Papmochani Ekadashi 2023 Vrat Katha: पापमोचिनी एकादशी की व्रत कथा हिंदी में यहां पढ़ें
Papmochani Ekadashi 2023 Vrat Katha In Hindi: चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी को पापमोचिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। ये एकादशी इस बार 18 मार्च को पड़ी है। इस एकदाशी व्रत में भगवान विष्णु की विधि विधान पूजा करें। साथ ही एकादशी व्रत कथा को जरूर पढ़ें। जानिए पापमोचिनी एकादशी व्रत कथा।
पापमोचिनी एकादशी व्रत कथा
Papmochani Ekadashi 2023 Vrat Katha In Hindi: पापों का नाश करने वाली पामोचिनी एकादशी का हिंदू धर्म में खास महत्व माना जाता है। कहते हैं जो व्यक्ति इस दिन सच्चे मन से भगवान विष्णु को याद करता है उसे उसके सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है और मरने के बाद बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। बता दें भगवान विष्णु जिस लोक में निवास करते हैं उसे बैकुण्ठ कहा जाता है। ये एकादशी चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri) से पहले पड़ती है। बता दें इस साल ये नवरात्रि 22 मार्च से शुरू हो रही हैं। जानिए पापमोचिनी एकादशी की व्रत कथा। संबंधित खबरें
पापमोचिनी एकादशी की व्रत कथा (Papmochani Ekadashi Vrat Katha)
प्राचीनकाल में चैत्ररथ नाम का एक वन था। इस वन में देवराज इन्द्र गंधर्व कन्याओं तथा देवताओं सहित स्वच्छंद विहार करते थे। वहां हमेशा वसन्त का मौसम ही रहता था और वर्ष भर तरह-तरह के पुष्प खिले रहते थे। उस वन में कभी गन्धर्व कन्याएं घूमती थीं तो कभी अन्य देवताओं के साथ देवेन्द्र क्रीड़ा किया करते थे।संबंधित खबरें
उसी वन में एक मेधावी नामक ऋषि भी तपस्या में लीन रहते थे, जो शिवभक्त थे। एक दिन एक अप्सरा जिसका नाम मञ्जुघोषा था वो ऋषि को मोहित करने की चेष्टा की। अप्सरा ऋषि से कुछ दूरी पर बैठकर वीणा बजाकर मधुर स्वर में गीत गाने लगी।संबंधित खबरें
उधर, उसी समय महर्षि मेधावी को कामदेव भी जीतने का प्रयास कर रहे थे। कामदेव ने उस अतिसुन्दर अप्सरा के भ्रू का धनुष बनाया। कटाक्ष को उसकी प्रत्यन्चा और उसके नेत्रों को मञ्जुघोषा अप्सरा का सेनापति बनाया। इस तरह कामदेव ने अपने आप को तैयार किया।संबंधित खबरें
उस समय शिवभक्त महर्षि मेधावी युवावस्था में थे और काफी हृष्ट-पुष्ट भी थे। उन्होंने दण्ड और यज्ञोपवीत धारण कर रखा था। उस मुनि को देख कामदेव के वश में हुई अप्सरा ने धीरे-धीरे मधुर वाणी से गायन शुरू किया तो मेधावी ऋषि भी मञ्जुघोषा के मधुर गाने और उसकी सुंदरता से मोहित हो गए। वह अप्सरा मेधावी मुनि को कामदेव से पीड़ित जानकर उनसे आलिङ्गन करने लगी। महर्षि मेधावी इतने मोहित हो गए कि शिव रहस्य को भूल गए और काम के वशीभूत होकर उसके साथ रमण करने लगे। उन्हें दिन-रात का कुछ भी पता न चला और काफी समय तक वे रमण करते रहे। संबंधित खबरें
तब अप्सरा मञ्जुघोषा मुनि से बोली: हे ऋषिवर! अब बहुत समय हो गया है, अतः मुझे स्वर्ग जाने की आज्ञा दीजिये। इसपर ऋषि ने कहा: हे मोहिनी! संध्या को ही तो आयी हो, प्रातःकाल होने पर चली जाना। महर्षि के ऐसे वचनों को सुन अप्सरा उनके साथ रमण करने लगी। इस तरह दोनों ने एकसाथ काफी समय बिताया।संबंधित खबरें
फिर, मञ्जुघोषा एक दिन ऋषि से बोली: हे विप्र! कृपा करके अब आप मुझे स्वर्ग जाने की आज्ञा दीजिये। महर्षि ने इस बार भी वही कहा: हे रूपसी! अभी ज्यादा समय व्यतीत नहीं हुआ है, कुछ समय के लिए और ठहर जाओ। मुनि की बात सुनकर अप्सरा ने कहा: हे ऋषिवर! आपकी रात तो बहुत लम्बी है। आप स्वयं सोचिये कि मुझे आपके पास आये कितना समय हो गया है। अब और ज्यादा समय तक ठहरना क्या उचित है?संबंधित खबरें
अप्सरा की यह बात सुनकर महर्षि को समय का ज्ञान हुआ और वह गम्भीरता से विचार करने लगे। जब उन्हें ध्यान आया कि रमण करते हुए सत्तावन (57) वर्ष बीत हो चुके हैं तो मुनि, उस अप्सरा को काल का रूप समझने लगे।संबंधित खबरें
भोग-विलास में इतना ज्यादा समय व्यर्थ चला जाने पर महर्षि को बड़ा क्रोध आया। वह भयंकर क्रोध में जलते हुए उस तप नाशक अप्सरा की तरफ भृकुटी तानकर देखने लगे। क्रोध से उनकी इंद्रियां बेकाबू होने लगी और अधर काँपने लगे। क्रोध से थरथराते स्वर में मुनि ने कहा: मेरे तप को नष्ट करने वाली दुष्टा! तू महा पापिन और दुराचारिणी है, तुझ पर धिक्कार है। अब, तू मेरे श्राप से पिशाचिनी बन जा।संबंधित खबरें
मुनि के आक्रोशित श्राप से अप्सरा पिशाचिनी बन गई और व्याकुल होकर ऋषि से बोली: हे ऋषिवर! अब क्रोध त्यागकर प्रसन्न होइए और कृपा करके इस शाप के निवारण के लिए उपाय बताइए? सुना है साधुओं की संगति से अच्छे फल की प्राप्ति होती है और आपके साथ तो मेरे बहुत वर्ष व्यतीत हुए हैं। अतः आप मुझ पर प्रसन्न हो जाइए। अन्यथा लोग कहेंगे कि पुण्य आत्मा के साथ रहने पर भी मञ्जुघोषा को पिशाचिनी बनना पड़ा।संबंधित खबरें
मञ्जुघोषा की यह बात सुन मुनि को अपने क्रोध पर ग्लानि हुई। साथ ही अपकीर्ति का भय भी हुआ। अतः मञ्जुघोषा से कहा: तूने मेरा बड़ा बुरा किया है, किन्तु मैं फिर भी तुझे इस श्राप से मुक्ति के उपाय बताता हूँ। चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की जो एकादशी है, उसका नाम पापमोचिनी है। उस एकादशी व्रत को करने से तुझे पिशाचिनी की देह से मुक्ति मिल जाएगी। इसके बाद मुनि ने उसको व्रत के सारे विधान और नियम समझा दिए। फिर अपने पापों का प्रायश्चित करने वे अपने पिता च्यवन ऋषि के पास गये।संबंधित खबरें
च्यवन ऋषि ने अपने पुत्र मेधावी से कहा: हे पुत्र! ऐसा तूने क्या किया है कि तेरे सारे तप नष्ट हो गए हैं? जिससे तुम्हारा समस्त तेज मलिन हो गया है? मेधावी मुनि ने लज्जा से अपना सिर झुकाते हुए कहा: पिताश्री! मैंने एक अप्सरा से रमण करके बहुत बड़ा पाप किया है। इसी वजह से मेरे सारे तेज और तप नष्ट हो गए हैं। कृपा करके आप इस पाप से छुटकारा का उपाय बताएं। संबंधित खबरें
ऋषि ने कहा: हे पुत्र! तुम चैत्र माह के कृष्णपक्ष की पापमोचिनी एकादशी का विधिपूर्वक उपवास करो। इससे तुम्हारे सभी पाप नष्ट हो जाएंगे। पिता च्यवन ऋषि की आज्ञानुसार मेधावी मुनि ने पापमोचिनी एकादशी व्रत विधिपूर्वक किया। उसके प्रभाव से उनके सभी पाप नष्ट हो गए। उधर, मञ्जुघोषा अप्सरा भी पापमोचिनी एकादशी के प्रताप से पिशाचिनी की देह से छूट गई और अपना सुन्दर रूप धारण कर स्वर्गलोक चली गई।संबंधित खबरें
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