Radha Raman Temple: ब्रज का ऐसा मंदिर जहां साढ़े पांच सौ साल से नहीं जली कभी माचिस की तिल्ली
Radha Raman Temple: वृंदावन के सप्त देवालय में शामिल है राधा रमण जी का मंदिर। पांच वर्ष पूर्व गोपाल भट्ट स्वामी ने हवन कुंड की लकड़ियों को आपस में रगड़ कर प्रज्ज्वलित की थी अग्नि। भगवान का भाेग इसी प्रज्जवलित अग्नि में आज भी पकाया जाता है। एक विग्रह में दिखती हैं तीन विग्रहों की छवि।
वृंदावन में स्थित राधा रमण जी का मंदिर
- 500 साल पहले गोपाल भट्ट स्वामी ने प्रकट की थी अग्नि
- शालिग्रम से प्रकट हुए थे वृंदावन में राधा रमण जी विग्रह
- एक विग्रह में गोविंद देव जी, गोपीनाथ, मदन मोहन की छवि
Radha Raman Temple: हरी अनंत हरी कथा अनंता और हरी की लीलाओं के रहस्य की भी बात अनंत। ब्रज धाम, केशव का धाम अपने आप में न जाने कितने ही रहस्य समेटे हुए है। ब्रज धाम में यदि कुछ मान्य है तो वो है निष्काम भक्ति। यदि भक्ति निस्वार्थ और निश्छल हो तो तीनों लोक के स्वामी स्वयं नारायण आपको किसी न किसी रूप में दर्शन दे देंगे और आपके पास ही विराजेंगे। ब्रजधाम वृंदापन में भक्ति का सजीव सा उदाहरण है राधा रमण जी मंदिर। वृंदावन के सप्त देवालयों में शामिल राधा रमण जी मंदिर, ठाकुर बांके बिहारी मंदिर से बस कुछ ही दूरी पर है।
यहां की मान्यता किसी भी रूप से बिहारी जी के मंदिर से कम नहीं है। आप जैसे ही प्रवेश द्वार से अंदर जाएंगे तो ठाकुर जी की छोटी सी प्रतिमा आपको देख रही होगी। अचरज होगी ये देखकर कि ठाकुर जी के इस विग्रह के बहुत बार कभी दांत प्रकट होकर दिखते हैं तो कभी नहीं भी दिखते, बस अधरों पर मुस्कान रहती है। इसी तरह के तमाम रहस्यों को समेटे है ठाकुर राधा रमण जी मंदिर।
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एक विग्रह में तीन छवियां
एक विग्रह में तीन छवियां, है न अपने आप में हैरान कर देने वाली बात। किंतु ये मान्यता है कि राधा रमण जी मंदिर के विग्रह का मुख गोविंद देव जी, वक्ष स्थल गोपी नाथ जी और चरण मदन मोहन जी के विग्रह के समान है।
करीब पांच सौ साल नहीं हुआ माचिस का प्रयोग
ठाकुर राधा रमण जी मंदिर परंपरा के अनुसार यहां किसी भी कार्य में माचिस का प्रयोग नहीं किया जाता है। करीब 500 वर्ष से यहां अग्नि स्वतः प्रज्जवलित है। बताया जाता है कि चैतन्य महाप्रभु के शिष्य एवं राधा रमण जी विग्रह के प्रकट कर्ता गोपाल भट्ट गोस्वामी ने करीब 500 वर्ष पूर्व हवन की लकड़ियों को एक दूसरे के साथ मंत्रोच्चारण करते हुए घिसा। उस वक्त जो अग्नि हवन कुंड से प्रज्जवलित हुयी उस अग्नि से राधा रमण जी की रसोई में भाेजन पकाया जाने लगा। उस वक्त से आज तक उसी अग्नि से भाेजन पकाया जा रहा है।
मंदिर का इतिहास
राधा रमण जी मंदिर के श्री विग्रह चैतन्य महाप्रभु के शिष्य गोपाल भट्ट स्वामी ने करीब 500 साल पहले उनकी कड़ी भक्ति और साधना से प्रकट हुए थे। आचार्य गोपाल भट्ट शालिग्राम जी की सेवा करते थे। उनके मन में एक ही इच्छा रहती थी कि शालिग्राम जी श्री विग्रह के रूप में दर्शन दें। वैशाख शुक्ल पूर्णिमा को शालिग्राम जी में राधा रमण जी का प्राकट्य हुआ।
डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।
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