Magh Purnima Vrat Katha: इस कथा के बिना अधूरा है माघ पूर्णिमा व्रत, भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए जरूर पढ़ें ये कहानी

Magh Purnima Vrat Katha In Hindi: साल में कुल 12 पूर्णिमा पड़ती हैं। जिसमें माघ पूर्णिमा का विशेष महत्व माना जाता है। ये पूर्णिमा इस साल 24 फरवरी को मनाई जा रही है। यहां जानिए माघ पूर्णिमा की व्रत कथा।

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Magh Purnima Vrat Katha In Hindi

Magh Purnima Vrat Katha In Hindi (माघ पूर्णिमा व्रत कथा): हिंदू धर्म में पूर्णिमा तिथि अत्यंत ही पवित्र मानी जाती है। इसे पूने, पूरणमासी और पूनम नाम से भी जाना जाता है। प्रत्येक पूर्णिमा पर कोई न कोई त्योहार अवश्य मनाया जाता है। माघी पूर्णिमा की बात करें तो इस पूर्णिमा के दिन गुरु रविदास जयंती, ललिता जयंती और मासी मागम त्योहार मनाया जाता है। पूर्णिमा के दिन भक्त व्रत रखते हैं। गंगा स्नान करते हैं और भगवान सत्यनारायण का पाठ भी कराते हैं। 24 फरवरी को माघ पूर्णिमा मनाई जा रही है। यहां जानिए माघ पूर्णिमा की व्रत कथा।

माघ पूर्णिमा के दिन सुबह जल्दी उठ जाएं। इसके बाद गंगा नदी में या गंगाजल से स्नान करें। फिर भगवान विष्णु की पूजा करें और व्रत का संकल्प लें। इस दिन दान करना भी अत्यंत शुभ माना जाता है। मान्यता है पूर्णिमा का व्रत रखने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। पूर्णिमा व्रत रखने वाले ये व्रत कथा पढ़ना बिल्कुल भी न भूलें।

माघ पूर्णिमा के दिन पढ़ें ये व्रत कथा (magh purnima vrat katha 2024)

माघ पूर्णिमा की कथा के अनुसार कांतिका नगर में धनेश्वर नाम का एक ब्राह्मण रहता था। जो भिक्षा मांगकर अपना जीवन व्यतीत करता था। ब्राह्मण की कोई संतान नहीं थी इसलिए वह दुखी रहता था। एक दिन ब्राह्मण की पत्नी नगर में भिक्षा मांगने गई, लेकिन लोगों ने उसे बांझ कहकर ताने देने शुरू कर दिए और लोगों ने उसे भिक्षा देने से मना कर दिया। इससे उसे बहुत दुख हुआ। तब किसी ने उससे 16 दिन मां काली की पूजा करने के लिए कहा।

ब्राह्मण दंपत्ति ने सभी नियमों का पालन करके मां काली का विधि विधान 16 दिनों तक पूजन किया। व्रत के परिणामस्वरूप 16वें दिन पूजा करने के बाद मां काली उनसे बेहद प्रसन्न हुईं और ब्राह्मणी को गर्भवती होने का वरदान दिया। साथ ही माता ने कहा कि तुम पूर्णिमा को एक दीपक जलाओ और हर पूर्णिमा पर ये दीपक बढ़ाती जाना। ऐसा तब तक करना जब तक कम से कम 32 की संख्या में दीपक न हो जाएं। साथ ही माता ने दोनों दांपत्यों को पूर्णिमा का व्रत रखने को भी कहा।

ब्राह्मण दंपत्ति ने माता के कहे अनुसार पूर्णिमा का व्रत रखा साथ ही दीपक भी जलाना शुरू कर दिया। इसी बीच ब्राह्मणी गर्भवती भी हो गई और कुछ समय बाद उसने एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई। जिसका नाम उन्होंने देवदास रखा, लेकिन देवदास की उम्र कम थी। देवदास जब बड़ा हुआ, तो उसके माता-पिता ने उसे उसके मामा के साथ पढ़ने के लिए काशी भेजा दिया।

काशी में उन दोनों के साथ एक दुर्घटना घटी। जिसकी वजह से धोखे से देवदास का विवाह हो गया। कुछ समय बाद देवदास की मृत्यु का समय नजदीक आ गया। लेकिन ब्राह्मण दंपत्ति ने उस दिन पुत्र प्राप्ति के लिए पूर्णिमा का व्रत रखा था, जिस कारण काल भी देवदास का कुछ न बिगाड़ सका और उसे जीवनदान मिल गया। कहते हैं इस तरह पूर्णिमा के दिन व्रत रखने से व्यक्ति को सभी संकटों से छुटकारा मिल सकता है और साथ ही सभी मनोकामनाएं भी पूर्ण होती हैं।

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    TNN अध्यात्म डेस्क author

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