Makar Sankranti Katha: मकर संक्रांति धर्मराज की कहानी यहां पढ़ें

Makar Sankranti Ki Katha: मकर संक्रांति पर्व के दिन कई लोग उपवास रखते हैं और विधि विधान सूर्य देव की उपासना करते हैं। इस दिन धर्मराज की ये कहानी जरूर सुननी चाहिए।

Makar Sankranti Ki Katha

Makar Sankranti Katha, Kahani And Story In Hindi

Makar Sankranti Ki Katha (मकर संक्रांति की कथा): हिंदू धर्म में शायद ही कोई ऐसा त्योहार हो जिससे जुड़ी कोई पौराणिक कथा या कहानी न हो। बात मकर संक्रांति पर्व की करें तो इससे जुड़ी भी कई कहानियां प्रचलित हैं। बता दें इस साल मकर संक्रांति पर्व 15 जनवरी को मनाया जाएगा। धार्मिक मान्यताओं अनुसार मकर संक्रांति के दिन ही गंगा मैया भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जा मिली थीं। कहते ये भी हैं कि इसी दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत किया था। साथ ही इस पर्व की एक कहानी धर्मराज से भी जुड़ी है जिससे इस पर्व में जरूर पढ़ना या सुनना चाहिए।

मकर संक्रांति पर धर्मराज की कहानी (Makar Sankranti Dharamraj Ki Kahani)

एक समय जब पृथ्वीलोक पर बबरुवाहन नामक एक राजा हुआ करता था। उसके राज्य में किसी चीज की कमी नहीं थी। इसी राज्य में एक हरिदास नामक ब्राह्मण भी निवास करता था। जिसका विवाह गुणवती से हुआ था जो कि बहुत ही धर्मवती एवं पतिव्रता महिला थी। गुणवती ने अपना पूरा जीवन सभी देवी देवताओं की उपासना में लगा दिया और वह सभी प्रकार के व्रत करती थी और दान धर्म भी किया करती थी। इसके अलावा अतिथि सेवा को वह अपना धर्म मानती थी। ऐसे ही ईश्वर की उपासना करते हुए वह वृद्ध हो गयी। जब उसकी मृत्यु हुई तो धर्मराज के दूत उसे अपने साथ धर्मराजपुर ले गए।

यमलोक में एक सुन्दर सिंहासन पर यम धर्मराज विराजमान थे और उनके पास ही चित्रगुप्त भी बैठे थे। चित्रगुप्त जब धर्मराज को प्राणियों का लेखा जोखा सुना रहे थे तभी यमदूत गुणवती को लेकर पहुंचे। गुणवती यमराज को देखकर थोड़ी भयभीत हुई और मुंह निचे करके खड़ी हो गयी। फिर चित्रगुप्त ने गुणवती का ब्यौरा निकाला और उसके बारे में धर्मराज को बताया। धर्मराज ने गुणवती का पूरा ब्यौरा देखा और वे प्रसन्न हुए लेकिन फिर भी उनके मुख पर थोड़ी सी उदासी भी छायी हुई थी। यह देखकर गुणवती ने पूछा – हे प्रभु, मैंने तो अपने जीवन काल में सारे सत्कर्म ही किये फिर भी आपके मुख पर उदासी छायी है इसका कारण क्या है? प्रभु मुझसे क्या भूल हुई है?

धर्मराज ने कहा – हे देवी, तुमने सभी देवी-देवताओं के व्रत किए हैं, उपासना की है लेकिन कभी भी तुमने मेरे नाम से कुछ पूजा या पाठ या दान नहीं किया। धर्मराज की बात सुनते ही गुणवती क्षमा याचना करने लगी और कहने लगी हे प्रभु मुझे आपकी उपासना के बारे में कुछ पता नहीं है। कृपा करके मुझे ऐसा उपाय बताइये प्रभु जिससे सभी मनुष्य आपकी कृपा के पात्र बन सकें। मैं आपके मुख से आपकी भक्ति का मार्ग सुनना चाहती हूं और मेरी कामना है कि मृत्यु लोक पर वापस जाकर मैं आपकी भक्ति करूं और सभी लोगों को इस बारे में बताऊं।

धर्मराज ने बताया- जिस दिन सूर्य देव उत्तरायण में प्रवेश करते हैं यानि मकर संक्रांति के दिन मेरी पूजा शुरू करनी चाहिए और उस दिन से लेकर पूरे एक साल तक मेरी पूजा करते हुए ये कथा सुननी चाहिए। साथ ही मेरी पूजा करने वाले व्यक्ति को धर्म के इन दस नियमों का पालन अवश्य करना चाहिए।

  1. धीरज रखना यानी संतुष्ट रहना।
  2. अपने मन को वश में रखना और सभी को क्षमा करना।
  3. किसी प्रकार का दुष्कर्म नहीं करना।
  4. मानसिक और शारीरिक शुद्धि का ध्यान रखना।
  5. अपनी इन्द्रियों को वश में रखना।
  6. बुरे विचारों को अपने मन में न लाना।
  7. पूजा, पाठ और दान पुण्य करना।
  8. व्रत करना और व्रत की कहानी सुनना।
  9. सच बोलना और सभी से अच्छा व सच्चा व्यवहार करना।
  10. क्रोध न करना।
धर्म के इन सभी लक्षणों का पालन करते हुए एक साल तक मेरी कथा नियम से सुनें, दान पुण्य और परोपकार के काम करें और अगली मकर संक्रांति पर इस व्रत का उद्यापन करें। इसके बाद मेरी एक मूर्ति बनाकर विधि विधान से प्राण प्रतिष्ठा करवाकर हवन पूजन करें और साथ ही चित्रगुप्त की भी पूजा करें। और काले तिल के लड्डू का भोग लगाएं।

इसके बाद ब्राह्मण भोज करवाएं व बांस की टोकरी में 5 सेर अनाज का दान करें। साथ ही किसी जरूरतमंद को गद्दा, तकिया, कम्बल, छप्पन, लोटा व वस्त्र आदि का दान करें, संभव हो तो गौ दान करें। धर्मराज से व्रत की पूरा कथा सुनकर गुणवती ने पुनः धर्मराज से प्रार्थना की हे प्रभो ! मुझे फिर से मृत्यु-लोक में जाने दीजिये। जिससे मैं आपका व्रत कर सकूं साथ ही इस व्रत का प्रचार भी लोगों मे कर सकूं। इस पर यमराज ने गुणवति को धरकी लोक पर फिर से जाने दिया।

धरती पर वापस आकर गुणवती ने धर्मराज द्वारा बताए गए व्रत के बारे में अपने पतिदेव को बताया। मकर संक्रांति आते ही गुणवती और उसके पति ने ये व्रत शुरू कर दिया। इसी व्रत के प्रभाव से उनपर धर्मराज की कृपा हुई और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई।

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