Mudra Vigyan: प्राण शक्ति देती है प्राण मुद्रा, कमजोरी को भी पलभर में कर देती है दूर, जानिए इस मुद्रा के कई अन्य लाभ

Mudra Vigyan: मानव के हाथ में ही विराजित हैं पंचतत्व की सभी शक्तियां। मुद्रा प्रयोग से कुंडलिनी शक्ति जाग्रत के साथ तमाम रोगों का कर सकते हैं स्वयं ही उपचार। कुछ क्षण के लिए प्राण मुद्रा में बैठने से कैसे मिल सकता है लाभ और इस मुद्रा से जुड़ी अन्य बातें भी आपके साथ साझा करेंगे।

Mudra Vigyan: प्राण शक्ति देती है प्राण मुद्रा, कमजोरी को भी पलभर में कर देती है दूर, जानिए इस मुद्रा के कई अन्य लाभ
मुख्य बातें
  • शरीर में है विराजित कर रोग के उपचार की क्षमता
  • प्राण मुद्रा के कुछ समय के प्रयोग से मिलता है लाभ
  • प्राण मुद्रा कुंडलिनी शक्ति जाग्रत करने का है आधार

Mudra Vigyan: ब्रह्मांड की तरह ही मनुष्य शरीर पांच तत्वों पृथ्वी, जल, आकाश, वायु और अग्नि से मिलकर बना है। यदि देह और ब्रह्मांड के पांचों तत्वों में समन्वय बना लिया जाए तो असाध्य रोगों के उपचार के साथ अपनी कुंडलिनी शक्ति भी जाग्रत कर सकते हैं। हाथाें की उंगिलयों से बनने वाली मुद्राएं इस कार्य में सबसे ज्यादा मदद करती हैं।

विभिन्न मुद्राओं में से प्राण मुद्रा, वाे मुद्रा है जो शरीर में प्राण शक्ति का संचार करती है। यदि कभी कमजोरी लग रही हो तो कुछ देर के लिए प्राण मुद्रा बनाकर बैठने से तुरंत लाभ मिलता है।

प्राण मुद्रा की शैली और इससे होने वाले लाभ

  • कनिष्ठिका और अनामिका उंगलियों के सिरों को अंगूठे के सिरे से मिलाने पर प्राण मुद्रा बनती है। शेष दो उंगलियां सीधी रहती हैं।
  • प्राण मुद्रा एक अत्याधिक महत्वपूर्ण मुद्रा होने के साथ रहस्यमय भी है।
  • प्राण मुद्रा के संबंध में ऋषि−मुनियों ने तप, स्वाध्याय एवं आत्मसाधना करते हुए बहुत से महत्वपूर्ण शोध किये हैं।
  • इसका अभ्यास प्रारंभ करते ही मानो शरीर में प्राण शक्ति को तेजी से उत्पन्न करने वाला डायनमो चलने लगता हो। फिर जैसे−जैसे प्राण शति रूपी बिजली शरीर की बैटरी को चार्ज करने लगते हैं, वैसे−वैसे ही चेतना का अनुभव होने लगता है। प्राण शक्ति का संचार करने वाली इस मुद्रा के अभ्यास से व्यक्ति शारीरिक और मानसिक दृष्टि से शक्तिशाली बन जाता है।
ज्योतिष के अनुसार सूर्य की उंगली अनामिका समस्त विटामिन और प्राण शक्ति का केंद्र मानी जाती है। बुध की उंगली कनिष्ठिका युवा शक्ति और कुमारावस्था का प्रतिनिधित्व करती है। इस मुद्रा में सूर्य−बुध की उंगलियों का अग्नि के प्रतीक अंगूठे के साथ महत्वपूर्ण प्रयोग है। इस मुद्रा के अभ्यास से जीवन और बुध रेखा के दोष दूर होते हैं। शुक्र के अविकसित पर्वत का विकास होने लगता है।

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इस मुद्रा में पृथ्वी तत्व के प्रतीक अनामिका और जल तत्व की प्रतीक कनिष्ठिका का अंगूठे यानि अग्नि तत्व से मिलन होता है। इसके परिणाम स्वरूप शरीर में न केवल प्राण शक्ति का संचार तेज होता है बल्कि रक्त संचार तेज होने से रक्त नलिकाओं की रुकावट दूर होती है। तन-मन में नई ऊर्जा, आशा, और उत्साह उत्पन्न होते हैं।

यदि योग−साधना या महीनों लंबी तपस्या के दौरान अन्न जल न लेने से अत्यंत कमजोरी महसूस हो रही हो तो इस स्थिति में प्राण मुद्रा करने से साधक को भूख प्यास की तीव्रता नहीं सताती। यह मुद्रा सभी परेशानियों को दूर करके शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास में सहायता करने वाली है।

(डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।)

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