Mahakal Lok : वास्तु शास्त्र का बेजोड़ नमूना है 'महाकाल लोक'
Mahakal Lok : महाकाल मंदिर का शिखर आसमान में चढ़ता है। आकाश के खिलाफ एक भव्य अग्रभाग, अपनी भव्यता के साथ आदिकालीन विस्मय और श्रद्धा को उजागर करता है। महाकाल शहर और उसके लोगों के जीवन पर हावी है। यहां तक कि आधुनिक व्यस्तताओं के व्यस्त दिनचर्या के बीच भी और पिछली परंपराओं के साथ एक अटूट लिंक प्रदान करता है।



वास्तु शास्त्र का बेजोड़ नमूना है 'महाकाल लोक'
Mahakal Lok : उज्जैन का महाकाल लोक भारत के 12 प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंगों में से एक है। महाकाल की महिमा का विभिन्न पुराणों में विशद वर्णन किया गया है। कालिदास जैसे कई संस्कृत कवियों ने इस मंदिर को भावनात्मक रूप से समृद्ध किया है। प्राचीन काल से उज्जैन भारतीय समय की गणना के लिए केंद्रीय बिंदु हुआ करता था और महाकाल को उज्जैन का विशिष्ट पीठासीन देवता माना जाता था। समय के देवता, शिव अपने सभी वैभव में उज्जैन में शाश्वत शासन करते हैं।
महाकाल मंदिर का शिखर आसमान में चढ़ता है। आकाश के खिलाफ एक भव्य अग्रभाग, अपनी भव्यता के साथ आदिकालीन विस्मय और श्रद्धा को उजागर करता है। महाकाल शहर और उसके लोगों के जीवन पर हावी है। यहां तक कि आधुनिक व्यस्तताओं के व्यस्त दिनचर्या के बीच भी और पिछली परंपराओं के साथ एक अटूट लिंक प्रदान करता है। भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकाल में लिंगम (स्वयं से पैदा हुआ), स्वयं के भीतर से शक्ति (शक्ति) को प्राप्त करने के लिए माना जाता है। अन्य छवियों और लिंगों के खिलाफ जो औपचारिक रूप से स्थापित हैं और मंत्र के साथ निवेश किए जाते हैं- शक्ति। महाकाल की मूर्ति दक्षिणमुखी होने के कारण दक्षिणामूर्ति मानी जाती है। यह एक अनूठी विशेषता है, जिसे तांत्रिक परंपरा द्वारा केवल 12 ज्योतिर्लिंगों में से महाकाल में पाया जाता है। महाकाल मंदिर के ऊपर गर्भगृह में ओंकारेश्वर शिव की मूर्ति प्रतिष्ठित है। गर्भगृह के पश्चिम, उत्तर और पूर्व में गणेश, पार्वती और कार्तिकेय के चित्र स्थापित हैं। दक्षिण में नंदी की प्रतिमा है। तीसरी मंजिल पर नागचंद्रेश्वर की मूर्ति केवल नागपंचमी के दिन दर्शन के लिए खुली होती है। महाशिवरात्रि के दिन, मंदिर के पास एक विशाल मेला लगता है, और रात में पूजा होती है।
महाकाल का वास्तुशास्त्र
महाकाल मंदिर के वास्तुशास्त्र के अनुसार पश्चिम दिशा में भूमिगत पानी का स्त्रोत धार्मिकता बढ़ाता है। इसी कारण उज्जैन शहर प्रदेश की धार्मिक नगरी के रूप में ज्यादा प्रसिद्ध है और इस शहर की प्रसिद्धि को और अधिक गौरवान्वित करता है महाकाल। उज्जैन शहर की समृद्धि एवं प्रसिद्धि में इस मंदिर का भी विशेष योगदान है। मंदिर के प्रति लोगों की इतनी श्रद्धा और आस्था का कारण है इस स्थान की भौगोलिक स्थिति एवं मंदिर भवन का भारतीय वास्तुशास्त्र और चीनी वास्तुशास्त्र फेंगशुई दोनों के सिद्धांतों के अनुरूप बना होना। भारतीय वास्तुशास्त्र के अनुसार पूर्व दिशा में ऊंचाई होना और पश्चिम दिशा में ढलान व पानी का स्रौत होना अच्छा नहीं माना जाता है परंतु देखने में आया है कि ज्यादातर वो स्थान जो धार्मिक कारणों से प्रसिद्ध है, चाहे वह किसी भी धर्म से सबंधित हो, उन स्थानों की भौगोलिक स्थिति में काफी समानताएं देखने को मिलती हैं। ऐसे स्थानों पर पूर्व की तुलना में पश्चिम में ढलान होती है और दक्षिण दिशा हमेशा उत्तर दिशा की तुलना में ऊंची रहती है। जैसे वैष्णोदेवी मंदिर जम्मू, पशुपतिनाथ मंदिर मंदसोर इत्यादि। वह घर जहां पश्चिम दिशा में भूमिगत पानी का स्त्रोत जैसे भूमिगत पानी की टंकी, कुआं, बोरवेल, इत्यादि होता है। उस भवन में निवास करने वालों में धार्मिकता दूसरो की तुलना में ज्यादा ही होती है।
महाकाल मंदिर का वास्तु एवं फेंगशुई विश्लेषण कुछ इस प्रकार है।
वास्तु के सिद्धांत
टीले पर स्थित इस मन्दिर परिसर के पश्चिम भाग में जलकुण्ड है। मन्दिर परिसर के बाहर पश्चिम दिशा में ही रूद्रसागर है। पश्चिम दिशा में ही थोड़ा सा आगे जाकर क्षिप्रा नदी भी है इसलिए यह स्थान धार्मिक रूप से प्रसिद्ध है। इस मंदिर भवन के चारों दिशाओं में सड़क है। उत्तर दिशा में हरसिद्धि मंदिर की ओर जाने वाली सड़क पूर्व से पश्चिम की तरफ काफी ढलान लिए हुए है। पश्चिम दिशा में दक्षिण से उत्तर की ओर ढलान लिए हुए सड़क है। मंदिर भवन के अंदर उत्तर दिशा वाला भाग भी दक्षिण दिशा वाले भाग जहां वृद्धेश्वर महाकाल एवं बाल हनुमान मंदिर है कि तुलना में काफी नीचा है। मंदिर भवन का मुख्य द्वार पूर्व दिशा में वास्तुनुकुल स्थान पर स्थित है। गर्भगृह वह स्थान जहां भगवान महाकाल विराजमान है का द्वार दक्षिण दिशा में वास्तु सम्मत स्थान पर ही स्थित है। वास्तु सिद्धांत के अनुसार दक्षिण का द्वार वैभवशाली माना जाता है।
फेंगशुई के सिद्धांत
फेंग शुई का एक सिद्धांत है कि यदि पहाड़ के मध्य में कोई भवन बना हो, जिसके पीछे पहाड़ की ऊंचाई हो, आगे की तरफ पहाड़ की ढलान हो, और ढलान के बाद पानी का झरना, कुंड, तालाब, नदी इत्यादि हो, ऐसा भवन प्रसिद्धि पाता है और सदियों तक बना रहता है। फेंग शुई के इस सिद्धांत में दिशा का कोई महत्त्व नहीं है। ऐसा भवन किसी भी दिशा में हो सकता है। चाहे पूर्व दिशा ऊंची हो और पश्चिम में ढलान के बाद तालाब हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है।फेंगशुई के इस सिद्धांत का सुंदर उदाहरण महाकाल मंदिर है। मंदिर की पूर्व दिशा में ऊंचाई है, उसके बाद नीचे जाने पर मंदिर का प्रागंण है। इस प्रागंण के और थोड़ा नीचे पश्चिम दिशा की ओर मंदिर का गर्भगृह है। गर्भगृह के आगे पश्चिम दिशा में मंदिर के अंदर बड़ा कुंड है जिसे कोटि तीर्थ कुंड कहते हैं। मंदिर के बाहर पश्चिम दिशा में बहुत बड़ा तालाब रूद्र सागर है और उसके आगे जाकर पश्चिम दिशा में ही क्षिप्रा नदी बह रही है। इस प्रकार यह मंदिर फेंगशुई के इस सिद्धांत के अनुरूप भी है।
एक नहीं तीन महाकाल हैं उज्जैन में
महाकाल की नगरी उज्जैन को साढ़े तीन काल का निवास स्थल माना जाता है। सबसे पहले महाकाल, फिर काल भैरव और फिर गढ़कालिका। कहा जाता है महाकाल ज्योतिर्लिंग के दर्शन के बाद यहाँ भी जाना जरूरी होता है। वर्तमान में जो महाकाल ज्योतिर्लिंग है, वह 3 खंडों में विभाजित है। निचले खंड में महाकालेश्वर, मध्य खंड में ओंकारेश्वर तथा ऊपरी खंड में श्री नागचन्द्रेश्वर मंदिर स्थित है। नागचन्द्रेश्वर शिवलिंग के दर्शन वर्ष में एक बार नागपंचमी के दिन ही करने दिए जाते हैं। गर्भगृह में विराजित भगवान महाकालेश्वर का विशाल दक्षिणमुखी शिवलिंग है। ज्योतिष में जिसका विशेष महत्व है। इसी के साथ ही गर्भगृह में माता पार्वती, भगवान गणेश व कार्तिकेय की मोहक प्रतिमाएं हैं। गर्भगृह में नंदी दीप स्थापित है, जो सदैव प्रज्ज्वलित होता रहता है। गर्भगृह के सामने विशाल कक्ष में नंदी की प्रतिमा विराजित है। इस कक्ष में बैठकर हजारों श्रद्धालु शिव आराधना का पुण्य लाभ लेते हैं।
पौराणिक कथाएं
ज्योतिर्लिंग की स्थापना से संबंधित भारतीय पुराणों में अलग-अलग कथाओं का वर्णन मिलता है। एक कथा के अनुसार अवंतिका नाम के राज्य में वृषभसेन नाम के राजा राज्य करते थे। वे अपना अधिकतर समय शिव पूजा में लगाते रहते थे। एक बार पड़ोसी राजा ने वृषभसेन के राज्य पर हमला बोल दिया। वृषभसेन ने पूरे साहस के साथ इस युद्ध का सामना किया और जीत हासिल की। अपनी हार का बदला लेने के लिए पड़ोसी राजा ने कोई ओर उपाय सोचा। इसके लिए उसने एक असुर की सहायता ली। उस दैत्य को अदृश्य होने का वर प्रदान था। पड़ोसी राजा ने उस दैत्य की मदद से अवंतिका राज्य पर हमला बोल दिया। राजा वृषभसेन ने इन हमलों से बचने के लिए भगवान शिव की शरण ली। भक्त की पुकार सुन कर भगवान साक्षात अवंतिका राज्य में प्रकट हुए। उन्होंने असुरों और पड़ोसी राजाओं से प्रजा की रक्षा की। इस पर राजा वृषभसेन और प्रजा ने भगवान शिव से अवंतिका राज्य में ही रहने का आग्रह किया। जिससे भविष्य में अन्य आक्रमण से बचा जा सके। भक्तों के आग्रह के कारण भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रुप में वहां पर प्रकट हुए। महाकाल से बढ़कर अन्य कोई ज्योतिर्लिंग नहीं है।
महाकाल से बढ़कर अन्य कोई ज्योतिर्लिंग नहीं है
कहा जाता है कि आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर लिंग और पृथ्वी पर महाकाल से बढ़कर अन्य कोई ज्योतिर्लिंग नहीं है। इसलिए महाकाल को पृथ्वी का अधिपति भी माना जाता है । यह एक दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है। शास्त्रों के अनुसार दक्षिण दिशा के स्वामी यमराज जी है। कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति मंदिर में आकर सच्चे मन से भगवान शिव की प्रार्थना करता है उसे मृत्यु के बाद मिलने वाली यातनाओं से मुक्ति मिलती है। यह भी कहा जाता है कि यहां आकर भगवान शिव के दर्शन करने से अकाल मृत्यु टल जाती है और व्यक्ति को सीधा मोक्ष प्राप्त होता है।
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