Nag Panchami Ki Kahani: नाग पंचमी क्यों मनाई जाती है, जानिए इसकी पौराणिक कहानी
Nag Panchami 2024 Kahani In Hindi: नाग पंचमी का त्योहार हर साल सावन महीने की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। इसे भैया पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। जानिए इस साल नाग पंचमी कब मनाई जाएगी और इसकी पौराणिक कहानी क्या है।
Nag Panchami 2024 Date, Nag Panchami Ki Kahani
Naag Panchami 2024 Kahani In Hindi (नाग पंचमी की कहानी): नाग पंचमी सावन महीने का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। जो प्रत्येक वर्ष श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में पंचमी तिथि को मनाया जाता है। कई जगह पर इसे भैया पंचमी (Bahiya Panchami 2024 Date) भी कहते हैं। इस दिन स्त्रियां नाग देवता की पूजा करती हैं तो कई जगह इस दिन सापों को दूध पिलाने की परंपरा निभाई जाती है। कहते हैं इस दिन सापों को अर्पित किया गया कोई भी पूजन सीधे नाग देवताओं तक पहुंच जाता है। हिंदू धर्म में सापों को बेहद पूजनीय माना जाता है। चलिए अब आपको बताते हैं इस साल नाग पंचमी कब मनाई जाएगी और इसकी पौराणिक कहानी क्या है (Nag Panchami Ki Kahani)।
नाग पंचमी 2024 तिथि व मुहूर्त (Nag Panchami 2024 Date And Time)
- नाग पंचमी 9 अगस्त 2024, शुक्रवार को है।
- नाग पंचमी पूजा मूहूर्त 05:47 AM से 08:27 AM तक रहेगा।
- नाग पंचमी तिथि 9 अगस्त 2024 को 12:36 AM से 10 अगस्त को 03:14 AM तक रहेगी।
- बता दें गुजरात में नाग पंचमी 24 अगस्त 2024, शनिवार को मनाई जाएगी।
नाग पंचमी की कहानी (Nag Panchami Ki Kahani In Hindi)
नाग पंचमी की कथा अनुसार प्राचीन काल में एक सेठजी के सात पुत्र हुआ करते थे। सातों का विवाह हो गया था। उन पुत्रों में सबसे छोटे पुत्र की पत्नी श्रेष्ठ चरित्र की और सुशील थी। लेकिन उसका कोई भाई नहीं था। एक दिन बड़ी बहू ने घर लीपने के लिए पीली मिट्टी लाने के लिए सभी बहुओं को साथ चलने के लिए कहा। जिनके बाद सभी डलिया और खुरपी लेकर मिट्टी खोदने चल दीं। तभी अचानक से वहां पर एक एक सर्प निकला, जिसे बड़ी बहू खुरपी से मारने लगी।
लेकिन छोटी बहू ने उसे रोक दिया कहा मत मारो इसे, यह बेचारा निरपराध है। यह सुनकर बड़ी बहू ने उस सांप को जाने दिया। तब सर्प एक ओर जाकर बैठ गया। तब छोटी बहू ने सांप से कहां कि हम अभी लौट कर आते हैं तुम यहां से मत जाना। इतना कहकर छोटी बहू सभी के साथ मिट्टी लेकर घर चली गई और वहां जाकर कामकाज में फंस गई। जिसके चलते उसने जो सर्प से वादा किया था उसे भूल गई।
छोटी बहू को दूसरे दिन ये बात याद आई कि उसने तो सांप को रुकने के लिए कहा था। वो तुरंत ही जंगल की तरफ चल दी उसने देखा कि सर्प उस स्थान पर अभी भी बैठा हुआ है वो बोली: सर्प भैया नमस्कार! सर्प ने कहा: तूने मुझे भैया कहा है, इसलिए तुझे छोड़ देता हूं, नहीं तो झूठी बात कहने पर तुझे डस लेता। वह बोली: भैया मुझसे बड़ी भूल हो गई, उसके लिए मैं दिल से क्षमा मांगती हूं।
तब सांप ने कहां कि अच्छा, तू आज से मेरी बहिन है और मैं तेरा भईया। तुझे जो मांगना हो, मांग लो। वह बोली मेरे पास एक भाई की ही कमी थी जो तुमने पूरी कर दी।ऐसा कहकर वो घर को लौट गई। कुछ दिन बीत जाने पर वह सर्प मनुष्य का रूप लेकर उसके घर पहुंचा और बोला: कि मेरी बहिन को भेज दो। सब बहुए उस लड़के को देखकर हैरान हो गई क्योंकि वो जानती थीं कि छोटी बहू का कोई भाई नहीं है।
तब वो बोला मैं दूर के रिश्ते का भाई हूं, बचपन में ही बाहर चला गया था। उसके ऐसा कहने पर घर के लोगों ने छोटी को उसके साथ भेज दिया। लड़के ने मार्ग में बताया कि: मैं वहीं सर्प हूं, इसलिए तू डरना नहीं। जहां भी तुम्हें चलने में कठिनाई हो वहां मेरी पूछ पकड़ लेना। इस प्रकार छोटी बहू उसके घर पहुंच गई। वहां के धन-ऐश्वर्य को देखकर वह हैरान रह गई।
एक दिन सर्प की माता ने छोटी बहू से कहा कि मैं कुछ काम के लिए बाहर जा रही हूं, तू अपने भाई को ठंडा दूध पिला देना। उसे ठंडा दूध वाली बात ध्यान नहीं रही और उससे गर्म दूध पिला दिया, जिसमें सांप का मुंह जल गया। यह देखकर सर्प की माता बहुत क्रोधित हो गई। लेकिन सर्प के समझाने पर चुप हो गई। तब सांप ने कहा कि अब बहिन को उसके घर भेज देना चाहिए। तब सांप और उसके पिता ने बहिन को बहुत सारा सोना-चांदी, जवाहरात, वस्त्र आदि देकर उसे विदा किया।
छोटी बहू के पास इतना ढेर सारा धन देखकर बड़ी बहू ने जलन वश कहा कि तेरा भाई तो बड़ा धनवान है, तुझे तो उससे और भी धन लाना चाहिए था। सर्प ने जब यह सुना तो उसने सब वस्तुएं सोने की लाकर दे दीं। यह देखकर बड़ी बहू ने कहा कि इन चीजों को झाड़ने की झाड़ू भी सोने की होनी चाहिए। तब सांप ने झाड़ू भी सोने की ला दी।
सांप ने छोटी बहू को हीरा-मणियों से जड़ा एक बेहद अद्भुत हार दिया था। उस हार की प्रशंसा उस देश की रानी ने भी सुनी और उसने राजा से कहा कि सेठ की छोटी बहू के पास एक हार है जो मुझे चाहिए। राजा ने मंत्री से कहा कि वो हार लेकर शीघ्र ही उपस्थित हो। मंत्री ने सेठजी से जाकर कहा कि आपकी छोटी बहू के पास जो हार है उसे महारानीजी पहनेंगी, इसलिए वो लेकर मुझे दे दो। सेठजी ने डर के कारण छोटी बहू से हार ले लिया।
छोटी बहू को बेह दुख हुआ क्यों उसको ये हार उसके भाई सर्प ने दिया था। बहू ने अपने भाई को याद किया और उसने प्रार्थना की भैया! रानी ने मेरा हार छीन लिया है, तुम कुछ ऐसा करो कि जब रानी हार पहने तो वो सर्प बन जाए और जब वह मुझे लौटा दे तब वह हार हीरों और मणियों का हो जाए। सर्प ने अपनी बहन की प्रार्थना सुन ली और ठीक वैसा ही किया। रानी ने जैसे ही वो हार पहना, वैसे ही वह सर्प का बन गया। यह देखकर रानी डर के मारे चीखने लगी।
यह देख कर राजा ने छोटी बहू को तुरंत बुलवाया। राजा ने छोटी बहू से पूछा तुने इस हार में क्या जादू किया है अब मैं तुझे दण्ड दूंगा। छोटी बहू बोली: राजन! यह हार ही ऐसा है कि मेरे गले में हीरों और मणियों का बन जाता है और कोई दूसरा पहने तो उसके गले में सर्प बन जाता है। यह सुनकर राजा ने सर्प बना हार उसे देकर कहा: अभी इसे तुरंत पहनकर दिखाओ। छोटी बहू ने जैसे ही उसे पहना वैसे ही हीरों-मणियों का हो गया।
यह देखकर राजा ने प्रसन्न होकर उसे बहुत सी मुद्राएं पुरस्कार में दीं। छोटी बहू को मिले धन को देखकर बड़ी बहू को बहुत ईर्षा हुई और उसने उसके पति को सिखाया कि छोटी बहू के पास कहीं से धन आया है। उसे बुलाकर पूछो कि धन कहां से आया है। तब पति ने अपनी पत्नी को बुलाया और कहा कि ठीक-ठीक बता कि यह धन तुझे कौन देता है? तब वह अपने भाई सर्प को याद करने लगी।
तब उसी समय उसका भाई प्रकट हो गया और कहने लगा कि: यदि कोई मेरी धर्म बहिन के आचरण पर संदेह प्रकट करेगा तो मैं उसे तुरंत ही खा लूंगा। यह सुनकर छोटी बहू का पति बहुत प्रसन्न हुआ और उसने अपनी पत्नी के भाई सर्प का बड़ा सत्कार किया। कहते हैं उसी दिन से नागपंचमी का त्योहार मनाया जाने लगा और स्त्रियां सर्प को भाई मानकर उसकी पूजा करने लगीं।
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धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर की रहने वाली हूं। पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। 10 साल से मीडिया में काम कर रही हूं। पत्रकारिता में करि...और देखें
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