Nag Panchami Katha: नाग पंचमी व्रत कथा से जानिए क्यों मनाया जाता है ये त्योहार
Nag Panchami Kyu Manate Hai 2024: हिंदू धर्म में नाग पंचमी के त्योहार का विशेष महत्व माना जाता है। कहते हैं इस दिन नागों की पूजा करने से घर परिवार के लोगों को सर्पदंश का खतरा नहीं रहता। इसलिए इस दिन कई जगह घर के मुख्य द्वार पर सांप का चित्र बनाकर उसकी विधि विधान पूजा की जाती है। कहते हैं ऐसा करने से घर के लोगों के सारे दुख दूर हो जाते हैं। चलिए अब जानते हैं नाग पंचमी की कहानी क्या है।
Nag Panchami Katha In Hindi (नाग पंचमी की कहानी)
Nag Panchami Significance Hindi 2024 (नाग पंचमी क्यों मनाई जाती है): नाग पंचमी क्यों मनाई जाती है इससे जुड़ी कई कहानियां सुनने को मिलती है। जिनमें से एक कहानी के अनुसार ये पर्व भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ा है। कहते हैं एक बार भगवान कृष्ण अपने दोस्तों के साथ खेल रहे थे कि अचानक से उनकी गेंद यमुना नदी में जा गिरी। उस नदी में कालिया नाग रहता था। लेकिन फिर भी कृष्ण जी नदी में कूद गए और उन्होंने उस नाग को ऐसा सबक सिखाया कि उसने वचन दिया कि वह कभी भी गांव में मौजूद लोगों को नुकसान नहीं पहुंचाएगा। कहते हैं कालिया नाग पर श्रीकृष्ण की जीत की वजह से ही नाग पंचमी का त्योहार मनाए जाने की परंपरा शुरू हो गई। चलिए अब जानते हैं नाग पंचमी व्रत में पढ़ी जाने वाली कथा के बारे में।
नाग पंचमी क्यों मनाई जाती है (Nag Panchami Story In Hindi)
नाग पंचमी की पौराणिक कथा अनुसार प्राचीन काल में एक सेठजी रहते थे जिनके सात पुत्र थे। उन सातों के विवाह हो चुके थे। उनके सबसे छोटे पुत्र की पत्नी बहुत श्रेष्ठ चरित्र की विदूषी और सुशील थी। लेकिन उसका कोई भाई नहीं था। एक दिन उस घर की बड़ी बहू घर लीपने के लिए पीली मिट्टी लाने सभी बहुओं को साथ लेकर खेत में गई। सभी बहुएं अपनी डलिया और खुरपी लेकर मिट्टी खोदने लगीं। तभी वहां अचानक से सांप निकला, जिसे बड़ी बहू अपनी खुरपी से मारने लगी। यह देख छोटी बहू ने उसे रोक दिया और कहने लगी कि मत मारो इसे? यह बेचारे ने कौन सा कोई अपराध किया है।
बड़ी बहू ने उसे नहीं मारा और सर्प एक ओर जा कर बैठ गया। तब छोटी बहू ने उससे कहा कि मैं अभी लौट कर वापस आती हैं तुम यहां से कहीं जाना मत। यह कहकर वह मिट्टी लेकर घर चली गई। लेकिन वहां कामकाज में फंस जाने के कारण वह सर्प से जो वादा किया था उसे भूल गई। उसे दूसरे दिन जब अपने वादे का याद आया तो वह तुरंत वहां पहुंची। उसने देखा कि सांप तो अभी भी उस स्थान पर बैठा है वह बोली- सर्प भैया नमस्कार!
सर्प ने कहा: तूने मुझे भैया कहा है इसलिए तुझे छोड़ देता हूं। नहीं तो झूठी बात कहने पर तुझे तुरंत डस लेता। वह बोली: भैया मुझसे भूल हो गई, उसके लिए मैं क्षमा मांगती हूं। तब सर्प बोला: अच्छा तो तू आज से मेरी बहिन हुई और मैं तेरा भाई। तुझे जो मांगना है मुझ से मांग ले। वह बोली: मेरा कोई भाई नहीं था अच्छा हुआ जो तू मेरा भाई बन गया। कुछ दिन बीत जाने के बाद वह सर्प मनुष्य का रूप लेकर उसके घर आया और बोला कि मेरी बहिन को भेज दो। लेकिन सब हैरान हो गए क्योंकि छोटी बहू का कोई भाई नहीं था।
तब वह बोला कि मैं इसका दूर के रिश्ते में भाई हूं, बचपन में ही बाहर चला गया था। सभी को विश्वास दिलाने के बाद वह अपनी मुंह बोली बहन को लेकर निकल गया।तब उसने अपनी बहन को बताया कि मैं वहीं सर्प हूं, इसलिए तू डरना नहीं। मैं तुझे अपने घर लेकर जा रहा हूं। तुझे जहां चलने में कठिनाई हो वहां मेरी पूछ पकड़ लेना। इस प्रकार वह उस सांप के घर पहुंच गई और वहां के धन-ऐश्वर्य को देखकर चकित हो गई। एक दिन सांप की माता ने उससे कहा: मैं जरूरी काम से बाहर जा रही हूं तू ध्यान से अपने भाई को ठंडा दूध पिला देना।
लेकिन उसने कैसा दूध पिलाना है ये बात नहीं सुनी और उसने गलती से गर्म दूध पिला दिया, जिसमें उसका मुख जल गया। यह देखकर उस सांप की माता बहुत क्रोधित हो गई। परंतु सर्प के समझाने के बाद वह शांत हो गई। तब सर्प ने कहा कि अब उसे उसके घर भेज देना चाहिए। तब सर्प ने उसे बहुत सा सोना, चांदी, जवाहरात, आभूषण देकर घर से विदा किया।
जब इतनी ढेर सारी कीमती चीजें लेकर वह अपने ससुराल पहुंची तो ये देखकर बड़ी बहू ने ईर्षा से कहा तेरा भाई तो बड़ा धनवान है, तुझे तो उससे और भी धन ले लेना चाहिए। सर्प ने जब यह वचन सुना तो उसने सब वस्तुएं सोने की लाकर दे दीं। यह देखकर बड़ी बहू ने कहा कि इतनी कीमती चीजें झाड़ने की झाड़ू भी सोने की होनी चाहिए। तब सांप ने झाडू भी सोने की लाकर दे दी।
तभी सर्प ने छोटी बहू को हीरा-मणियों का एक अद्भुत हार दिया। जिस हार की प्रशंसा उस देश की रानी ने भी सुनी। रानी के मन में उस हार को लेने का लालच आया और वह राजा से जाकर बोली कि सुना है कि सेठ की छोटी बहू के पास कीमती हार है मुझे वो चाहिए। राजा ने तुरंत अपने मंत्री को हुक्म दिया कि उससे वह हार लेकर आए। राजा के कहे अनुसार मंत्री हार लेकर आ गया।
छोटी बहू को बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा क्योंकि उसे वो हार उसके भाई ने दिया था। इसके बाद उसने अपने सर्प भाई को याद किया और प्रार्थना की: भैया! रानी ने हार छीन लिया है, तुम कुछ ऐसा चमत्कार करो जिससे जब रानी हार पहनें तो वह सर्प बन जाए और जब मैं उस हार को पहनुं तो वह हीरों और मणियों का हो जाए। सर्प ने ऐसा ही किया। रानी ने जब हार पहना तो वह सर्प बन गया। यह देखकर रानी की चीख निकल पड़ी और वो रोने लगी।
तब राजा ने छोटी बहू को बुलवाया और कहा कि तुने क्या जादू किया है इस हार पर, मैं तुझे दण्ड दूंगा। छोटी बहू बोली: राजन! यह हार ही ऐसा है। मेरे गले में हीरों और मणियों का रहता है और दूसरे के गले में सर्प बन जाता है। तब राजा ने उसे वो हार पहनने के लिए कहा। छोटी बहू ने जैसे ही हार पहना वो हीरों और मणियों का बन गया।ये देखकर उसे विश्वास हो गया कि वो झूठ नहीं बोल रही है और उसने प्रसन्न होकर उसे पुरस्कार रूप में मुद्राएं भी दीं। उसके धन को देखकर बड़ी बहू को और भी ज्यादा जलन होने लगी। उसने छोटी बहू के पति को सिखाया कि उसकी पत्नी के पास कहीं से धन आया है। यह सुनकर छोटी बहू के पति ने उससे पूछा कि यह धन तुझे कौन देता है? सच-सच बताना। तब वह सर्प को याद करने लगी।
उसी समय सर्प वहां प्रकट हो गया और रहा कि यदि मेरी मेरी बहन के आचरण पर किसी ने भी संदेह प्रकट किया तो मैं उसे खा लूंगा। यह सुनकर छोटी बहू का पति बहुत खुश हुआ और उसने सर्प देवता को प्रणाम किया। कहते हैं उसी दिन से नागपंचमी का त्यौहार मनाया जाने लगा।
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धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर की रहने वाली हूं। पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। 10 सा...और देखें
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