Masik Shivratri Vrat Katha: मासिक शिवरात्रि व्रत वाले दिन जरूर पढ़ें ये कथा

Masik Shivratri Vrat Katha In Hindi: हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मासिक शिवरात्रि व्रत रखा जाता है। हिंदू धर्म में इस व्रत का विशेष महत्व बताया जाता है। यहां पढ़ें मासिक शिवरात्रि की व्रत कथा हिंदी में।

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Masik Shivratri Vrat Katha: मासिक शिवरात्रि व्रत कथा

Masik Shivratri Vrat Katha In Hindi: कोई भी व्रत बिना उस व्रत की कथा को पढ़े अधूरा माना जाता है। 16 जून को मासिक शिवरात्रि व्रत पड़ा है। हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को ये व्रत रखा जाता है। इस व्रत का विशेष महत्व माना जाता है। मान्यता है कि शिवरात्रि व्रत करने से व्यक्ति के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और भक्त को शिव की असीम कृपा प्राप्त होती है। मासिक शिवरात्रि के दिन शिव जी की विधि विधान पूजा करने के बाद शिवरात्रि की कथा पढ़ना बिल्कुल भी न भूलें। यहां देखें मासिक शिवरात्रि की व्रत कथा हिंदी में।

मासिक शिवरात्रि पर कैसे करें शिव जी की पूजा, जानें पूरी विधि यहां

Masik Shivrati Vrat Katha In Hindi

पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में चित्रभानु नाम का एक शिकारी था। जो जानवरों की हत्या करके अपने परिवार को पालता था। लेकिन ये शिकारी साहूकार का कर्जदार था, वो उसका ऋण समय पर नहीं चुका सका। जिससे क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि का पावन दिन था। शिकारी ध्यानमग्न होकर शिवरात्रि और शिव से संबंधित धार्मिक बातें सुनता रहा। उस दिन उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी। शाम में साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी ने कहा कि वो अगले दिन सारा ऋण लौटा देगा। शिकारी के मुख से ऐसी बातें सुनकर साहुकार ने उसे छोड़ दिया। अपनी दिनचर्या की भांति वह जंगल में शिकार के लिए निकल पड़ा लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण वो भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकारी अपना शिकार खोजता हुआ काफी दूर निकल गया। जब अंधेरा हुआ तो उसने विचार किया कि लगता है आज रात जंगल में ही बितानी पड़ेगी। वह वन में एक तालाब के किनारे बेल के पेड़ पर चढ़ कर रात बीताने लगा।

जिस बिल्व वृक्ष पर शिकारी था उसके ठीक नीचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढंका हुआ था। शिकारी को शिवलिंग का पता नहीं चल सका। पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं, वो शिवलिंग पर गिरती चली गईं। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे रहकर जाने अनजाने में उस शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बिल्वपत्र भी चढ़ गए। एक पहर रात्रि बीत जाने के बाद एक गर्भिणी हिरणी तालाब पर पहुंची। शिकारी ने धनुष उस पर तान दिया, हिरणी बोली- 'मैं गर्भिणी हूं। शीघ्र ही प्रसव करूंगी। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब मार लेना।'

शिकारी ने उसे जाने दिया। प्रत्यंचा चढ़ाने तथा ढीली करने के समय भी कुछ बिल्व पत्र अनायास ही टूट कर शिकारी के हाथों शिवलिंग पर गिर गए। इस प्रकार उसने प्रथम प्रहर का पूजन भी सम्पन्न कर ली। कुछ देर बाद एक और हिरणी वहां से निकली। शिकारी ने उसे देखकर धनुष पर बाण चढ़ाया। तब हिरणी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया- 'हे शिकारी! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूं। अपने प्रिय को खोज रही हूं। मैं वचन देती हूं कि अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास वापस आ जाऊंगी।' शिकारी ने उसे भी जाने दिया।

दो बार शिकार खोकर शिकारी परेशान हो गया। वह चिंता में पड़ गया। अब धीरे-धीरे रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। इस बार भी शिकारी के धनुष से लग कर कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर गिरे गए तथा इस तरह से दूसरे प्रहर की पूजन भी सम्पन्न हो गई। तभी एक और हिरणी अपने बच्चों के साथ वहां से निकली। शिकारी ने धनुष पर तुरंत ही तीर चढ़ा दिया। वह तीर छोड़ने ही वाला था कि हिरणी बोली- 'हे शिकारी! मैं इन बच्चों को इनके पिता के पास करके लौट आऊंगी। इस समय मुझे मत मारो।'

शिकारी हंसा और बोला- 'सामने आए शिकार को मैं कैसे छोड़ दूं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार छोड़ चुका हूं। मेरे बच्चे भूख-प्यास से परेशान हो रहे होंगे।' हिरणी ने फिर कहा- जैसे तुम्हें अपने बच्चों का मोह है ठीक वैसे ही मुझे भी अपने बच्चों की चिंता है। हे शिकारी! मेरा विश्वास करो, मैं इन्हें इन बच्चों को इनके पिता के पास छोड़कर शीघ्र ही आ जाऊंगी। हिरणी का दुख से भरे स्वर सुनकर शिकारी का दिल पिघल गया। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार न मिल पाने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल शिकारी अनजाने में ही बेल-वृक्ष पर बैठा बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता रहा। पौ फटने को हुई तो एक हष्ट-पुष्ट मृग उसे आते दिखा। शिकारी ने सोच लिया कि इस बार वो इसका शिकार अवश्य करेगा।

शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग बोला- ' हे शिकारी! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलंब न करो क्योंकि मैं उनका वियोग नहीं सह पाऊंगा। क्योंकि मैं उन हिरणियों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण दे दो ताकि मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो पाऊं।

शिकारी ने उसे भी जाने दिया। उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से अनजाने में ही सही उस शिकारी का शिवरात्रि व्रत पूरा हो गया। पर अनजाने में ही की हुई पूजन का परिणाम उसे तत्काल मिला। रात में हुई घटनाओं के कारण शिकारी का हिंसक हृदय अब निर्मल हो गया था। थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता और सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को ग्लानि हुई। उसने मृग परिवार का शिकार नहीं किया। अनजाने में शिवरात्रि के व्रत का पालन करने से उस शिकारी को मोक्ष की प्राप्ति हुई।

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लवीना शर्मा author

धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर की रहने वाली हूं। पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। 10 साल से मीडिया में काम कर रही हूं। पत्रकारिता में करि...और देखें

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