Mudra Vigyan: पेट की गैस से लेकर अन्य शारीरिक परेशानियों को दूर करने में सहायक है ये मुद्राएं

Mudra Vigyan: हाथाें की उंगलियों के विशेष मेल से बनने वाली मुद्राएं अध्यात्मिक उन्नति के साथ देती हैं स्वास्थ्य भी। अपान और वायु मुद्रा के संयोग से बनती है अपान वायु मुद्रा तो शंख मुद्रा का होता है पूजा में भी प्रयोग। आइये जानते हैं कैसे दोनों मुद्राएं प्रतिदिन बनाने से मिलता है पेट और हृदय रोग में आराम।

Mudra Vigyan

शारीरिक और मानसिक परेशानियों को दूर करने मुद्राएं

तस्वीर साभार : Times Now Digital
मुख्य बातें
  • दो मुद्राओं के संयोग से बनती है अपान वायु मुद्रा
  • शंख मुद्रा का प्रयोग होता है अधिकतर पूजा में भी
  • पेट में गैस, हृदय आदि रोगों में फायदेमंद हैं मुद्राएं

Mudra Vigyan: पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु और धरती तत्व का वास होता है हाथ की पांचों उंगलियों में। वहीं सृष्टि के ये पंच तत्व ही शरीर का आधार भी हैं। यदि इन तत्वों का आपसी तालमेल हो तो शरीर को पूर्ण रूप से स्वस्थ रखा जा सकता है। यदि ये तालमेल कहीं बिगड़ता दिखे तो प्रतिदिन कुछ मुद्राओं का अभ्यास करना लाभ देता है । अपान और वायु मुद्रा के संयोग से बनने वाली अपान वायु मुद्रा एवं शंख मुद्रा, इसी तरह की दो मुद्राएं हैं जिनका प्रयोग यदि प्रतिदिन किया जाए तो अध्यात्मिक उन्नति के साथ शरीर तंदरुस्त भी बना रहता है।

अपान वायु मुद्रा

तर्जनी उंगली को अंगूठे की जड़ में लगाकर अंगूठे के अग्रभाग की मध्यमा और अनामिका के अगले सिरे से मिला देने से अपान वायु मुद्रा बनती है। इस मुद्रा में कनिष्ठिका अलग से सहज एवं सीधी रहती है। इस मुद्रा का प्रभाव हृदय पर विशेष रूप से पड़ता है। अतः इसे हृदय मुद्रा या मृत संजीवनी मुद्रा भी कहते हैं। अपान वायु मुद्रा में दो मुद्राएं अपान मुद्रा और वायु मुद्रा एक साथ की जाती है। दोनों मुद्राओं का सम्मिलित और तुरंत प्रभाव एक साथ पड़ता है। इससे पेट की गैस में तुरंत आराम मिलता है। हाथ में सूर्य पर्वत अति विकसित और चंद्र पर्वत अविकसित होने और हृदय रेखा दोषपूर्ण होने पर यह मुद्रा 15 मिनट सुबह− शाम करने से लाभ मिलता है।

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शंख मुद्रा

बाएं हाथ के अंगूठे को दोनों हाथ की मुट्ठी में बंद करके बाएं हाथ की तर्जनी उंगली को दाहिने हाथ के अंगूठे से मिलाने से शंख मुद्रा बनती है। इस मुद्रा में बाएं हाथ की बाकी तीन उंगलियों को पास में सटाकर दाएं हाथ की बंद उंगलियों पर हल्का सा दबाव दिया जाता है। इसी प्रकार हाथ बदल कर दाएं हाथ के अंगूठे को बाएं हाथ की मुट्ठी में बंद करके शंख मुद्रा बनायी जाती है। इस मुद्रा में अंगूठे का दबाव हथेली के बीच के भाग पर और मुट्ठी की तीन उंगलियों का दबाव शुक्र के पर्वत पर पड़ता है, जिससे हथेली में स्थित नाभि और थायराइड ग्रंथि के केंद्र दबते हैं। परिणामस्वरूप नाभि और थायराइड ग्रंथि के विकार ठीक होते हैं। यह मुद्रा पूजन में भी प्रयुक्त होती है। इसका प्रयोग लंबे समय तक किया जा सकता है। इस मुद्रा का नाभिचक्र से विशेष संबंध है, जिसके कारण नाभि से संबंधित शरीर की नाड़ियों पर सूक्ष्म और स्वास्थ्यवर्धक प्रभाव पड़ता है और स्नायुमंडल शक्तिशाली बनता है।

(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)

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