Mahashivratri 2024: इस मंदिर में एक साथ बसे हैं शिव और विष्णु, जानें क्या है इसकी खासियत

Lingaraj Temple: भारत में अनेक प्राचनी मंदिर है। जिनकी अपनी अलग- अलग खासियत है। भारत में भगवान शिव के अनेक मंदिर देखने को मिल जाएंगे। इन्हीं में से एक लिंगराज मंदिर। ऐसे में आइए जानते हैं लिंगराज मंदिर की खासिय के बारे में।

Lingaraj Temple

Lingaraj Temple

Mahashivratri 2024 :महाशिवरात्रि का त्योहार पूरे देश में बहुत ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस दिन भगवान भोलेनाथ की विशेष पूजा- अर्चना की जाती है। महाशिवरात्रि के दिन भारी संख्या में शिव भक्त मंदिरों में जाकर शिव जी का जलाभिषेक करते हैं और उनकी विधिवत पूजा करते हैं। इस साल महाशिवरात्रि का व्रत 8 मार्च को रखा जाएगा। इस दिन का व्रत रखने से साधक को शुभ फल की प्राप्ति होती है। महाशिवरात्रि के दिन शिव मंदिर जाकर पूजा करना उत्तम माना जाता है। आज हम बात कर रहे हैं भगवान शंकर के लिंगराज मंदिर के बारे में। जहां शिव के साथ श्री हरि की भी पूजा की जाती है। ऐसे में आइए जानते हैं क्या है लिंगराज मंदिर की खासियत और इतिहास।

कहां स्थित है लिंगराज मंदिर (Where is Lingaraj Temple located?)भगवान शिव का लिंगराज मंदिर ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में स्थित है। यह मंदिर भारत के सुप्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यहां पर भगवान भोलेनाथ और भगवान विष्णु की पूजा के साथ होती है। इस मंदिर को उड़िया शौली में बनाया गया है। इस मंदिर की ऊंचाई लगभग 55 फीट है।

लिंगराज मंदिर की खासियत (Specialty of Lingaraja Temple)भगवान शिव का लिंगराज मंदिर एक ऐसा मंदिर हैं जहां भगवान लिंगराज विराजमान है। ऐसा माना जाता है कि लिंगराज पूरे 12 ज्योतिर्लिंगों के राजा है। ज्योतिर्लिंग के राज के रूप में ही यहां पर उनकी पूजा होती है। इस मंदिर के प्रागण में छोटे बड़े 150 मंदिर है। इस मंदिर में मुख्य रूप से हरिहर देवती की पूजा होती है। हरिहर से अर्थ श्री हरि और हर का मतलब है भगवान शिव। यहां पर भगवान शिव और विष्णु की पूजा के साथ होती है। इस मंदिर में एक छोटा सा कुंड इसे मरीची के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है यहां पर स्नान करने से महिलाओं का संतान से जुड़ी परेशानियों से मुक्ति मिलती है।

लिंगराज मंदिर का इतिहास (Lingaraja History)लिंगराज मंदिर भारत के उन मंदिरों में से एक है जिसकी वास्तुकला शानदार है। इसका निर्माण 10वीं और 11वीं सदी में हुआ था। इस मंदिर का निर्माण सोमवंशी राजा जजाति केसरी ने करवाया था। मंदिर की ऊंचाई 55 मीटर है, इसमें बेहद खूबसूरत नक्काशी की गई है। यह मंदिर कलिंग और उड़िया शैली में बना है। इसे बनाने में बलुआ पत्थर का उपयोग किया गया था। खासियत यह है कि इस मंदिर के शीर्ष पर एक उलटी घंटी और एक कलश है, जो लोगों को काफी आश्चर्यचकित करता है। इसका ऊपरी भाग पिरामिड के आकार का है। अन्य हिंदू मंदिरों की तुलना में, लिंगराज कुछ सख्त परंपराओं का पालन करता है। इसी वजह से इस मंदिर में गैर-हिंदुओं को प्रवेश की इजाजत नहीं है। हालांकि, इस मंदिर के पास एक चबूतरा बनाया गया था ताकि अन्य धर्मों के लोग भी इसे स्पष्ट रूप से देख सकें।

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    TNN अध्यात्म डेस्क author

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