Mahakaleshwar Temple Ujjain: महाकाल से जुड़े वो बड़े रहस्य, जिसे जानकर चौंक जाएंगे आप
Mahakaleshwar Temple Ujjain: हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर भगवान ब्रह्मा द्वारा बनाया गया है। हालांकि, मंदिर की संरचना से पता चलता है कि मंदिर 18 वीं शताब्दी के मध्य में बनाया गया है। यहां की शिवलिंग स्वयंभू शिवलिंग है। यहां पूरे साल भगवान भोले के दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ लगी रहती है।

उज्जैन का महाकालेश्वर मंदिर रहस्यों से भरा हुआ है। एक के बाद एक ऐसे रहस्य हैं, जिसे जानकर भगवान भोले के भक्त आश्यचर्य चकित रह जाते हैं। आज हम आपको ऐसे ही रहस्य बताने जा रहे हैं, जिसे जानकार आप भी चौंक जाएंगे।
राजा नहीं बिताते रात
इस मंदिर के दौरे के समय कोई भी राजा या सीएम रात नहीं बिताते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां के राजा स्वयं महाकाल हैं, इसलिए जब कोई यहां शासक रूकता है तो उसकी सत्ता चली जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा विक्रामित्य के समय से ही कोई राजा यहां नहीं रूकता है। भारत के चौथे प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई एक बार यहां रात में रूके थे, अगले दिन उनकी सत्ता चली गई थी।
स्वयंभू शिवलिंग
उज्जैन के महाकालेश्व मंदिर में जो शिवलिंग है, वो स्वयंभू है, यानि कि वो खुद वहां निकला है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव यहां खुद प्रकट हुए थे। किंवदंती के अनुसार, उज्जैन के एक शासक चंद्रसेन थे, जो शिव के एक बड़े भक्त थे। हर समय वो शिव की पूजा करते थे। एक दिन, श्रीखर नाम का एक किसान का लड़का महल के मैदान में टहल रहा था और राजा को शिव के नाम का जाप करते हुए सुना और उनके साथ प्रार्थना करने के लिए मंदिर में दौड़ पड़ा। हालांकि उसे वहां पूजा करने की अनुमति नहीं मिली और उसे शहर के बाहर भेज दिया गया। जहां उस बालक ने दुश्मनों को हमले की योजना बनाते हुए सुना। बालक ने इसके बाद अपने राज्य को बचाने के लिए शिव से प्रार्थना करना शुरू दिया। इसके बाद दुश्मनों ने हमला किया और लगभग जीत ही लिया था कि भोले भक्तों की पुकार पर अवतरित हुए और उनका संहार कर दिया। जिसके बाद उनके भक्तों ने उन्हें वहीं रहने का आग्रह किया। अपने भक्तों और श्रीखर के अनुरोध पर, भगवान शिव शहर में निवास करने और राज्य के प्रमुख देवता बनने के लिए सहमत हो गए।
दक्षिणमुखी शिवलिंग
महाकालेश्वर में जो शिवलिंग है वो दक्षिणमुखी है। यानि कि यहां शिवलिंग दक्षिण दिशा की ओर है। यह एक अनूठी विशेषता है, जो और कहीं नहीं है। 12 ज्योतिर्लिंगों में से केवल महाकालेश्वर में ही शिवलिंग दक्षिणमुखी है।
भस्म आरती
महाकालेश्व मंदिर एकलौती ऐसी जगह है, जहां शिव को भस्म से आरती की जाती है। प्राचीन कथाओं के अनुसार यहां चिता की राख से यह आरती की जाती थी, हालांकि आज के समय में ऐसा नहीं है। आज कंडे की राख से भस्म आरती की जाती है। भस्म आरती के समय महिलाओं की उपस्थिति वर्जित है। अगर किसी कारणवश वहां कोई महिला उपस्थित है, तो उसे घूंघट करना अनिवार्य है।
महाकाल नाम
सबसे बड़ा रहस्य इस ज्योतिर्लिंग के नाम में है। आखिर भगवान शिव को यहां महाकाल क्यों कहा जाता है? दरअसल काल का दो अर्थ है- समय और मृत्यु। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव मृत्यु और काल के देवता हैं। काल और मृत्यु दोनों को परास्त करने वाला महाकाल कहलाता है। भगवान शिव समय और मृत्यु पर विजय प्राप्त करते हैं, इसलिए उन्हें इस नाम से बुलाया जाता है।
जूना महाकाल
कुछ राजाओं और आक्रमणकारियों के समय इस मंदिर में मौजूद असली शिवलिंग को कई बार नष्ट करने की कोशिश की गई थी, जिससे बचने के लिए पुजारियों ने असली शिवलिंग को वहां से हटा दिया और एक दूसरा शिवलिंग रखकर पूजा करने लगे। इसके बाद जब असली शिवलिंग को वापस स्थापित किया गया तो हटाई गई शिवलिंग को मंदिर के ही प्रांगण में स्थापित कर दिया गया। इसे जूना महाकाल कहते हैं।
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