Pradosh Vrat Katha: मंगल प्रदोष व्रत कथा पढ़ने से भगवान शिव और बजरंगबली होंगे प्रसन्न
Mangal Pradosh Vrat Katha In Hindi (Bhaum Pradosh Vrat Katha): जो प्रदोष व्रत मंगलवार के दिन पड़ता है वह भौम प्रदोष व्रत या मंगल प्रदोष व्रत कहलाता है। यहां आप जानेंगे मंगल प्रदोष व्रत कथा या भौम प्रदोष कथा।
Mangal Pradosh Vrat Katha In Hindi, Bhaum Pradosh Katha
Mangal Pradosh Vrat Katha In Hindi (Bhaum Pradosh Vrat Katha): आज मंगलवार प्रदोष व्रत है। जिसे भौम प्रदोष व्रत के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता है इस व्रत को करने से व्यक्ति को कर्ज और रोग से छुटकारा मिल जाता है। साथ ही भगवान शिव की असीम कृपा प्राप्त होती है। मंगल प्रदोष व्रत को करने से मंगल दोष से भी मुक्ति मिल जाती है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। यहां जानिए मंगलवार प्रदोष व्रत की कथा (Mangalwar Pradosh Vrat Katha In Hindi)।
मंगल प्रदोष व्रत पूजा विधि और शुभ मुहूर्त
Mangal Pradosh Vrat Katha Or Bhaum Pradosh Vrat Katha In Hindi
मंगलवार प्रदोष व्रत की कथा अनुसार एक समय की बात है। एक नगर में एक वृद्धा रहती थी। जिसका एक ही पुत्र था। वृद्धा हनुमान जी की परम भक्त थी। वह प्रत्येक मंगलवार को नियमपूर्वक व्रत रखती थी। एक बार हनुमानजी ने उस वृद्ध महिला की श्रद्धा का परीक्षण करने का विचार किया।
हनुमानजी साधु के वेश में वृद्धा के घर गए और पुकारने लगे- है कोई हनुमान भक्त! जो हमारी इच्छा पूर्ण करे? पुकार सुन वृद्धा जल्दी से बाहर आई और साधु को प्रणाम कर बोली- आज्ञा महाराज! हनुमान जी साधु के रूप में बोले- मैं भूखा हूं, भोजन करूंगा, तुम थोड़ी जमीन लीप दो।
वृद्धा दुविधा में पड़ गई और हाथ जोड़कर बोली- महाराज! लीपने और मिट्टी खोदने के अलावा आप कोई दूसरी आज्ञा दें, मैं अवश्य पूर्ण करूंगी। साधु ने तीन बार प्रतिज्ञा कराने के बाद कहा- तू अपने बेटे को बुला। मैं उसकी पीठ पर आग जलाकर भोजन बनाऊंगा।
यह सुनकर वृद्धा घबरा गई, लेकिन वह प्रतिज्ञाबद्ध थी। उसने अपने पुत्र को बुलाकर साधु को सौंप दिया। वेशधारी साधु हनुमान जी ने वृद्धा के हाथों से ही उसके पुत्र को पेट के बल लिटवाया और उसकी पीठ पर आग जलवाई। आग जलाकर वृद्धा दु:खी मन से अपने घर में चली गई।
इधर भोजन बनाकर साधु ने उस वृद्धा को बुलाया और कहा कि उनका भोजन बन गया है। तुम अपने पुत्र को पुकारो ताकि वह भी आकर भोग लगा ले। इस पर वृद्धा बोली- उसका नाम लेकर मुझे और कष्ट न दें।
लेकिन जब साधु महाराज नहीं माने तो वृद्धा ने अपने पुत्र को आवाज दी। वह अपनी मां के पास आ गया। अपने पुत्र को जीवित देख वृद्धा को आश्चर्य हुआ और वह उस साधु के चरणों में गिर पड़ी।
तब हनुमानजी ने उस वृद्धा को अपने वास्तविक रूप के दर्शन दिए और वृद्धा को भक्ति का आशीर्वाद दिया। बोलो बजरंगबली की जय! हर हर महादेव !
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