Navratri 2023 Day 5th, Maa Skandmata Vrat Katha: नवरात्रि के पांचवे दिन पढ़ें स्कंद माता की व्रत कथा, होगी मनोवांछित फल की प्राप्ति
Navratri 2023 5th Day, Maa Skandmata Vrat Katha In Hindi (मां स्कंदमाता की व्रत कथा): नवरात्रि का पांचवा दिन देवी भगवती के पांचवे स्वरूप स्कंदमाता को समर्पित होता है। मान्यता है कि, विधि विधान से स्कंदमाता की पूजा अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं तथा संतान संबंधी सभी सस्याओं का निवारण होता है व निसंतान को संतान की प्राप्ति होती है। कहा जाता है कि, बिना कथा का पाठ किए माता की पूजा को संपूर्ण नहीं माना जाता है। यहां हम आपके लिए स्कंदमाता की पौराणिक कथा लेकर आए हैं।
Navratri Day 5 Skandmata Vrat Katha: स्कंदमाता की पौराणिक कथा
स्कंदमाता को नारंगी रंग अत्यंत प्रिय (
Skandamata Vrat Katha, स्कंदमाता की पौराणिक कथा
पौराणक ग्रंथों में स्कंदमाता को लेकर एक कथा काफी प्रचलित है। पौराणिक कथा के अनुसार एक तारकासुर नामक राक्षस, उसने अपनी घोर तपस्या से ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया था। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए, तारकासुर ने ब्रह्मा जी से अमरता का वरदान मांगा। ब्रह्मा जी ने यह सुनकर कहा कि, ऐसा संभव नहीं, क्योंकि जन्म लेने वाले हर प्राणी का अंत एक दिन निश्चित है। ये सुनकर तारकासुर निराश हो गया और उसने बड़ी चालाकी से एक वर और मागा कि उसकी मृत्यु सिर्फ भगवान शिव के पुत्र हांथो ही हो, क्यों उसने सोचा महादेव ना कभी गृहस्थ जीवन अपनाएंगे और ना उसका वध होगा। इस तरह से वह हमेशा के लिए अमर हो जाएगा। इसे ब्रह्मा जी ने तटास्थु कह दिया।
वरदान प्राप्त करते ही उसके धरती व स्वर्गलोक पर हिंसा करना शुरू कर दिया। उसके अत्याचारों से तीनों लोक में सभी परेशान हो गए। एक दिन सभी देवी देवता ब्रह्मा जी के पास गए और भोलेनाथ को उसके अत्याचारों से अवगत करवाया। इसके पश्चात भोलेनाथ ने माता पार्वती से विवाह किया, जिसका नाम स्कन्द अर्थात कार्तिकेय था। भगवान स्कंद ने तारकासुर नामक राक्षस का वध किया।
ये कथा भी है काफी प्रचलित
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, स्कंदमाता देवी पार्वती का रौद्र रूप हैं। माता को लेकर एक पौराणिक कथा काफी प्रचलित है। पौराणिक ग्रंथों में उल्लेखित एक कथा के अनुसार एक बार बालक कार्तिकेय की रक्षा के लिए माता पार्वती क्रोधित होकर आदिशक्ति रूप में प्रगट हुईं, माता का यह स्वरूप देखकर इंद्रदेव भय से कांपने लगे। फिर, इंद्र भगवान अपने प्राण बचाने के लिए देवी पार्वती से क्षमा मांगने लगे। हालांकि कुमार कार्तिकेय का दूसरा नाम स्कंद भी है। इसलिए सभी देवतागण मां दुर्गा को मनाने के लिए उन्हें स्कंदमाता कहकर पुकारने लगे। तभी से मातारानी के इस पांचवें स्वरूप को स्कंदमाता कहा जाने लगा। इस प्रकार मां की पूजा 5वीं अधिकष्ठात्री के रूप में की जाने लगी।
ध्यान रहे नवरात्रि की पूजा बिना माता की कथा के संपूर्ण नहीं मानी जाती है। ऐसे में माता की कथा का पाठ करना ना भूलें।
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मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम की नगरी अयोध्या का रहने वाला हूं। लिखने-पढ़ने का शौकीन, राजनीति और शिक्षा से जुड़े मुद्दों में विशेष रुचि। साथ ही हेल्...और देखें
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