Krishna Janmashtami 2023: जन्माष्टमी पर रात्रि पूजा के समय करें कृष्ण चालीसा का पाठ, हर इच्छा की होगी पूर्ति

Krishna Janmashtami 2023: आज यानि 7 सितंबर को पूरे देश में कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जा रहा है। इस दिन बहुत ही धूमधाम से श्री कृष्ण के जन्म के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण की पूजा- अर्चना की जाती है। आइए जानते हैं इस दिन पूजा के समय किस चालीसा का पाठ करना चाहिए। यहां देखें कृष्ण चालीसा लिरिक्स।

Krishna Janmashtami 2023

Krishna Janmashtami 2023

Krishna Chalisa Lyrics: आज जगत के पालनकर्ता भगवान श्रीकृष्ण का अवतरण दिवस है। इस शुभ अवसर पर पूरे देश में कृष्ण जन्माष्टमी धूमधाम से मनाई जा रही है। कृष्ण के भक्त भक्तिभाव से अपने देवता के बाल रूप की पूजा करते हैं। धार्मिक मान्यता है कि जन्माष्टमी का व्रत और भगवान कृष्ण की पूजा करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। कृष्ण की भक्ति करने से मन की शुद्धि होती है। इस दिन कृष्ण मंदिरों में भक्तों की भीड़ लगी रहती है। कृष्ण का जन्म रात में हुआ था इस कारण जन्माष्टमी पर रात को कृष्ण की पूजा की जाती है। यदि आप भी श्री कृष्ण की कृपा पाना चाहते हैं तो जन्माष्टमी में रात्रि पूजा के समय कृष्ण चालीसा का पाठ जरूर करें।

कृष्ण चालीसादोहा

बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम ।

अरुण अधर जनु बिम्बफल,नयन कमल अभिराम ॥

पूर्ण इन्द्र, अरविन्द मुख,पीताम्बर शुभ साज ।

जय मनमोहन मदन छवि,कृष्णचन्द्र महाराज ॥

चौपाई

जय यदुनंदन जय जगवंदन ।

जय वसुदेव देवकी नन्दन ॥

जय यशुदा सुत नन्द दुलारे ।

जय प्रभु भक्तन के दृग तारे ॥

जय नटनागर, नाग नथइया |

कृष्ण कन्हइया धेनु चरइया ॥

पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो ।

आओ दीनन कष्ट निवारो ॥

वंशी मधुर अधर धरि टेरौ ।

होवे पूर्ण विनय यह मेरौ ॥

आओ हरि पुनि माखन चाखो ।

आज लाज भारत की राखो ॥

गोल कपोल, चिबुक अरुणारे ।

मृदु मुस्कान मोहिनी डारे ॥

राजित राजिव नयन विशाला ।

मोर मुकुट वैजन्तीमाला ॥8॥

कुंडल श्रवण, पीत पट आछे ।

कटि किंकिणी काछनी काछे ॥

नील जलज सुन्दर तनु सोहे ।

छबि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे ॥

मस्तक तिलक, अलक घुँघराले ।

आओ कृष्ण बांसुरी वाले ॥

करि पय पान, पूतनहि तार्यो ।

अका बका कागासुर मार्यो ॥

मधुवन जलत अगिन जब ज्वाला ।

भै शीतल लखतहिं नंदलाला ॥

सुरपति जब ब्रज चढ़्यो रिसाई ।

मूसर धार वारि वर्षाई ॥

लगत लगत व्रज चहन बहायो ।

गोवर्धन नख धारि बचायो ॥

लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई ।

मुख मंह चौदह भुवन दिखाई ॥

दुष्ट कंस अति उधम मचायो ।

कोटि कमल जब फूल मंगायो ॥

नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें ।

चरण चिह्न दै निर्भय कीन्हें ॥

करि गोपिन संग रास विलासा ।

सबकी पूरण करी अभिलाषा ॥

केतिक महा असुर संहार्यो ।

कंसहि केस पकड़ि दै मार्यो ॥

मातपिता की बन्दि छुड़ाई ।

उग्रसेन कहँ राज दिलाई ॥

महि से मृतक छहों सुत लायो ।

मातु देवकी शोक मिटायो ॥

भौमासुर मुर दैत्य संहारी ।

लाये षट दश सहसकुमारी ॥

दै भीमहिं तृण चीर सहारा ।

जरासिंधु राक्षस कहँ मारा ॥

असुर बकासुर आदिक मार्यो ।

भक्तन के तब कष्ट निवार्यो ॥

दीन सुदामा के दुःख टार्यो ।

तंदुल तीन मूंठ मुख डार्य ॥

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