Mahashivratri 2024: भगवान शिव की जटा में गंगा और माथे पर है चंदा, जानें क्या है उनकी वेशभूषा का महत्व

Mahashivratri 2024: महाशिवरात्रि का पर्व भगवान भोलेनाथ को समर्पित है। इस दिन शिव भक्त शिव जी की भक्ति में लीन होते हैं और उनकी विधि- विधान से पूजा करते हैं। भगवान शिव का व्यक्तित्व जितना रहस्यमयी है उतनी ही उनकी वेशभूषा भी। आइए जानते हैं शिव के इस रूप का क्या है रहस्य।

Mahashivratri 2024

Mahashivratri 2024

Mahashivratri 2024: हिंदू धर्म में भगवान भोलेनाथ को साकार एंव निराकार दोनों ही रूप में पूजा जाता है। शिव पुराण में शिव को अभिनाशी माना गया है। देवों के देव महादेव अपने भक्तों की हर मनोकामना पल भर में पूरी करते हैं। भगवान शिव को सृ्ष्टि का सृजनाकर्ता माना गया है। भगवान भोलेनाथ शमासान में निवास करते हैं। वो जन्म और मरण के बंधन से मुक्त हैं। भगवान शिव को भोलेनाथ के नाम से भी जाना जाता है। भगवान शिव में शांत और क्रोध दोनों ही भाव विराजमान हैं। भगवान शंकर की वेशभूषा उन्हें दूसरे देवी देवताओं से अलग बनाती है। जितना अद्भुत शिव का व्यक्तित्व है उतनी ही उनकी वेशभूषा भी अद्भुत है। शिव की जटा में गंगा बहती है तो माथे पर चंद्रमा विराजते हैं। गले में सर्प माला है और बदन पर मृग छाला है। आज हम बात करने जा रहे हैं शिव जी की वेशभूषा के बारे में। ऐसे में आइए जानते हैं शिव के विचित्र स्वरूप के रहस्य के बारे में। आखिर क्यों शिव ने बनाया है ये रूप?

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माथे पर क्यों विराजमान है चंद्रमाभगवान शिव के माथे पर चंद्रना विराजान है। इस कारण भगवान शिव को भालचंद्र के नाम से भी जाना जाता है। चंद्रमा को शांति का प्रतीक माना जाता है। भगवान शिव ने अपने मन को शांत रखने के लिए अपने माथे पर चंद्रमा को विराजित किया हुआ है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चंद्रमा मन का प्रतीक है। इस कारण मन को काबू करने के लिए चंद्रमा को शिव जी ने अपने माथे पर स्थान दिया है। पौराणिक कथा के अनुसार चंद्रमा ने राजा दक्ष की 27 पुत्रियों से विवाह किया था। उनमे से वो सिर्फ एक पत्नि रोहिणी को बहुत प्यार करते थे। बांकि सारी पत्नियां इस बात से नाराज हो गई और उन्होंने अपने पिता दक्ष से चंद्र देव की शिकायत कर दी। इसके बाद दक्ष ने चंद्रमा को क्षय रोग का श्राप दे दिया। इस रोग से मुक्त होने के लिए चंद्रमा ने शिव की तपस्या की और उनकी कृपा प्राप्ति की। शिव उनकी भक्ति से प्रसन्न हुए और उन्हें अपने माथे पर स्थान दे दिया।

जटा में बहती है गंगा

भगवान भोलेनाथ की जटा में मां गंगा विराजमान है। शिव पुराण के अनुसार भागीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर मां गंगा तेज गति से धरती लोक की ओर आ रहीं थी। उनके वेग इतना तेज था कि उसमें सारी धरती ही समा जाती। मां गंगा के वेग कम करने के लिए भगवान शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में बांध लिया और मां गंगा की एक धार को धरती पर जनकल्याण के लिए भेज दिया।

हाथों में त्रिशूल

भगवान शिव के हाथों में त्रिशूल विराजमान है, इसलिए इन्हें त्रिशूलधारी भी कहा जाता है। भगवान शिव का त्रिशूल रज, तम और सत गुणों का प्रतीक माना जाता है। ऐसी भी मान्यता है कि शिव जी का त्रिशूल जन्म, मरण और पोषण का प्रतीक है।

तीन आंखें

भगवान भोलेनाथ की तीन आंखें है। तीन आंखें होने के कारण इन्हें त्रिनेत्रधारी भी कहा जाता है। भगवान शिव का तीसरा नेत्र बुद्धि और विवेक का कारक माना जाता है। ये तीसरा नेत्र हर किसी के पास होता है। बस उसे उस दृष्टि से देखने की आवश्यकता होती है। तीसरा नेत्र मनुष्य को विषम परिस्थिति में सही रास्ता दिखाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार शिव के तीसरे नेत्र के खुलने से संसार में प्रलय आ सकती है।

गले में सांप

भगवान शिव के गले में सांप विराजमान है। वासुकि नाग भगवान शंकर का परम भक्त है। समुद्र मंथन के दौरान जब वासुकि नाग की रस्सी बनाकर समुद्र का मंथन किया गया। तब भगवान शिव इनसे बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने वासुकि नाग को अपने गले में धारण कर लिया।

मृग छाल

पौरणिक कथा के अनुसार जब प्रह्लाद की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया तब हिरण्यकश्यप का वध करने के बाद भी उनका क्रोध शांत नहीं हुआ। विष्णु के क्रोध को शांत करने के लिए भगवान शिव ने वीरभद्र अवतार लिया और उनसे क्रोध को शांत करने के लिए विनती की। शिव की विनती से भी विष्णु का क्रोध शांत नहीं हुआ तब भगवान भोलेनाथ ने शरभ अवतार लिया और अपनी चोंच से नरसिंह भगवान पर हमला करने लगे। ऐसा करने से नरसिंह भगवान घायल हो गए और उन्होंने उनसे विनती की आप मेरी छाल को अपने आसन के रूप में धारण करें।

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    TNN अध्यात्म डेस्क author

    अध्यात्म और ज्योतिष की दुनिया बेहद दिलचस्प है। यहां हर समय कुछ नया सिखने और जानने को मिलता है। अगर आपकी अध्यात्म और ज्योतिष में गहरी रुचि है और आप इस ...और देखें

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