Sita Navami 2023 Vrat Katha: सीता नवमी पर पढ़ें ये प्रचलित व्रत कथा, जानिए कैसे पापिनी को मिली थी पापों से मुक्ति
Sita Navami Vrat Katha In Hindi 2023 (सीता नवमी 2023 की पौराणिक कथा): सीता माता के जन्म दिवस को सीता माता के तौर पर बड़े धूम धाम से मनाया जाता है। लेकिन क्या आपको पता है इस व्रत का महत्व क्या है, इसे करने के क्या फायदे हैं? यहां जानिए सीता नवमी से जुड़ी पौराणिक कथा और इसके महत्व।
Sita Navami 2023 Vrat: व्रत कथा से जानें क्यों मनाई जाती है सीता नवमी?
Sita Navami Vrat Katha In Hindi 2023 (सीता नवमी 2023 की पौराणिक कथा): सीता नवमी के दिन जनकनंदिनी माता सीता का जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन यानी हर साल वैशाख शुक्ल नवमी को देशभर में सीता नवमी हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह पावन पर्व साल 2023 में 29 अप्रैल, दिन शनिवार को है। सीता नवमी का हिंदू धर्म में खास महत्व है। इस दिन माता जानकी की पूजा करना फलदाई माना गया है। कहते हैं सीता नवमी के दिन सीता माता की विधिवत पूजा करने से समस्त पाप और कुकर्मों से मुक्ति मिलती है। वहीं, सुहागिनों को अखंड सौभाग्यवती का आशीर्वाद मिलता है। आइए सीता नवमी जैसे पवन पर्व के महत्व को विस्तार से समझते हैं। यहां पढ़ें सीता नवमी से जुड़ी पौराणिक कथा हिंदी में। संबंधित खबरें
सीता नवमी से जुड़ी पौराणिक कथा (Sita Navami 2023 Vrat Katha In Hindi):संबंधित खबरें
पौराणिक कथा के अनुसार, मारवाड़ क्षेत्र में एक देवदत्त नमक ब्राह्मण रहता था, जो वेदवादी श्रेष्ठ था। ब्राह्मण की बड़ी सुंदर एक पत्नी थी, जिसका नाम शोभना था। एक बार ब्राह्मण देवता अपनी जीविका के लिए अपने ग्राम से दूर अन्य ग्राम में भिक्षाटन के लिए गए हुए थे। इधर कुसंगत में फंसकर ब्राह्मणी व्यभिचार में प्रवृत्त हो गई। इसके कारण पूरे गांव में उसकी चर्चाएं होने लगीं। ऐसा देख दुष्ट ब्राह्मणी ने गांव ही जलवा दिया। जब वो दुर्बुद्धि मरी तो उसका अगला जन्म चांडाल के घर हुआ। पति का त्याग करने के कारण अगले जनम में वह चांडालिनी बनी। ग्राम जलाने के कारण उसे भीषण कुष्ठ हो गया और व्यभिचार-कर्म करने के वजह से वह अंधी भी हो गई। इस तरह उस दुष्टा अपने कुकर्म का फल भोगना पड़ा।संबंधित खबरें
दुष्टा अपने कर्म के योग से दिनों दिन बेसहारा हो गई और देश-देशांतर में भटकने लगी। वह एक बार भटकती हुई दैवयोग से कौशलपुरी पहुंच गई। संयोगवश, वह दिन वैशाख शुक्ल नवमी का था, जो समस्त पापों का नाश करने में समर्थ है। सीता नवमी के दिन भूख-प्यास से व्याकुल वह दुखियारी, अन्य लोगों से प्रार्थना करने लगी- हे सज्जनों! मुझ पर कृपा करो, मैं भूख से मर रही हूं, मुझे कुछ खाने योग्य भोजन दो। इस तरह वह स्त्री श्री कनक भवन के सामने बने एक हजार पुष्प मंडित स्तंभों से गुजरती हुई पुनः पुकार लगाई- भैया! मेरी मदद करो, खाने के लिए कुछ भोजन दे दो।संबंधित खबरें
इतने में एक भक्त ने उस स्त्री से कहा- हे देवी! आज तो सीता नवमी है, आज के दिन भोजन में अन्न देने वाले को भी पाप लगता है। ऐसे में आज तो अन्न मिलना मुश्किल है। तुम कल पारण के समय में आना, ठाकुर जी का भरपेट प्रसाद मिलेगा। किंतु भूख से व्याकुल वह स्त्री नहीं मानी। बहुत बार कहने पर फिर भक्त ने दुखियारी को तुलसी और जल प्रदान किया। इसके बाद वह पापिनी भूखी ही मर गई और अनजाने में ही उससे सीता नवमी का व्रत पूरा हो गया। फलस्वरूप माता सीता ने उसे समस्त पापों से मुक्त कर दिया। वहीं, इस व्रत के प्रताप से वह पापिनी स्वर्ग में आनंदपूर्वक कई वर्षों तक रही। बाद में वह कामरूप देश के महाराज जयसिंह की महारानी अर्थात् काम कला के नाम से प्रसिद्ध हुई। इसके बाद उस महान साध्वी ने अपने राज्य में कई सारे देवालय बनवाए और जानकी-रघुनाथ की प्रतिष्ठा करवाई। इस प्रकार, सीता नवमी पर जो श्रद्धालु माता जानकी की सच्चे मन से पूजा करते हैं, उन्हें सभी प्रकार के सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है।संबंधित खबरें
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