नेपाल की जिस नदी की शालिग्राम शिलाओं से बनेगी रामलला की मूर्ति, उसे भगवान विष्णु ने दिया था वरदान

अयोध्या के भव्य राम मंदिर (Ayodhya Ram Temple) में श्री राम और माता सीता की मूर्ति बनाने के लिए आखिर नेपाल की शालिग्राम (Nepal Shaligram Rocks) शिलाओं को ही क्यों चुना गया?

gandaki nadi

कहानी नेपाल की उस काली गंडकी नदी की, जिसकी शालिग्राम शिलाओं से बनेगी रामलला की मूर्ति

अयोध्या में राम मंदिर (Ayodhya Ram Mandir) के लिए भगवान राम और सीता की मूर्ति का निर्माण नेपाल (Nepal) की पवित्र गंडकी नदी (Gandaki River) की शालिग्राम शिलाओं से किया जाएगा। ये शालिग्राम (Shaligram Stones) शिलाएं ऐतिहासिक हैं और इनका खास धार्मिक महत्व माना जाता है। नेपाल की काली गंडकी नदी को सालिग्रामि और नारायणी के नाम से भी जाना जाता है। नारायणी इसलिए क्योंकि ऐसा माना जाता है कि यहां भगवान विष्णु का वास है। ये नदी हिमालय से निकलकर दक्षिण-पश्चिम नेपाल में बहती हुई भारत के बिहार और उत्तर प्रदेश में प्रवेश करती है। जहां ये पटना के पास गंगा नदी से मिल जाती है। इस पवित्र नदी के अंदर जीवित शालिग्राम पाए जाते हैं। जिन्हें भगवान विष्णु का स्वरूप माना जाता है।

विष्णु प्रिय तुलसी बनी गंडकी नदी

शिवपुराण के अनुसार वृंदा यानी तुलसी दानवों के राजा शंखचूड़ की पत्नी थीं। वो भगवान विष्णु की भी परम भक्त थी। तुलसी के पतिव्रत धर्म के कारण ही राजा शंखचूड़ को कोई हरा नहीं सकता था। जिसके बल पर उसने देवताओं, असुरों, गंधर्वों, नागों, मनुष्यों सभी प्राणियों पर विजय प्राप्त कर ली थी। शंखचूड़ के अत्याचारों से सभी को मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु स्वयं शंखचूड़ बनकर वृंदा जो शंखचूड़ की पत्नी थी उसके पास पहुंचे। शंखचूड़ रूपी भगवान विष्णु ने वृंदा को विजय होने की सूचना दी। जिसे सुनकर वृंदा प्रसन्न हो गईं और पतिरूप में आए भगवान का पूजन किया और रमण किया। ऐसा करते ही तुलसी का सतीत्व खंडित हो गया जिससे शंखचूड़ मारा गया।

भगवान विष्णु ने तुलसी को दिया वरदान

जब वृंदा को इस छल का पता चला तो उसने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि आप पाषाण होकर धरती पर रहें। इस पर भगवान विष्णु ने कहा कि तुम मेरे लिए बहुत दिनों तक तपस्या कर चुकी हो। इसलिए तुम्हारा शरीर नदी रूप में बदलकर गंडकी नामक नदी के रूप में प्रसिद्ध होगा। तुम पुष्पों में श्रेष्ट तुलसी का वृक्ष बन जाओगी और सदा मेरे साथ रहोगी। तुम्हारे श्राप को सत्य करने के लिए मैं पाषाण यानी शालिग्राम बनकर रहूंगा और गंडकी नदी के तट पर ही मेरा वास होगा।

गंडकी नदी में मिलते हैं शालिग्राम

इस नदी में विशिष्ट प्रकार के पत्थर मिलते हैं। जिन पर चक्र, गदा आदि के चिन्ह बने होते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ये पत्थर भगवान विष्णु का स्वरूप होने के कारण ही इन्हें शालिग्राम शिला कहा जाता है। विद्वानों का मानना है कि श्री विष्णु ने स्वयं बताया था कि उनका वास गंडकी नदी में है। यहां के जल में मौजूद कीड़े अपने तेज दांतों से काटकर पाषाणों में श्री विष्णु का चक्र चिह्न बनाएंगे। इसलिए इस शिला को श्री भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरुप के रुप में पूजा जाएगा।

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लवीना शर्मा author

धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर की रहने वाली हूं। पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। 10 साल से मीडिया में काम कर रही हूं। पत्रकारिता में करि...और देखें

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