Magh Purnima Katha: माघ पूर्णिमा का रखा है व्रत, तो जरूर पढ़ें ये पावन कथा
Magh Purnima Katha (माघ पूर्णिमा कथा): माघ पूर्णिमा की विशेष प्राचीन मान्यता सदियों से चली आ रही है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन स्नान, दान-पुण्य और व्रत आदि करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऐसे में इस तिथि का पौराणिक महत्व भी है जिससे जुड़ी एक कथा। इस कथा के बिना माघ पूर्णिमा का व्रत अधूरा माना जाता है।

Magh Purnima Katha
Magh Purnima Katha (माघ पूर्णिमा कथा): सनातन हिंदू धर्म के अनुसार हर माह की पूर्णिमा तिथि सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु को समर्पित होती है। जिस दिन व्रत-पूजन और स्नान-ध्यान करने से मनुष्य अपने पापों से मुक्त हो सकता है। प्रयागराज में चल रहे महा कुंभ 2025 में भक्तों का सैलाब माघ पूर्णिमा की तिथि पर स्नान करने के लिए उमड़ रहा है जो कि 12 फरवरी को बुधवार के दिन किया जाएगा। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान और दान की प्राचीन परंपरा है। इस दिन चंद्र देव अपनी शीतल किरणों से प्राणियों पर अमृत की वर्षा करते हैं। लेकिन इस पर्व को मनाने की प्रथा कहा से और कैसे शुरू हुई? हिंदू धर्म ग्रंथों में माघ पूर्णिमा से जुड़ी एक कथा मिलती है जिसके बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं।
Magh Purnima Puja Vidhi And Shubh Muhurat
Magh Purnima Katha (माघ पूर्णिमा कथा)
पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में कांतिका नगर में धनेश्वर नाम का एक ब्राह्मण रहता था। ब्राह्मण दान पर अपना जीवन निर्वाह करता था। ब्राह्मण और उसकी पत्नी की कोई संतान नहीं थी। ऐसे में एक दिन जब उसकी पत्नी नगर में भिक्षा मांगने गई तो सब लोगों ने उसे भिक्षा देने से इंकार कर दिया। इसके अलावा लोगों ने बांझ कहकर ब्राह्मण की पत्नी का अपमान किया। इस बात से ब्राह्मण और उसकी पत्नी को अपमान महसूस हुआ। तब एक व्यक्ति की सलाह पर उन्होंने 16 दिनों तक मां काली की विधि-विधान से पूजा की। ब्राह्मण और ब्राह्मण की पत्नी की पूजा से प्रसन्न होकर 16 दिन बाद मां काली स्वयं उनके समक्ष प्रकट हुई और उन दोनों से वरदान मांगने को कहा। ब्राह्मण और ब्राह्मण की पत्नी ने संतान प्राप्ति का वरदान मांगा। तब मां काली ने ब्राह्मण की पत्नी को गर्भवती होने का वरदान दिया और साथ ही ये कहा कि, आप अपने सामर्थ्य के अनुसार प्रत्येक पूर्णिमा के दिन एक दीपक जलाए। हर पूर्णिमा के दिन ऐसा करना और पिछली पूर्णिमा से एक दीपक बढ़ाकर जलाना। ब्राह्मण और ब्राह्मण की पत्नी ने मां काली की सलाह मानकर पूर्णिमा व्रत करना प्रारंभ कर दिया। ब्राह्मण ने अपनी पत्नी को पूजा के लिए पेड़ से कच्चा आम तोड़ कर दिया। पूजा के प्रभाव से कुछ ही समय में बाद ब्राह्मण की पत्नी गर्भवती हुई और इसके बाद प्रत्येक पूर्णिमा पर मां काली के कथन अनुसार ब्राह्मण और उसकी पत्नी दीपक जलाते रहे। मां काली की कृपा से ब्राह्मण और ब्राह्मण की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया। जिसका नाम देवदास रखा गया। देवदास जब बड़ा हुआ तो उसे अपने मामा के साथ पढ़ने के लिए काशी भेज दिया गया। काशी में एक दुर्घटना घटी जिसके कारण धोखे से देवदास का विवाह करा दिया गया। देवदास ने कहा कि, वो अल्प-आयु है लेकिन फिर भी उसका जबरन विवाह करा दिया गया। कुछ समय बीत जाने के बाद काल, देवदास के प्राण लेने आए लेकिन, क्योंकि ब्राह्मण दंपति में सच्ची निष्ठा के साथ पूर्णिमा का व्रत रखा था इसलिए काल भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाए। मान्यता है कि जो कोई भी सच्चे मन से पूर्णिमा के दिन व्रत करता है उसके और उसके परिवार को समस्त संकटों से मुक्ति मिलती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
Magh Purnima Importance (माघ पूर्णिमा का महत्व)
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माघ पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी में स्नान-ध्यान करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं तथा उसके जीवन में सुख-समृद्धि और खुशहाली आती है। ये हिंदू पर्व भगवान विष्णु को समर्पित होता है। माघ पूर्णिमा के दिन गंगा नदी में स्नान करना अत्यंत ही शुभ माना जाता है। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में पूजा अनुष्ठान करना देवताओं को प्रसन्न करता है। लोग अपनी आस्था के अनुसार इस दिन दान-पुण्य भी करते हैं।
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धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर की रहने वाली हूं। पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। 10 साल से मीडिया में काम कर रही हूं। पत्रकारिता में करि...और देखें

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