Nirjala Ekadashi Vrat 2023: निर्जला एकादशी का अर्थ क्या है? जानें इस व्रत की डेट और महत्व
Nirjala Ekadashi 2023 (निर्जला एकादशी कब है): हर साल ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी मनाते हैं। निर्जला एकादशी के पावन अवसर पर विधिवत व्रत, कथा और पूजन करने से विशेष लाभ की प्राप्ति होती है। यहां देखें सभी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाले इस सिद्ध व्रत की तिथि, अर्थ और महत्व।
Nirjala ekadashi vrat 2023 date importance and significance in hindi
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इस वर्ष निर्जला एकादशी का व्रत 31 मई 2023 बुधवार को रखा जाएगा। मान्यता है कि, जो भी व्यक्ति निर्जला एकादशी का व्रत विधि विधान के साथ पुरा कर लेता है। उसकी हर इच्छा श्री विष्णु स्वयं पूर्ण करते हैं, ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि पर व्रत रखने से मिनटों में जातकों के सारे पापों का नाश भी होता है। अगर आप साल भर में किसी भी एकादशी का व्रत न रखें और सिर्फ निर्जला एकादशी पर पूजन कर लें, तो भी आपके ऊपर अवश्य ही भगवान विष्णु का आशीर्वाद बना रहेगा। यहां देखें निर्जला एकादशी का अर्थ क्या होता है और इसका महत्व क्या है ?
निर्जला एकादशी 2023 Date, निर्जला एकादशी कब है
श्री विष्णु को समर्पित निर्जला एकादशी का व्रत, हर साल ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की अमावस्या तिथि पर रखा जाता है। इस वर्ष निर्जला एकादशी 31 मई बुधवार की तारीख पर पड़ रही है। निर्जला एकादशी के व्रत और कथा के साथ साथ विधिपूर्वक दान-धर्म करने का भी बहुत गहरा महत्व होता है। भगवान विष्णु के इस व्रत को करने से सारे कष्टो का निवारण होता है अथवा सभी जातकों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
निर्जला एकादशी व्रत का अर्थ क्या है?
भगवान विष्णु के इस सिद्ध व्रत को करने का बहुत ही गहरा महत्व होता है। ये व्रत एकादशी के हर व्रत से ज्यादा लाभ प्राप्ति वाला होता है, निर्जला एकादशी के व्रत वाले दिन जातकों को पूरा दिन बिना खाए-पिए श्री हरि की स्तुति कर गुज़ारना होता है। निर्जला का अर्थ ही ये होता है, जिस दिन आप दिन भर बिना जल के रहे। अन्न और जल के इस त्याग वाले व्रत को अगर आप नियमों के अनुसार पूरा कर लेते हैं। तो आपको सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है
क्यों रखते हैं निर्जला एकादशी का व्रत?
निर्जला एकादशी के व्रत को सभी एकादशी के व्रतों में गहरे महत्व और लाभ वाला माना जाता है। निर्जला एकादशी के व्रत को भीमसेनी एकादशी के रूप में भी जाना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इसी व्रत का पालन कर और श्री विष्णु की भक्ति में लीन होकर भीम मूर्छित हो गए थे। भीम की तरह ही बिना अन्न ग्रहण और जल पान के प्राणी मात्र मृत्यु के बाद वैकुंठ धाम की ओर चल देता है।
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मैं टाइम्स नाऊ नवभारत के साथ बतौर ट्रेनी कॉपी राइटर कार्यरत हूं। मूल रूप से मध्य प्रदेश के उज्जैन की...और देखें
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