जानें- बिन कालभैरव दर्शन क्यों मानी जाती है महाकाल की पूजा अधूरी

आमतौर पर यह कहा माना जाता है कि महाकाल के दर्शन के बाद कालभैरव का भी दर्शन करना चाहिए। यहां हम बताएंगे कि इसके पीछे की मान्यता क्या है।

11 अक्टूबर का दिन महाकाल की नगरी उज्जैन के लिये खास दिन है। प्राचीन परंपराओं को आत्मसात करते हुए आधुनिकता के कलेवर में अब श्रद्धालुओं के बीच यह धाम नजर आएगा। महाकाल के बारे में कहा जाता है कि आदि और अंत के विस्तार के मूल में वो हैं, वो शिव हैं, शक्ति हैं, जीवन ऊर्जा के प्रवाह हैं। आप जब कभी उज्जैन महाकाल के दर्शन के लिए जाते हैं तो सामान्य तौर पर सुनते होंगे कि महाकाल का दर्शन कालभैरव के दर्शन के बगैर अधूरी है।अब यहां पर सामान्य सवाल उठ खड़ा होता है कि जो खुद सर्वशक्तिमान है, जो दुनिया को ऊर्ज देता है उसके दर्शन के बाद कालभैरव के दर्शन की आवश्यकता क्यों है। आखिर इसके पीछे धार्मिक या आध्यात्मिक वजह क्या है। इन सभी गुढ़ बातों पर TIMES NOW नवभारत ने आचार्य बी एन पांडे से महाकाल और काल भैरव दर्शन के बारे में खास बातचीत की।

शास्त्रों के अनुसार काल भैरव भगवान शिव के रूद्र रूप माने गये हैं । जिन्हे महादेव ने क्रोध में आकर जन्म दिया था । इसलिये भैरव को भगवान शिव का गण कहा गया है ।

काल भैरव की उत्पत्ति

शिवपुराण के अनुसार अंधकासुर नामक दैत्य द्वारा अपनी शक्तियों का भगवान शिव के ऊपर गलत प्रयोग करने के कारण भगवान शिव उसके संहार के लिए अपने रक्त से भैरव को जन्म दिया ।

काल भैरव पर लगा ब्रह्म हत्या

काल भैरव ने महादेव को अपमानित देख ब्रह्मदेव जी का पाँच मुखों में से एक मुख काट दिया । जिसके चलते काल भैरव पर ब्रह्म हत्या का पाप लगा ।

काल भैरव के स्वरुप

आज लोग बाबा भैरव को बटुक भैरव और काल भैरव के रूप में ज्यादा पूजते हैं । कलिका पुराण के अनुसार इनके कुल आठ स्वरूप हैं । वे असितांग भैरव, रूद्र भैरव, चंद्र भैरव, क्रोध भैरव, उन्मत्त भैरव, कपाली भैरव, भीषण भैरव, संहार भैरव हैं।

महाकाल दर्शन

अवन्तिकापुरी जो आज उज्जैन के नाम से विख्यात है शिप्रा के पावन तट पर विराजमान है । इसी नगरी में द्वादाश ज्योतिर्लिंग में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग विद्यमान है।इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए पूरे विश्व से लोग यहां आते है और दर्शन करते हैं ।

महाकाल के दर्शन से पूर्व काल भैरव के दर्शन की महत्ता

ऐसी मान्यता है कि काल भैरव को दो वरदान मिले थे कि भगवान शिव की पूजा से पूर्व भैरव की पूजा होगी, और जो भक्त काल भैरव दर्शन से पूर्व महाकाल का दर्शन करता है, उसका दर्शन अधूरा माना जाता है । इन्ही मन्यताओं को ध्यान में रखकर काल भैरव का दर्शन पहले किया जाता है ।

भैरव की महिमा कई पुराणों में मिलती है

वामन पुराण के अनुसार भैरव भगवान शिव के रक्त से आठ दिशाओं में प्रकट हुए । शिवपुराण के अनुसार काल भैरव शिव का उग्र रूप है । स्कन्द पुराण के अवन्ति खंड के अनुसार भगवान भैरव के आठ रूप हैं । उनमे काल भैरव तीसरा रूप है । भैरव को जहां शिव के गण के रूप में जाना जाता है वहीं उन्हें दुर्गा का अनुयायी माना जाता है। भैरव की सवारी कुत्ता है । चमेली का फूल उन्हें बहुत पसंद है । भैरव को रात्रि का देवता माना जाता है और उनकी पूजा मध्य रात्रि में की जाती है । काल भैरव के दर्शन मात्र से भक्त के सारे पाप नष्ट हो जाते है और उनकी सारी मनोकामनायें पूर्ण हो जाती हैं । काल भैरव को उज्जैन नगरी का सेनापति माना जाता है । बाबा काल भैरव महाकाल की नगरी का देख रेख करते हैं । काल भैरव शत्रुओं का नाश एवं भक्तो की हर मनोकामना पूर्ण करते हैं ।जो भक्त उज्जैन महाकाल का दर्शन करने जाता है उसे काल भैरव का दर्शन अवश्य करना चाहिए । उससे उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं ।

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ललित राय author

खबरों को सटीक, तार्किक और विश्लेषण के अंदाज में पेश करना पेशा है। पिछले 10 वर्षों से डिजिटल मीडिया में कार्य करने का अनुभव है।और देखें

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