Kundalini Jagran: कुंडिलनी जागरण का कर रहे हैं प्रयास तो पहले पढ़ लें क्या रखनी चाहिए सावधानी, जरा सी चूक पड़ सकती है भारी
Kundalini Jagran: ध्यान योग के द्वारा स्वयं को जानने की साधना है कुंडलिनी जागरण। कुंडलिनी शक्ति का जागरण करने वाले साधक बुरे विचारों से रहे सर्वथा दूर। बिना गुरु के निर्देशन के न करें कुंडलिनी शक्ति को जाग्रत करने का प्रयास। कुंडलिनी शक्ति करती हैं मानव देह के मूलाधार चक्र में निवास।
कुंडलिनी शक्ति जाग्रत करने के टिप्स
मुख्य बातें
- विभिन्न योगों के माध्यम से होती है कुंडलिनी जाग्रत
- कुंडलिनी जागरण है अपने आप में शक्ति साधना
- जरा सी असवाधानी से उठाना पड़ सकता है नुकसान
कुंडलिनी शक्ति का निवास “मूलाधार चक्र” में बताया गया है। यह मूलाधार चक्र रीढ़ी की हड्डी के सबसे निचले छाेर में है, जिसे आधुनिक शरीर विज्ञान में गुदास्थि कहा जाता है तंत्र ग्रंथाें में मिले इसके बारे में लेखाें में कहा गया है कि यहां स्वयंभूलिंग है। जहां साढ़े तीन कुंडल मारकर कुंडलिनी शक्ति सोयी पड़ी हैं। उनका सिर स्वयंभूलिंग के सिर पर है और वह अपनी पूंछ को अपने मुख में डाले हुए हैं।
इन योगों से जाग्रत होती है कुंडलिनी शक्ति
कुंडलिनी शक्ति को जाग्रत करने के लिए भारतीय ऋषियों ने बहुत से योग बताए हैं। जैसे हठयोग, राजयोग, मंत्र योग, भक्ति योग, कर्म योग, ज्ञान योग, लय योग एवं सिद्धि योग आदि। यह जानना जरूरी है कि कुंडलिनी एक ऐसी शक्ति है, जिसका अनुभव तो किया जा सकता है किंतु उसे प्रत्यक्ष देखा नहीं जा सकता।
कुंडलिनी साधना में बरतें ये सावधानी
श्रेष्ठ योगी साधक ही कुंडलिनी जाग्रत कर सकते हैं। गुरु की आज्ञा, निर्देश या बिना पूर्व तैयार के या अच्छी जानकारी के बिना कुंडलिनी शक्ति को छेड़ना खतरे से खाली नहीं होता। जिस प्रकार नंगे हाथाें बिजली के तारों पकड़ने या छूने से करंट लगता है, ठीक वो ही स्थिति कुंडलिनी के साथ है। कुंडलिनी शक्ति पराविद्युत शक्ति का केंद्र है। जब तक योग साधना के द्वारा मन और शरीर पूरी तरह से शुद्ध और संयत न हो गए हों तब तक इस योग शक्ति कुंडलिनी उर्जा शक्ति को संभालना कठिन होगा। कुंडलिनी शक्ति न तो तजुर्बा करने की वस्तु है और न ही चमत्कार आदि देखने की। असमय में, अपरिपक्त साधना के समय कामवासना को नियंत्रण किये बिना, संयम का ठीक− ठाक ध्यान न रखते हुए कुंडलिनी जैसी दुसाध्य शक्ति को जगाना किसी भी प्रकार उचिन नहीं होगा। बहुत बार पूर्व जन्म के संस्कारों के कारण या साधनाओं के कारण सीधे साधे साधकों की कुंडलिनी शक्ति अपने आप जाग्रत हो जाती है। ऐसे समय में साधक काे परम सात्विक, सरल, अभिमान, क्रोध रहित होकर जीवन जीना चाहिए। भुकृटि, ब्रह्मरंध आदि स्थानों पर प्राणाें के ठहर जाने को कुंडलिनी जाग्रत होना न समझें।
(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)
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