आखिर कैसे पड़ा सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का नाम? दिलचस्प है कहानी

पूरे देश में महाशिवरात्रि का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है। इस महापर्व पर भोलेनाथ के भक्त शिवजी को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद पाने के लिए भक्ति में लीन रहते हैं।

आखिर कैसे पड़ा सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का नाम?

Sidharth Pandya

वैसे तो भारतवर्ष में 12 ज्योतिर्लिंग है हर किसी का अपना महत्व है लेकिन गुजरात के सौराष्ट्र में सोमनाथ ज्योतिर्लिंग (Somnath Jyotirlinga) का महत्व अनूठा है। पुराणों और अन्य हिंदू धार्मिक ग्रंथों की माने तो ज्योतिर्लिंग को भगवान शिव की शक्ति का प्रतीक माना जाता है। ज्योतिर्लिंग एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ होता है प्रकाश का प्रतीक। ज्योतिर्लिंग दो शब्दों से बना है प्रथम ज्योति और दूसरा लिंग। लिंग शब्द का अर्थ है आकार। यह आकार इसलिए है क्योंकि जो अव्यक्त है वह प्रकट होने लगता है।

दूसरे शब्दों में, यह कहा जा सकता है कि जब ब्रह्मांड की उत्पत्ति शुरू हुई, तो इसने जो पहला आकार लिया वह एक दीर्घवृत्त था। एक पूर्ण दीर्घवृत्त को लिंग कहा जाता है। पुराणों और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इन 12 स्थानों पर जो शिवलिंग हैं, उनके ऊपर स्वयं भगवान शिव ज्योति रूप में विराजमान हैं। यही कारण है कि इन्हें ज्योतिर्लिंग कहा जाता है।

कैसे पड़ा सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का नाम?

गुजरात के सौराष्ट्र में स्थित सोमनाथ ज्योतिर्लिंग इस पृथ्वी का सबसे पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है। शिव पुराण के अनुसार जब प्रजापति दक्ष ने चंद्र को क्षय रोग का श्राप दिया ,तब इस स्थान पर भगवान शिव की पूजा और तपस्या करने से चंद्र को श्राप से मुक्ति मिली थी। ऐसा माना जाता है की चंद्र देव ने स्वयं इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी। चंद्र को सोम भी कहा जाता है जिस वजह है कि इसे सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का नाम मिला।

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