Kartik Purnima Vrat Katha: कार्तिक पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है, जानिए इसकी पौराणिक कथा

Kartik Purnima Vrat Katha In Hindi: वैसे तो हर महीने में पूर्णिमा तिथि पड़ती है। लेकिन कार्तिक महीने में आने वाली पूर्णिमा का विशेष महत्व माना जाता है। जानिए कार्तिक पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है। जानिए इसकी पौराणिक कथा से।

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Kartik Purnima Vrat Katha In Hindi

Kartik Purnima Vrat Katha In Hindi: मान्यता है कार्तिक पूर्णिमा पर भगवान शिव ने त्रिपुरासुरों नामक राक्षसों का वध किया था और वहीं भगवान विष्णु ने इस दिन अपना मत्स्यावतार लिया था। वहीं इस दिन गुरु नानक देव जी का भी जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन को प्रकाश पर्व और गुरु पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा साल में आने वाले सबसे शुभ दिनों में से एक है। कहते हैं इस दिन दीप दान और गंगा स्नान करने से व्यक्ति के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। साथ ही इस दिन 6 कृतिकाओं का भी पूजन होता है। अब जानिए कार्तिक पूर्णिमा की व्रत कथा।

Kartim Purnima Vrat Katha In Hindi (कार्तिक पूर्णिमा व्रत कथा)

तारकासुर नाम का एक राक्षस था। जिसके तीन पुत्र थे तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली। जब भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय जी ने तारकासुर का वध कर दिया तो उसके तीनों पुत्र बेहद दुखी हुए थे। उन्होंने अपने पिता की मृत्यु का देवताओं से बदला लेने के लिए ब्रह्मा जी की घोर तपस्या की। ब्रह्मा जी ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें साक्षात दर्शन दिए और वरदान मांगने के लिए कहा। तीनों ने ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्मा जी ने कहा कि आप इसके अलावा कुछ अलग वरदान मांग लो।

इसके बाद तीनों ने तीन नगर का निर्माण करवाने के लिए कहा, जिसमें बैठकर वह तीनों पूरे पृथ्वी और आकाश का भ्रमण कर सकें और जब एक हजार वर्ष बाद हम एक जगह पर मिलें तो तीनों नगर मिलकर एक हो जाएं और जो भी देवी-देवता अपने एक बाण से इन तीनों नगरों को नष्ट करने की ताकत रखता हो वही हमारा वध कर सके।

ब्रह्मा जी ने तारकासुर के तीनों पुत्रों की ये मनोकामना पूरी कर दी। ब्रह्मा जी ने तीन नगरों का निर्माण करवाया। तारकाक्ष के लिए सोने का, कमलाक्ष के लिए चांदी का और विद्युन्माली के लिए लोहे का नगर बनवाया गया। वरदान प्राप्त करने के बाद तीनों ने हर जगह अपना आतंक मचा दिया और स्वर्ग पर भी अपना अधिकार स्थापित करने की कोशिश की जिससे इंद्रदेव भयभीत हुए और भगवान शिव की शरण में पहुंचे। इंद्रदेव की बात सुन महादेव ने एक दिव्य रथ का निर्माण किया और एक ही बाण से तीनों नगरों को नष्ट कर त्रिपुरासुरों का वध कर दिया। कहते हैं इसके बाद से ही भगवान शिव त्रिपुरारी कहलाए।

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    TNN अध्यात्म डेस्क author

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