Mahashivratri 2024: इस मंदिर में शिव जी को चढ़ाया जाता है झाड़ू, जानें इसकी पीछे का कारण
Pataleshwar Mahadev Temple: जल्द ही महाशिवरात्रि का त्योहार आने वाला है। इस दिन शिव भक्त शिव मंदिर में जाकर भगवान भोलेनाथ की विशेष पूजा- अर्चना की जाती है। आइए जानते हैं ऐसे ही एक शिव मंदिर के बारे में जहां में चढ़ाया जाता है झाड़ू।
Pataleshwar Mahadev Temple
Pataleshwar Mahadev Temple: भारत में महाशिवरात्रि का त्योहार बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन भगवान भोलेनाथ के मंदिरों में भक्त लाखों की संख्या में पूजा करने आते हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव की पूजा करने से साधक की हर मनोकामना पूरी हो जाती है। भगवान शिव के बहुत सारे ऐसे मंदिर है। जहां के दशर्न करने मात्र से ही साधक की सारी परेशानियां दूर हो जाती हैं। इसी में से एक मंदिर है पातालेश्वर महादेव का मंदिर। इस मंदिर में भक्त अपने आराध्य भगवान शिव को झाड़ू चढ़ाते हैं। इस मंदिर में भगवान के दर्शन के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है। आइए जानते हैं इस मंदिर की खासियत।
Pataleshwar Mahadev Temple (पातालेश्वर महादेव का मंदिर)यह मंदिर देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद और संभल जिले के सादातबारी बहजोय नामक गांव में स्थित है जिसे पातालेश्वर शिव मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर में सोमवार, शिवरात्रि और सावन के महीने में भगवान शिव को झाड़ू चढ़ाने के लिए लंबी कतार लगती है।
क्यों चढ़ाया जाता है झाड़ूपातालेश्वर मंदिर के प्रति लोगों की श्रद्धा और आस्था बहुत अधिक है। स्थानीय लोग इस मंदिर की पूजा करते हैं और मानते हैं कि भगवान शिव को झाड़ू चढ़ाने से त्वचा संबंधी रोगों से राहत मिलती है। यह मंदिर मुरादाबाद में बहुत लोकप्रिय है। यह मंदिर करीब 150 साल पुराना है और तभी से यहां झाड़ू चढ़ाने की परंपरा चली आ रही है। मान्यता है कि त्वचा रोग से पीड़ित लोगों को पातालेश्वर मंदिर में जाकर झाड़ू चढ़ाना चाहिए।
क्या है पातालेश्वर महादेव की कहानीपौराणिक कथा के अनुसार, मुरादाबाद में भिखारी दास नाम का एक व्यापारी रहता था जो बहुत अमीर था। लेकिन उन्हें त्वचा की गंभीर बीमारी थी। वह इस बीमारी का इलाज कराने ही वाला था कि अचानक उसे प्यास लगी। वह भगवान के इस मंदिर में पानी पीने के लिए आया और तभी उसका सामना फर्श पर झाड़ू लगा रहे महंत से हुआ। इसके बाद उनकी बीमारी बिना इलाज के ही गायब हो गई। सेठ इस बात से खुश हुआ और महंत को अशर्फियां देना चाहता था, लेकिन महंत ने इसे लेने से इनकार कर दिया। इसके बजाय, उन्होंने सेठ से यहां एक मंदिर बनाने के लिए कहा। इसके बाद इस मंदिर में झाड़ू चढ़ाने की परंपरा शुरू गई। जिन लोगों को त्वचा संबंधी बिमारी हो जाती है वो यहां आकर झाड़ू चढ़ाते हैं तो उस कष्ट से उन्हें मुक्ति मिलती है।
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TNN अध्यात्म डेस्क author
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