आसन पर बैठकर पूजा करने से मिलते हैं ढेरों लाभ, यहां जानिए पूजा में आसन का महत्व

सनातन धर्म में पूजा करते समय आसन पर बैठना माना जाता है बेहद जरूरी। आसन पर बैठकर नित्य कर्म, पूजन आदि किया जाए तो पृथ्वी के अंतर्गत विद्युत प्रवाह शरीर पर अनिष्ट प्रभाव नहीं डालता। आइये आपको बताते हैं क्या लिखा है ब्रह्मांड पुराण में आसन और नियम से आसन का पालन करने पर होने वाले लाभ के बारें में।

आसन पर बैठकर पूजा करने से मिलते हैं ढेरों लाभ, यहां जानिए पूजा में आसन का महत्व
मुख्य बातें
  • ब्रह्मांड पुराण में बताया गया है पूजा में आसन का महत्व
  • कंबल और कुशा का आसन होता है सबसे उपयुक्त
  • आसन के बिना पूजन का नहीं मिलता है लाभ

Tips for worship: सनातन धर्म में कोई भी पूजा या साधना बिना आसन के करना निषेद्य माना गया है। वहीं कुछ विशेष वस्तुओं के आसन तो भाग्य पर विपरित असर तक डाल सकते हैं। आसन यानी जिस पर बैठकर साधक पूजा करता है। इसके पीछे छुपे कारण भी सनातन धर्म के पुराणाें में वर्णित किये गए हैं।

ब्रह्मांड पुराण के तंत्र सार में विविध आसनों के बारे में बताया गया है। पुराण के अनुसार जमीन को स्पर्श करते हुए बैठकर पूजा करने से कष्ट एवं अड़चनों का सामना करना पड़ता है। ठीक ऐसे ही अगर कोई व्यक्ति लकड़ी या बांस की चटाई पर बैठकर पूजा करता या फिर पत्तों के आसन पर बैठकर पूजा करना भी फलदाई नहीं माना गया है।

पूजन में है आसन का महत्व

आसन का शाब्दिक अर्थ होता है जिस स्थिति में बैठा जाए। वहीं जिस पर बैठा जाए उसे भी आसन कहा जाता है। पूजन में अधिकांश लोग पद्मासन लगाकर बैठते। या फिर कुछ लोग सिद्धासन लगाकर बैठते हैं। आप चाहे जिस भी तरह से बैठें लेकिन किस पर बैठ रहे हैं ये भी आपने आप में महत्वपूर्ण विषय है। कंबल, कुशा आदि पर बैठकर पूजा करने के पीछा विज्ञान भी छुपा है। दरअसल पूजा या साधना के दौरान प्राप्त होने वाली उर्जा तेजी से शरीर में प्रवाहित होती है। यदि ये उर्जा तरंगें गुरुत्वाकर्षण के कारण धरती में चली जाएं तो पूजा का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता। जैसे किसी गिलास में पानी भरें लेकिन वो गिलास नीचे से टूटा हो तो जल जमीन पर आ जाएगा। गिलास में नहीं समाएगा। इसलिए पूजन आसन पर ही बैठकर करने का विधान है। आसन सदैव ही साफ सुथरा ही प्रयोग में लेना चाहिए।

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कैसे और किस तरह का आसन करें प्रयोग

पूजन के समय बैठने वाले आसन के लिए कुछ विशेष बातें शास्त्रों में बतायी गयी हैं। जैसे घर या मंदिर में पूजा जब भी करें तो किसी दूसरे के आसन का प्रयोग कभी भी न करें। पूजा के बाद आसन को सही तरह से मोड़कर साफ स्थान पर रखें। पूजा के आसन का प्रयोग कभी भी किसी अन्य कार्य में न लें। पूजा करते समय कंबल का आसन या फिर कुशा का आसन प्रयोग में लेना उचित रहता है। कुशा के आसन पर बैठकर यदि मंत्र जाप किया जाए तो वो बहुत जल्दी सिद्ध हो जाता है। वहीं देवी आराधना और हनुमानजी की पूजा में लाल रंग के कंबल का आसन प्रयोग करना चाहिए। लेकिन ध्यान रहे कि श्राद्ध आदि कर्म में कुशा का आसन वर्जित होता है।

(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)

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