वाघास आदि अर्पित करते हैं। सावन में होने वाले कांवड़ यात्रा का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। आइए जानते हैं इस साल कांवड़ यात्रा कान से शुरू होने जा रहा है। साथ ही इसके इतिहास, नियम और महत्व को भी जानेंगे।
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कांवड़ यात्रा 2023 कब से कब तक, Kanwar Yatra 2023 Start And End Date:
कांवड़ यात्रा हर साल पूर्णिमा पंचांग पर आधारित सावन माह के कृष्ण पक्ष के प्रथम दिन यानी प्रतिपदा से ही प्रारंभ हो जाती है। इस साल यह 04 जुलाई 2023 दिन मंगलवार से शुरू होने जा रहा है। वहीं, इसका समापन 16 जुलाई 2023 दिन रविवार को होगा।
कांवड़ यात्रा की विधि और नियम, Kanwar Yatra Vidhi Niyam:
- कांवड़ यात्रा में भक्त यानी कंवरिया को बिना अन्न और नमक सेवन किए बिना ही पूरी करनी चाहिए।
- कांवड़ एक खोखले बांस को कहते हैं, जिसे कंधे पर धारण किए कंवरिया को अपनी यात्रा पूरी करनी होती है।
- यात्रा के दौरान कांवड़ को जमीन पर नहीं रखना चाहिए।
- कांवड़ यात्रा को पूर्ण और सफल बनाने के लिए शिव जी पर जल अर्पण करने के बाद ही घर लौटना चाहिए।
- कांवड़ यात्रा शिव भक्तों के लिए कठिन यात्रा है जिसे बिना जल किए पूरा करना होता है।
- यात्रा करने के बड़ा शिव जी पर गंगाजल शिवरात्रि के दिन ही अर्पण किया जाता है।
- संभव हो तो यह यात्रा नंगे पैर करें, इससे भगवान बहुत जल्दी प्रसन्न होते हैं। हालांकि ये आप पर निर्भर करता है।
- इस पूरी यात्रा के दौरान कांवरियों को भोलेनाथ का ध्यान लगाना चाहिए।
कांवड़ यात्रा का इतिहास, Kanwar Yatra History:
हिन्दू पुराणों के अनुसार, कांवड़ यात्रा समुद्र मंथन से संबंधित है। मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान भगवान शिव ने जब जहर का सेवन किया था तब शिव जी नकारात्मक ऊर्जा से पीड़ित हुए थे। उन्हें ठीक करने के लिए त्रेता युग में रावण ने भगवान शिव का स्मरण करते हुए वह गंगा के पवित्र जल को कांवड़ का इस्तेमाल करके लाया और भगवान शिव पर अर्पित किया। इसके बाद भगवान शिव से जहर का प्रभाव दूर हो गया और वह पुनः ठीक हो गए। तभी से सावन मास में कांवड़ यात्रा की परंपरा शुरू हुई।
सावन में ही क्यों होती है कांवड़ यात्रा?
पौराणिक धर्म शास्त्रों के मुताबिक, सावन के महीने को भगवान शिव का पवित्र और शुभ महीना माना जाता है।कहते हैं, इस महीने सभी देवी-देवता विश्राम करते हैं तब भोलेनाथ ही इस ब्रह्मांड का संचालन करते हैं। मान्यता यह भी है कि भगवान शिव से जुड़ी सभी प्रमुख घटनाएं इसी महीने हुई हैं। समुद्र-मंथन और विषपान, भगवान शिव का विवाह, कामदेव द्वारा भस्मासुर का वध आदि कई सारी घटनाएं इसी महीने हुई हैं। इसलिए कांवड़ यात्रा भी सावन के महीने में ही होती है। इसी महीने में पहली बार रावण ने भगवान शिव की सुरक्षा और उन्हें विष से मुक्त करने के लिए पहली बार कांवड़ की मदद से जल भरकर शिव जी को अर्पित किया था।
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